वाराणसी : काष्ठजिह्वा स्वामी ने रामनगर में स्थापित किया राम दरबार, संगोष्ठी में काशी की दिव्यता पर चर्चा
वाराणसी। काशी हिंदू विश्वविद्यालय के भारत अध्ययन केंद्र और काशी कथान्यास द्वारा आयोजित ‘रामलीलासंवाद शृंखला’ के अंतर्गत 'काष्ठजिह्वा स्वामी (देवतीर्थ) और काशी' विषय पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस अवसर पर मुख्य वक्ता के रूप में धर्माचार्य और दार्शनिक विचारक आचार्य मिथिलेशनंदिनीशरण ने कहा कि संत काष्ठजिह्वा स्वामी ने न केवल रामलीला की परंपरा को सजीव किया, बल्कि देश के सांप्रदायिक मतभेदों को भी दूर करने का प्रयास किया।
उन्होंने कहा कि काष्ठजिह्वा स्वामी की महत्ता उनके द्वारा स्थापित रामनगर की रामलीला से जुड़ी हुई है। उन्होंने काशी नरेश के दरबार की शक्ति का प्रयोग कर रामनगर में श्रीराम के दरबार की स्थापना की और अयोध्या, जनकपुर, चित्रकूट और लंका जैसे स्थानों को रामलीला में जीवंत किया। उन्होंने कहा कि यह काष्ठजिह्वा स्वामी का ही योगदान है कि एक नगरी में भारत का बृहत्तर भूगोल दिखता है।
स्वामी जी ने यह भी बताया कि काष्ठजिह्वा स्वामी के विचार केवल रामलीला तक सीमित नहीं थे, बल्कि उन्होंने वेदांत और सधुक्कड़ी भाषा का प्रयोग कर व्यापक रूप से समाज में विचारधारा को प्रचारित किया। रामनगर में उनकी कोई प्रतिमा न होने पर स्वामी जी ने चिंता व्यक्त की और कहा कि काष्ठजिह्वा स्वामी की स्मृति में एक प्रतिमा अवश्य स्थापित की जानी चाहिए।
विशिष्ट अतिथि और रामनगर की रामलीला में 40 वर्षों से हनुमान की भूमिका निभाने वाले पंडित रामनारायण पांडेय ने बताया कि इन रामलीला स्थलों में आज भी संतत्व और देवत्व विद्यमान है। उन्होंने कहा कि करपात्री जी जैसे संत इन स्थलों की परिक्रमा करते थे और उस पवित्र धूल को माथे पर लगाते थे।
कार्यक्रम का संचालन डॉ. अवधेश दीक्षित ने किया, जबकि अतिथियों का स्वागत भारत अध्ययन केंद्र के समन्वयक प्रो. सदाशिव द्विवेदी ने किया और धन्यवाद ज्ञापन प्रो. सिद्धनाथ उपाध्याय ने किया। संगोष्ठी में पूर्व कुलपति प्रो. प्रदीप कुमार मिश्र, डॉ. अमित पांडेय, डॉ. ज्ञानेंद्र राय समेत अन्य प्रमुख लोग उपस्थित थे।
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