पैगंबर मोहम्मद की बेटी के मकबरे के विध्वंस की बरसी पर शिया समुदाय का विरोध मार्च, सऊदी सरकार के खिलाफ उठी आवाज

8 शव्वाल, इस्लामी कैलेंडर के अनुसार ईद के आठवें दिन, वर्ष 1925 में सऊदी सरकार ने मदीना स्थित ऐतिहासिक कब्रिस्तान जन्नतुल बकी में पैगंबर मोहम्मद साहब की बेटी फात्मा ज़हरा और चार प्रमुख इमामों के मकबरों को गिरवा दिया था। इसी घटना की बरसी पर पिछले 50 वर्षों से शिया समुदाय हर साल इस दिन को "ब्लैक डे" (काला दिन) के रूप में मनाते हुए विरोध मार्च निकालता है।
सोमवार को निकला यह जुलूस कालीमहल से प्रारंभ होकर मैदागिन चौराहे तक पहुंचा और वहां से आगे बढ़ते हुए दारानगर स्थित शिया जामा मस्जिद पर समाप्त हुआ। जुलूस का संचालन अंजुमन हैदरी चौकी, बनारस द्वारा किया गया, जिसमें शहर की कई अन्य शिया अंजुमनों ने भी भाग लिया।
जुलूस के दौरान “सऊदी सरकार मुर्दाबाद” जैसे नारे लगाए गए और मांग की गई कि पैगंबर साहब की बेटी के रौजे का पुनर्निर्माण कराया जाए। इस संबंध में हाजी फरमान हैदर ने बताया कि 21 अप्रैल 1925 को सऊदी हुकूमत ने बुलडोजर चलवाकर फात्मा ज़हरा का मकबरा नष्ट करवा दिया था। तभी से शिया समुदाय इस दिन को विरोध दिवस के रूप में मना रहा है।
हाजी फरमान हैदर ने भारत सरकार से अपील किया कि राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को चाहिए कि वे इस मुद्दे को सऊदी सरकार के समक्ष उठाएं और मकबरे के पुनर्निर्माण की अनुमति दिलवाएं। उन्होंने कहा कि अगर सऊदी सरकार निर्माण की अनुमति दे दे, तो दुनिया भर के शिया समुदाय के लोग अपने खर्च पर उस रौजे का निर्माण करवा देंगे।
जुलूस कालीमहल से होकर शेख सलीम फाटक, नई सड़क, दालमंडी, चौक, नीचीबाग, मैदागिन होते हुए दारानगर तक पहुंचा। समापन से पहले शिया जामा मस्जिद में एक मजलिस का आयोजन भी किया गया, जिसमें धार्मिक वक्ताओं ने घटना की पृष्ठभूमि और वर्तमान संघर्ष की बात विस्तार से रखी।
प्रशासन की ओर से जुलूस को लेकर कड़े सुरक्षा इंतजाम किए गए थे। यह जुलूस चेतगंज, दशाश्वमेध, चौक और कोतवाली थाना क्षेत्रों से होकर गुजरा। पूरे मार्ग पर पुलिस बल तैनात रहा ताकि किसी भी अप्रिय स्थिति से बचा जा सके।