वाराणसी : दुनिया को जोड़ सकता है राम का संबंध शास्त्र, महंत बालक दास ने समझाया संबंधों का महत्व
वाराणसी। विशाल भारत संस्थान एवं रामपंथ की ओर से लमही के सुभाष भवन में आयोजित दो दिवसीय राम सम्बन्ध कथा के अंतिम दिन राम के सम्बन्ध शास्त्र पर चर्चा हुई। व्यास पीठ पर आसीन पातालपुरी मठ के महंत बालक दास एवं रामपंथ के पंथाचार्य डा. राजीव श्रीगुरुजी ने भगवान राम की चरण वंदना की। कथा के यजमान अनन्त अग्रवाल ने गुरुपूजा कराई। इस दौरान महंत बालक दास ने राम संबंधों की विस्तार से व्याख्या की। दुनिया को जोड़ने के जोड़ने के लिए राम के संबंध शास्त्र को अपनाने पर जोर दिया।
उन्होंने कहा कि सम्बन्धों की व्याख्या राम ने ऐसी की, जिसमें संघर्ष को कोई स्थान नहीं है। अपने पिता के कहने पर वन गए, लेकिन राज्य के लिए कोई संघर्ष नहीं किया। भरत ने राज्य मिलने के बाद भी उसे ठुकरा कर अपने बड़े भाई से सम्बन्ध निर्वहन किया। माता जानकी ने पति से सम्बन्ध निभाया और उनके साथ जंगल चल दीं। लक्ष्मण ने भाई से सम्बन्ध निभाया और 14 वर्षों तक वन में रहकर सेवा करते रहे। भगवान राम ने केवट, भील और चित्रकूट के वनवासियों के साथ सम्बन्ध निभाया, उनके साथ रहे और उनका दिया भोजन किया।
जटायु ने महाराज दशरथ से सम्बन्ध निभाते हुए माता जानकी को रावण से बचाने के लिए अपने प्राण त्याग दिए। राम ने जटायु को पिता का दर्जा देकर उनका अंतिम संस्कार किया। सबको दर्शन दिए, ऋषियों की रक्षा की। माता शबरी से सम्बन्ध निभाया और उनका जूठा बेर खाया। सुग्रीव से मित्रता कर सम्बन्ध निभाया और बाली को मारकर राज्य दिलाया। बाली के साथ सम्बन्ध निभाया और उसको दिए बचन के अनुसार उसके पुत्र अंगद को युवराज बनाया। अपने शत्रु रावण के भाई विभीषण से सम्बन्ध निभाया और लंका का राजा बना दिया। भगवान राम ने अपने मानवीय लीला के माध्यम से समझाया कि धन की पूंजी जमा करने से कोई संकट दूर नहीं होता।
राम ने साबित किया कि सम्बन्धों का संसाधन और रिश्तो की पूंजी हो तो समुद्र पर भी पुल बांधा जा सकता है। इतनी बड़ी सेना बिना किसी धन के भी खड़ी हो सकती है और दुनियां के सबसे ताकतवर व्यक्ति को भी युद्ध मे हराया जा सकता है। सम्बन्धों का शास्त्र बताने वाले प्रभु श्रीराम ने स्वयं सब कुछ करके दुनियां को सिखाया। सांस्कृतिक पुनर्जागरण के जरिए घर-घर तक राम के सम्बन्धों की कथा पहुंचेगी, दुनियां राम से जुड़कर सम्बन्धों के महत्व को समझेगी। स्वार्थ पर आधारित सम्बन्ध बहुत दिनों तक नहीं चलते। रिश्तों के दर्द को सहन करना पड़ता है। अहंकार विहीन सम्बन्ध और दर्द सहित रिश्ते ही मानवीय मूल्य है। धन संपदा और राज्य खोने के बाद भी जो सम्बन्धों को बचाकर रखता है और रिश्तों को निभाता है, वही अंतिम समय में सुख चैन और आनंद का अनुभव करता है।
उन्होंने कहा कि भगवान राम का यही संदेश है कि चाहे कोई भी परिस्थिति हो सम्बन्धों का नुकसान नहीं होना चाहिए और झुककर भी अपनों से रिश्तों को बचाए रखना चाहिए। उन्होंने भक्तों को आपसी रिश्तों को निभाने की सौगन्ध दिलाई। रामपंथ के पंथाचार्य डा. राजीव श्रीगुरुजी ने कहा कि कथा का उद्देश्य सांस्कृतिक पुनर्जागरण है। इस कथा में सभी धर्मों के लोगों ने भाग लिया। सम्बन्धों को बनाने और रिश्तों को निभाने का प्रशिक्षण इस कथा के माध्यम से दिया गया। दो दिवसीय कथा से रामभक्ति की धारा बह निकली और रामनवमी के दिन सभी भेद को व्यवहारिक तरीके से खत्म करते हुए रामपंथ में सभी जातियों के लोगों को दीक्षित किया जाएगा और दुनियां का पहला श्रीराम सम्बन्ध मन्दिर का निर्माण शुरू हो जाएगा।
कथा में डा. अर्चना भारतवंशी, नाजनीन अंसारी, डा. मृदुला जायसवाल, डा. नजमा परवीन, आभा भारतवंशी, राजकुमार सिंह, अनन्त अग्रवाल, मोहित, रौशन, विवेकानन्द सिंह, चन्दन सिंह, अंकित सिंह, रेहान, अनिल पाण्डेय, अजीत सिंह टीका, डा. भोलाशंकर, संजीव सिंह, नीतू सिंह, गीता, पूनम, किशुना, इली, खुशी, उजाला, दक्षिता आदि मौजूद रहे।
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