काशी हिंदू विश्वविद्यालय में दो दिवसीय भारतीय गाय और जैविक कृषि पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन, पूर्व राष्ट्रपति भी होंगे शामिल

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वाराणसी। काशी हिंदू विश्वविद्यालय के शताब्दी कृषि विज्ञान प्रेक्षा गृह में शनिवार से "भारतीय गाय, जैविक खेती और पंचगव्य चिकित्सा" विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित की जा रही है। इस संगोष्ठी के आयोजन अध्यक्ष प्रो. के.एन. मूर्ति (आयुर्वेद संकाय) और आयोजन सचिव प्रो. ओ.पी. सिंह व प्रो. सुनंदा पेढेकर ने बताया कि इसमें विभिन्न राज्यों जैसे उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, दिल्ली, महाराष्ट्र, राजस्थान, कर्नाटक, केरल, असम, पश्चिम बंगाल, हिमाचल प्रदेश आदि से करीब 300 प्रतिभागी हिस्सा लेंगे। इसके साथ ही भारत के पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद समेत  नेपाल से भी विशेषज्ञ शामिल होंगे।                                                                   

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प्रतिभागियों में गो-विज्ञान अनुसंधान केंद्र, नागपुर के समन्वयक सुनील मानसिंहका, वैद्य नंदिनी भोजराज, डॉ. संजय वाते, प्रो. गुरु प्रसाद सिंह, डॉ. आर.एस. चौहान और गोपाल भाई सुतारिया सहित कई प्रमुख व्यक्तित्व होंगे। संगोष्ठी में कुल 200 एमडी और पीएचडी छात्र भी शोध पत्र प्रस्तुत करेंगे। इस संगोष्ठी का उद्देश्य भारतीय नस्ल की गायों और पंचगव्य चिकित्सा के माध्यम से विभिन्न बीमारियों जैसे कैंसर, मधुमेह, रक्तचाप, अवसाद और एलर्जी का उपचार खोजना है। इसके साथ ही जैविक खेती और दूध उत्पादन पर भी चर्चा की जाएगी। 

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दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक देश भारत 2020 में 184 मिलियन टन से अधिक दूध का उत्पादन कर चुका है। उत्तर प्रदेश और राजस्थान दूध उत्पादन में शीर्ष स्थान पर रहे हैं। संगोष्ठी में A1 और A2 दूध के बीच के अंतर पर भी चर्चा होगी, जिसमें A2 दूध को स्वास्थ्य के लिए अधिक लाभकारी माना गया है।

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पंचगव्य चिकित्सा के तहत पांच तत्वों — गाय का दूध, दही, घी, गोमूत्र और गोबर — के उपयोग पर भी विस्तृत चर्चा की जाएगी। आयोजक सचिव डॉ. ओ.पी. सिंह ने बताया कि पंचगव्य का उपयोग रक्त शोधन, पार्किंसन, अल्जाइमर, और अन्य बीमारियों के उपचार में किया जा सकता है। साथ ही गोमूत्र के एंटीमाइक्रोबियल और कर्करोग रोधक गुणों पर भी प्रकाश डाला जाएगा।

संगोष्ठी में कुल 15 सत्रों में 200 से अधिक शोध पत्र प्रस्तुत किए जाएंगे, जो पंचगव्य चिकित्सा, गोमूत्र के स्वास्थ्य लाभ और जैविक खेती पर केंद्रित होंगे।
 

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