वाराणसी : श्रीमद्भागवत सभी शास्त्रों-पुराणों में श्रेष्ठ, श्रवण से मिलते हैं कई फल
वाराणसी। सोनारपुरा स्थित चिंतामणि गणेश हनुमान मंदिर में सप्त दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा का आयोजन किया गया है। कथावाचक गोपाल सुंदर ने श्रोताओं को श्रीमद्भागवत का महात्म्य बताया।
मंदिर में स्वर्गीय चल्ला कृष्णा शास्त्री की याद में 18 से 24 दिसंबर तक श्रीमद्भागत कथा का आयोजन किया गया है। इसमें रविवार को विशाल शोभायात्रा का आयोजन किया जाएगा। कथा वाचक ने कहा कि श्रीमद्भागवत महापुराण सभी शास्त्रों पुराणों में अतिश्रेष्ठ है। इसका श्रवण अनेक जन्मों के प्राप्त पुण्यों के फलस्वरूप होता है। जमान्तरे भवेत् पुण्यं तदा भागवतं लभेत् यह उक्ति श्रीमद्भागवत के महात्म्य में ही वर्णित है। भागवत कथा का श्रवण भगवत्प्राप्ति का सरलतम उपाय है। इसमें भक्ति ज्ञान वैराग्य का सम्यक् वर्णन प्राप्त होता है। इस शास्त्र को परमहंसों की संहिता भी कहते हैं, क्योंकि परमहंसों से प्राप्य अहं ब्रह्मास्मि ऐसा जो महावाक्य से अनुभूत अमल शुद्ध परं ज्ञान है वह ब्रह्मात्मैक्यरूप से गाया गया है।
उन्होंने कहा कि श्रीमद्भागवत के प्रथम स्कन्ध के प्रथम अध्याय के तीसरे श्लोक में निगमकल्पतरु का परिपक्व फल बताया गया है। निगम का अर्थ वेद होता है और कल्पवृक्ष स्वर्गलोक में पाया जाता है, जिसकी ऐसी महिमा है, जिसके पास जाने के बाद कोई भी कल्पना मन मे की जाए वो पूरी हो जाती है। दिव्यातिदिव्य वस्त्राभूषण वाहन सब प्राप्त हो सकता है, लेकिन कल्पवृक्ष में वो सामर्थ्य नहीं की भगवत्प्राप्ति करा सके। वेदरूपी कल्पवृक्ष में ऐसा सामर्थ्य है जिससे धर्म, अर्थ ,काम, मोक्ष जो चाहे वो प्राप्त हो सकता है। लेकिन जिस प्रकार अथाह जलराशि समुद्र में से किसी रत्न को निकालना कठिन होता है उसी प्रकार अथाह शब्दराशि वेदवृक्ष से मनोवांछित फल प्राप्त करना कठिन है।
श्रीमद्भागवत तो निगमकल्पतरु का अत्यन्त पका हुआ फल है और विशेषता मिठास इसकी परमहंस श्रीशुकदेव जी के मुख संस्पृष्ट हो जाने से और भी बढ़ गयी। इसलिए कहा गया कि रसिक महानुभावों इसका सदा सर्वदा पान करो। मोक्षपर्यन्त पीयो। कथा के दौरान मंदिर के चल्ला सुब्बाराव शास्त्री, बटुक, स्थानीय लोग तथा कथा प्रेमी मौजूद रहे।
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