कुपोषण से जंग को जिले में चल रहा संभव अभियान, अतिकुपोषित व कुपोषित बच्चों का हो रहा चिह्नीकरण 

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वाराणसी। अति कुपोषित यानी सीवियर एक्यूट मालन्यूट्रीशन (सैम) एवं कुपोषित यानी मॉडरेट एक्यूट मालन्यूट्रीशन (मैम) से ग्रसित बच्चों को सुपोषित बनाने के लिए जून से सभंव 4.0 अभियान शुरू किया गया है। इस अभियान के तहत ऐसे बच्चों को चिह्नित कर उनका उपचार कराया जा रहा है। ताकि उन्हें सामान्य की श्रेणी में लाया जा सके। 

मुख्य विकास अधिकारी की निगरानी में गर्भवती और शिशु स्वास्थ्य की बेहतरी के लिए यह अभियान सितंबर माह तक चलेगा। अभियान में समस्त विकास खंडों में बाल विकास परियोजना अधिकारी (सीडीपीओ) की मॉनिटरिंग और मुख्य सेविका (सुपरवाइज़र) के पर्यवेक्षण में आंगनबाड़ी कार्यकर्ता अति कुपोषित बच्चों को चिह्नित कर रही हैं। चिह्नित सैम बच्चों का आंगनबाड़ी केंद्र पर ही उपचार किया जा रहा है। गंभीर बच्चों को पोषण पुनर्वास केंद्र (एनआरसी) पर भर्ती कर उपचार किया जा रहा है।

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जिला कार्यक्रम अधिकारी (डीपीओ) दिनेश कुमार सिंह ने बताया कि विगत तीन वर्षों में संभव अभियान सफलता पूर्वक आयोजन हुआ है, जिसमें वाराणसी को प्रदेश में तीसरा स्थान भी मिला है। पिछले अभियान से प्राप्त हुए सकारात्मक परिणाम के मद्देनजर इस वर्ष संभव अभियान का चतुर्थ चरण यानि SAMbhav 4.0 जून से सितम्बर तक संचालित किया जाएगा। अभियान का उद्देश्य अति कुपोषित व कुपोषित बच्चों का चिह्नांकन, उपचार व सामुदायिक स्तर पर उनके प्रबंधन के साथ कुपोषण की रोकयाम के लिए व्यवहार परिवर्तन पर जोर दिया जाना है। अभियान की मुख्य थीम कुपोषित बच्चों का चिह्नांकन, संदर्भन, उपचार, प्रबंधन व फॉलो-अप है। 

उन्होंने बताया कि अभियान के अंतर्गत एक जून से अब तक 22 अगस्त तक 848 सैम बच्चों को आंगनबाड़ी कार्यकर्ता के द्वारा ई-कवच पर चिन्हित किया गया। इसमें 824 सैम बच्चों में कोई गंभीर समस्या नहीं देखी गई, जिसमें से 595 बच्चों को आवश्यक दवा से उपचार किया गया। शेष बच्चों का भी उपचार किया जा रहा है। 24 बच्चों को एनआरसी के लिए चिन्हित किया गया, इसमें से 10 बच्चों को एनआरसी उपचार के लिए भेजा जा चुका है। शेष बच्चों को भी एनआरसी भेजा जाएगा। सभी चिन्हित सैम बच्चों का निरंतर फॉलो अप किया जा रहा है।


बताया कि संभव अभियान के अन्तर्गत सैम बच्चों के समुदाय आधारित प्रबंधन तथा समुदाय आधारित प्रबंधन को सुदृढ़ बनाने, गंभीर कुपोषित सैम बच्चों की पहचान, रेफरल और उपचार के लिए समुदाय आधारित कार्यक्रम को बढ़ावा दिया जा रहा है। इसमें स्वास्थ्य सुविधाओं की क्षमता को बढ़ाना, दवाओं की आपूर्ति श्रृंखलाओं को सुनिश्चित करना और प्रगति एवं परिणामों को ट्रैक करने के लिए निगरानी और शत-प्रतिशत रिपोर्टिंग को सुनिश्चित करना है। अभियान के सफलतापूर्वक संचालन में स्वास्थ्य विभाग, पंचायती राज विभाग, ग्राम्य विकास विभाग (मनरेगा व आजीविका मिशन), शिक्षा, खाद्य एवं रसद, पशुपालन, उद्यान व आयुष विभाग समेत यूनिसेफ व अन्य संस्थाओं का भी सहयोग लिया जा रहा है। सितंबर के अंत तक कम से कम 50 फीसदी बच्चों को सैम कटेगरी से बाहर लाने का लक्ष्य लेकर प्रयास किया जा रहा है।

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