वाराणसी : कबीर धर्म सत्ता नहीं, व्यक्ति सत्ता को देते हैं महत्व, जयंती पर वक्ताओं ने रखे विचार 

नले
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वाराणसी। कबीरदास की 626वीं जयंती के अवसर पर बीएचयू की मुक्ताकाशी पुलिया प्रसंग संस्था की ओर से कबीर का सच विषय पर परिचर्चा का आयोजन किया गया। इसमें वक्ताओं ने विचार रखे। वरिष्ठ कवि प्रोफेसर श्रीप्रकाश शुक्ला ने कहा कि कबीर के साहित्य में धर्म सत्ता नहीं, बल्कि व्यक्ति सत्ता को महत्व दिया गया है। 

उन्होंने कहा कि कबीर के सर्जक व्यक्तित्व की बुनियादी विशेषता स्वाधीनता की खोज है। यही वह पक्ष है जिसका आधार बनाकर हर बौद्धिक कबीर तक की यात्रा करता है। मध्यकाल की जटिल परिस्थितियों में स्वाधीन चिंतन ही प्रमुख था तथा कबीर के माध्यम से हम यह जान पाते हैं कि तटस्थ रहते हुए भी कैसे सत्य कहा जा सकता है। कबीर का सच उनके अनुभव का सच है। कबीर हमारे बद्धमूल संस्कारों को झकझोरते हैं तथा हमें विचार से सक्रिय करते हैं और श्रमजनित शक्तियों के साथ खड़े होकर उन्हें ललकारते हैं। वे उसको उसकी गरिमा प्रदान करते हैं। कबीर का सच व्यक्ति की गरिमा को प्रतिष्ठित करने का सच है। 

धर्म सत्ता के विरुद्ध कबीर मनुष्य की व्यक्ति सत्ता की बात करते हैं। कबीर के पास प्रेम हैं और प्रश्नाकुलता है। वे लगातार अपने अनुभवों के दायरे में अपने आस-पास के समाज और उसकी जटिलताओं को प्रश्नांकित करते हैं। कबीर उस हर सत्ता का विरोध करते हैं जो योजक नहीं होती या योजक होने का विरोध करती है। एपीएम कालेज,बस्ती में सहायक आचार्य डॉ. अभिषेक सिंह ने कहा कि कबीर ने सहज ज्ञान की परंपरा का पोषण किया। चलते-फिरते सहज ज्ञान मिलना और उसकी प्राप्ति के अधिकार की बात करना कबीर को श्रेष्ठ बनाता है।


 
शोधार्थी मनकामना शुक्ल ने कहा कि कबीर अग्निधर्मा कवि हैं जो मनुष्य के अन्तस् में स्थित सत्य के खोज की बात करते हैं। मानस पत्रिका के 'संपादक' आर्यपुत्र दीपक ने कहा कि कबीर बहुत ही समकालीन कवि जान पड़ते हैं, उन्होंने अपने समय के दबाव और उसकी विसंगतियों को इस प्रकार लिखा कि वह आज भी सार्थक है। शिक्षक डॉ. सनद ने कहा आज जब मनुष्य हर बात को कहने से पहले उसे सोचता है, उसके नफे-नुकसान पर उसकी नज़र होती है ऐसे समय में कबीर की बेबाक वाणी प्रेरणा के रूप में हमें मिलती है।

शोध छात्र अक्षत पाण्डेय ने कहा कि कबीर का सच अनुभवप्रसूत सत्य है जोकि अंततः मनुष्य के सत्य के साथ जुड़ता है जिसमें मनुष्य की गरिमा की प्रतिष्ठा है। कबीर के सहित्य पर शोधरत राकेश गुप्ता ने कबीर जीवन में संत समागम के प्रभाव और उससे उनके जीवन दर्शन की उत्पत्ति की बात की। कार्यक्रम का संचालन आलोक गुप्ता तथा धन्यवाद ज्ञापन शिवम यादव ने किया।

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