संस्कृत भाषा को बढ़ावा देने के लिए संपूर्णानंद संस्कृत यूनिवर्सिटी में शुरू हुई तीन दिवसीय कार्यशाला

वाराणसी। वाराणसी के संपूर्णानंद संस्कृत यूनिवर्सिटी में "भारतीय भाषाओं में संस्कृत भाषा के अध्यापक एवं छात्रों में कौशल का विकास" विषय पर तीन दिवसीय कार्यशाला का शुभारंभ हुआ। आई.के.एस.सेन्टर , संस्कृत भारतीय काशी प्रान्त एवं भारती भाषा समिति के संयुक्त तत्त्वावधान आयोजित कार्यशाला में मुख्यअतिथि के रूप अखिल भारतीय संगठन मंत्री के दिनेश कामत , दक्षिणी के विधायक नीलकंठ तिवारी और विद्यापीठ के कुलपति ए.के.त्यागी शामिल हुए।
कार्यक्रम के दौरान अखिल भारतीय संगठन मंत्री के दिनेश कामत ने कहा कि विश्व के अनेक ऐसे देश हैं, जहां पर उस देश की अपनी भाषा है। इसी प्रकार भारत की भी एक मात्र भाषा संस्कृत होनी चाहिए। विधायक नीलकंठ तिवारी ने संस्कृत संस्कृति एवं संस्कार का प्रवाह पर पर विचार प्रकट करते हुये कहा कि संस्कृत देववाणी भाषा है इसमें चारो पुरुषार्थ समाहित है।संस्कृत भारत मे अनेकों आक्रांताओं के बावजूद भी आज चिर रूप मे स्थापित है।दुनियाँ की सभी भाषाओं का मूल संस्कृत है।संस्कृत को नासा ने कम्प्यूटर की सुगम भाषा माना है।इसमे भाव व भाषा की शुद्धता है।संस्कृत भाषा से ही राष्ट्र को एक किया जाता है।भारत के सम्पूर्ण दिशाओं को एक करती है।
वही कार्यक्रम के दौरान महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के कुलपति प्रोफेसर आनंद कुमार त्यागी ने कहा कि संस्कृत भाषा मे हमारे सम्पूर्ण भारतीय ज्ञान परम्परा समाहित है।राष्ट्रीय शिक्षा निति-2020 के अन्तर्गत यह कार्यशाला आधार विन्दु है।संस्कृत शास्त्रों मे प्रद्योगिकी ज्ञान,औषधि ज्ञान आदि समाहित है।संस्कृत शास्त्रों में भारत की आत्मा समाहित है।आज विदेशों मे इसी पर कार्य शोध किया जा रहा है।आज युवाओं को संस्कृत की तरफ जोड़ने के लिये तकिनिकी ज्ञान को समाहित करने की जरुरत है।आज संस्कृत को आगे बढाने के लिये अन्य भाषाओं एवं शास्त्रों के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने की जरुरत है। कार्यक्रम के अध्यक्षता कर रहे संपूर्णानंद संस्कृत यूनिवर्सिटी के कुलपति प्रो. हरेराम त्रिपाठी ने कहा कि संस्कृत भाषा को जनभाषा बनाने के लिये संस्कृत भारती का प्रयास अत्यंत शोभनीय हैइससे भारतीय संस्कृति को जन जन में प्रसारित होगा।संस्कृत भाषा भारत की शोभा और आत्मा है इसमें दुनिया के सारे ज्ञान तत्व निहित हैं।वैश्विक पटल पर संस्कृत के माध्यम से ही हम स्थापित हो सकते हैं।
तीन दिवसीय कार्यशाला के प्रथम दिन प्रो रामपूजन पांडेय,प्रो हरिशंकर पांडेय,प्रो हरिप्रसाद अधिकारी (संयोजक),प्रो सुधाकर मिश्र,प्रो रमेश प्रसाद,प्रो महेंद्र पांडेय,प्रो विधु द्विवेदी,प्रो राजनाथ,प्रो अमित शुक्ल,प्रो हीरक कान्त,प्रो दिनेश गर्ग,डॉ विद्या चन्द्रा,डॉ रविशंकर पांडेय,डॉ नीतिन आर्य,डॉ विजेंद्र आर्य आदि मौजूद रहे।
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