आरएसएस ने मनाया रक्षाबंधन उत्सव, डा. कृष्णगोपाल ने बताया रक्षाबंधन का महत्व
वाराणसी। श्रावण पूर्णिमा को हिंदू समाज की रक्षा का भाव लेकर हम सभी एक दूसरे को रक्षा सूत्र बांधते हैं। रक्षा सूत्र बांधते समय हमारी शिक्षा हमारी डिग्री हमारे एकत्व में बाधा नहीं आने देती है। भाषा, जाति, वर्ण, आर्थिक स्तर शैक्षणिक स्तर, सब गौण हो जाता है, केवल "हम एक हैं" यह भाव शेष रहता है। रक्षाबंधन के दिन स्वयंसेवक अपने मन, चिंतन एवं कृति से धर्म पालन का संकल्प लेता है। उक्त विचार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ काशी दक्षिण भाग की ओर से आयोजित ज्ञानदीप अकादमी में आयोजित संघ के प्रमुख 6 उत्सवों में एक रक्षाबंधन उत्सव में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्ण गोपाल ने व्यक्त किया।
उन्होंने कहा कि जब जब भारत की शक्ति जागृत हुई है तब तब ग्रीक, शक, हुण को हमने पराजित किया, जब भी देश विखंडित हुआ है मुट्ठी भर चने लेकर आने वाले लोग भी यहां शासन करने लगे। हमें रक्षाबंधन के पर्व पर संकल्प लेना होगा कि हमारी कृति, मन, आचरण, व्यवहार सनातन दर्शन के अनुकूल होना चाहिएl संविधान ने भारत के लोगों को समरसता का अधिकार दिया है परंतु संविधान के आधार पर ही नहीं, अपितु हमारे मन में भी समरसता का भाव स्पष्ट दिखना चाहिए। हिंदू समाज के विगत 1000 वर्षों का संघर्ष हमें बताता है कि यदि हम संगठित नहीं रहेंगे तो जिस प्रकार पूर्वकाल से खंडित होता हमारे देश का स्वरूप हमें दिख रहा है यदि भविष्य में यहां के लोग अपने देश और संस्कृति के बारे में सजग नहीं होंगे एवं अपने जीवन शैली में शामिल नही करेंगे तो यह खंडित होता स्वरूप कहां तक जाएगा।
प्राचीन भारत के ज्ञान के संदर्भ में सहसर कार्यवाह ने बताया कि हमने नक्षत्र की गति नापी, नदी देखकर रोग का निदान किया l मंदिर रचना, लौह स्तंभ रचना, व्याकरण, दर्शन, न्याय, गणित, बीजगणित, खगोल विज्ञान, बड़े जहाज द्वारा व्यापार, नालंदा तक्षशिला जैसे विश्वविद्यालय यह हमारे गौरव के प्रतीक थे। प्राचीन भारत आध्यात्मिक एवं आर्थिक दोनों रूपों से विश्व का सिरमौर था, किंतु मात्र एकता के अभाव में हमे विगत एक हजार वर्षों तक हमे संघर्ष करना पड़ा।
स्वतंत्रता संग्राम काल में रक्षाबंधन उत्सव
वक्ता ने बताया कि 1905 में जब बंग भंग आंदोलन प्रारंभ हुआ, तब कवि रवींद्रनाथ टैगोर एवं उनके साथियों ने रक्षाबंधन के दिन बंगाल के लोगों को गंगा किनारे बुलाकर नदी में स्नान करवाया एवं वहां से सभी लोग जुलूस निकालते हुए एक दूसरे को रक्षा सूत्र बांधते हुए आगे बढ़े यह आंदोलन इतना सफल रहा कि 1911 आते-आते बंग भंग का निर्णय समाप्त कर दिया गया। इस आंदोलन के प्रभाव से कोलकाता से राजधानी दिल्ली कर दी गई l
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भी समाज की इसी एकता को आदर्श रूप में लेते हुए रक्षाबंधन उत्सव को पूरे भारत में मनाने का निर्णय किया विगत 99 वर्षों से प्रतिवर्ष पूरे भारत में सभी स्वयंसेवक,हिंदू समाज के लोग एक दूसरे को रक्षा सूत्र बांध एक दूसरे की रक्षा का वचन देते हैंl राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में सर्वप्रथम शाखा में ध्वज को रक्षा सूत्र बांधा जाता है, क्योंकि ध्वज धर्म का प्रतीक है,प्राचीन सनातन मान्यता, परंपरा, कर्तव्य, दायित्व, शास्त्रों का प्रतीक है। यदि हम धर्म की रक्षा करेंगे तो धर्म भी हमारी रक्षा करेगा। इस भावना से हिंदू समाज को एक करने की आवश्यकता है।
काशी की जीवन शैली में निहित है समरसता का भाव
संसार की सुविख्यात नगरी काशी का का वर्णन करते हुए वक्त ने कहा कि यहां भारत एवं उसकी विभिन्न प्राचीन गौरवमयी संस्कृतियों का दर्शन होता हैl यहां तीर्थंकरों, शंकराचार्य, महात्मा बुद्ध, संत रविदास एवं संत कबीर जैसे मुनियों के विचारों का भी दर्शन होता है। यहां पर सभी ने अपने विचारों का तत्व बोध कराया। विभिन्न प्रकार की उपासना पद्धति को काशी ने विशेष स्थान दिया है। इसी प्रकार संघ भी हिंदू समाज में समन्वय को स्थापित करने का उद्देश्य लेकर कार्य कर रहा है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए प्रो. वांगचुक दोरजी नेगी (कुलपति, तिब्बती अध्ययन उच्च संस्थान सारनाथ) ने कहा कि माता-पिता का दायित्व है कि बच्चों में संस्कार डालें l बालकों में बौद्धिकता के विकास हेतु उन्हें किसी प्रकार के दबाव में नहीं डालना चाहिए। स्वयंसेवकों में सेवा भाव के समर्पण को अपने जीवन में आत्मसात करने का प्रयास करना चाहिए। कार्यक्रम की प्रारंभ में काशी विभाग के विभाग संघचालक प्रो. जेपी लाल एवं काशी दक्षिण भाग के भाग संघचालक अरुण कुमार सहित मंचस्थ अतिथियों ने भगवा ध्वज को रक्षा सूत्र बांधा एवं उसकी आरती उतारीl प्रार्थना के बाद सभी स्वयंसेवकों ने आपस में एक दूसरे को रक्षा सूत्र बांधकर समाज की रक्षा का संकल्प लिया। हनुमान प्रसाद पोद्दार महाविद्यालय से संबंधित पूर्वोत्तर भारत के बालक एवं बालिकाएं पारंपरिक वेशभूषा में आकर्षण का केंद्र रहे।
कार्यक्रम का संचालन भाग कार्यवाह रामकुमार ने किया। इस अवसर पर काशी प्रांत के प्रान्त प्रचारक रमेश, प्रांत कुटुंब संयोजक शुकदेव त्रिपाठी, काशी प्रांत अभिलेखागार प्रमुख सत्य प्रकाश पाल, विभाग कार्यवाह राजेश, विभाग प्रचारक नितिन, भाग प्रचारक आदर्श सहित बड़ी संख्या में समाज के बंधु, माताएं एवं भगिनी उपस्थित रही।
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