BHU में तीन दिवसीय अन्तर्राष्ट्रीय ज्योतिष संगोष्ठी संपन्न, विद्वानों ने पंचांग व विवाह मेलापक पर रखे विचार, वैवाहिक जीवन के 36 गुणों पर हुई चर्चा

उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. देवी प्रसाद त्रिपाठी ने समाज में ज्योतिष की भूमिका पर चर्चा की। उन्होंने कहा कि जीवन में परेशानियां आना स्वाभाविक है और लोग इन समस्याओं के समाधान के लिए ज्योतिषियों की शरण में जाते हैं। हालांकि, वर्तमान समय में कुछ तथाकथित व्यावसायिक ज्योतिषी लोगों की मजबूरियों का फायदा उठाकर शास्त्रों का दुरुपयोग कर रहे हैं। उन्होंने जनता से आग्रह किया कि ऐसे नामधारी ज्योतिषियों से बचने की आवश्यकता है, जो केवल आर्थिक लाभ के लिए कार्य करते हैं।
विवाह में कुंडली मिलान की परम्परा सदियों से प्रचलित: डॉ. विक्की शर्मा
जम्मू-कश्मीर से आए डॉ. विक्की शर्मा ने हिंदू विवाह परंपरा में कुंडली मिलान के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि भारतीय समाज में विवाह केवल दो व्यक्तियों का नहीं, बल्कि दो परिवारों का मेल होता है। इसलिए विवाह से पहले कुंडली मिलान की परंपरा सदियों से प्रचलित है। कुंडली मिलान के माध्यम से यह समझा जाता है कि वर और वधू के ग्रह-नक्षत्र उनके वैवाहिक जीवन को किस प्रकार प्रभावित करेंगे। उन्होंने कहा कि उचित ज्योतिषीय उपायों से विवाह में आने वाली बाधाओं को दूर किया जा सकता है।
ग्रहों और खगोलीय पिंडों का मानव जीवन पर पड़ता है गहरा प्रभाव: डॉ. रंजीत
उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय, हल्द्वानी के डॉ. रंजीत दुबे ने बताया कि ग्रहों और खगोलीय पिंडों का हमारे जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। विवाह की चर्चा होते ही यह सुनिश्चित करना आवश्यक हो जाता है कि ग्रह अनुकूल स्थिति में हों ताकि जीवनसाथी के बीच सामंजस्य बना रहे। उन्होंने कहा कि ग्रहों की स्थिति का उचित विश्लेषण कर शुभ मुहूर्त में विवाह करने से सुख-समृद्धि में वृद्धि होती है।
गुण मिलान में नाड़ी कूट की प्राथमिकता
लखनऊ के डॉ. अनिरुद्ध शुक्ल ने गुण मिलान में नाड़ी कूट की सर्वोच्च प्राथमिकता को रेखांकित किया। उन्होंने बताया कि यदि नाड़ी कूट प्रतिकूल है, तो भले ही 28 गुणों का मिलान हो जाए, विवाह अशुभ माना जाता है। उन्होंने गुण मिलान की विस्तृत प्रणाली पर भी प्रकाश डाला। जिसमें सामने आया कि 31 से 36 गुणों का संयोजन सर्वश्रेष्ठ, 21 से 30 गुण: बहुत अच्छे, 17 से 20 गुण: मध्यम और 0 से 16 गुण: अशुभ होते हैं।
पति-पत्नी के बीच सामंजस्य के लिए गुण मिलान आवश्यक
उत्तराखंड के डॉ. नंदन तिवारी ने एक सफल गृहस्थ जीवन के लिए पति-पत्नी के बीच गुणों के मिलान की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि कुंडली व्यक्ति के जन्म स्थान, समय और तारीख के आधार पर बनाई जाती है। जन्म के समय ग्रह-नक्षत्रों की स्थिति को ध्यान में रखकर कुंडली तैयार की जाती है और विवाह के समय इसका मिलान किया जाता है। उन्होंने कहा कि कुंडली मिलान केवल परंपरा नहीं, बल्कि वैज्ञानिक आधार पर भी महत्वपूर्ण है।
केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, लखनऊ के प्रो. मदनमोहन पाठक ने पंचांग की महत्ता पर प्रकाश डाला। इसके बाद अध्यक्षीय उद्बोधन प्रो. नागेन्द्र पाण्डेय ने दिया। कार्यक्रम का संचालन सहायक आचार्य डॉ. रामेश्वर शर्मा ने किया, जबकि स्वागत विभागाध्यक्ष प्रो. शत्रुघ्न त्रिपाठी और धन्यवाद ज्ञापन प्रो. विनय कुमार पाण्डेय ने किया।
समापन सत्र में पंचांग निर्माण पर व्यापक विमर्श
नेपाल से आए प्रो. जयन्त आचार्य ने निर्बीज पंचांग निर्माण पर विशेष बल दिया और कहा कि भविष्य में ज्योतिष विभाग को सामयिक समस्याओं के समाधान हेतु प्रतिनिधित्व करना चाहिए। उन्होंने ज्योतिष विभाग को इस महत्वपूर्ण चर्चा के आयोजन के लिए बधाई दी।
इस संगोष्ठी में अनेक विद्वानों ने भाग लिया, जिनमें डॉ. निर्भय पाण्डेय, डॉ. लोकेश्वर शर्मा, प्रो. अशोक थपलियाल, डॉ. अधोक्षज पाण्डेय, डॉ. निगम पाण्डेय, प्रो. कृष्णेश्वर झा, डॉ. राहुल मिश्र आदि प्रमुख रूप से शामिल रहे। पंचम सत्र की अध्यक्षता प्रो. रामजीवन मिश्र ने की, जिन्होंने सामयिक पंचांग व्यवस्था पर परिचर्चा को अत्यंत महत्वपूर्ण और उपयोगी बताया। इस सत्र में मुख्य वक्ता प्रो. गिरिजा शंकर शास्त्री ने मेलापक की प्रासंगिकता पर विस्तृत विचार रखे।
विवाह संबंधी कठिनाइयों के समाधान हेतु ज्योतिषशास्त्र आवश्यक
विशिष्ट अतिथि पद्मश्री प्रो. कमलाकर त्रिपाठी ने आज के समाज में विवाह संबंधी कठिनाइयों के समाधान हेतु ज्योतिषशास्त्र की आवश्यकता को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि विवाह से पहले सही ज्योतिषीय परामर्श लेने से दांपत्य जीवन सुखी और समृद्ध हो सकता है।
पंचांग निर्माण के लिए पारंपरिक दृष्टिकोण को मिला समर्थन
सम्मेलन में कुल 63 विद्वानों ने पंचांग निर्माण पर अपने विचार रखे, जिनमें से 55 विद्वानों ने निर्वीज सूर्य और चंद्रमा पद्धति का समर्थन किया। इस प्रकार, 87 प्रतिशत विशेषज्ञों ने पारंपरिक पंचांग निर्माण पद्धति को सही ठहराया।
इस अवसर पर प्रो. विनय कुमार पाण्डेय ने घोषणा की कि भविष्य में निर्बीज पंचांग निर्माण पर व्यापक शोध किया जाएगा और इसे व्यवहारिक रूप से लागू करने के लिए कदम उठाए जाएंगे। धन्यवाद ज्ञापन प्रो. शत्रुघ्न त्रिपाठी ने किया। इस त्रिदिवसीय संगोष्ठी में 300 से अधिक विद्वानों और शोधार्थियों ने भाग लिया और इसे अत्यंत सफल बताया गया।