' उमर के धूप चढ़ल धूप सहाती नईखे...' देश विषयक कार्यक्रम में कवियों ने बुलंद किए स्वर, क्रांतिकारियों कविताओं का हुआ मंचन
वाराणसी। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय परिसर स्थित भारत अध्ययन केंद्र के ओर से शुक्रवार को व्याख्यान सह काव्यपाठ ‘लोक कविता का देशरंग’ कार्यक्रम का आयोजन किया गया। जिसमें कवियों ने राष्ट्रचेतना, पूंजीवाद से बगावत आदि केंद्रित कविताओं का काव्यपाठ किया।
भोजपुरी के अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कवि मनोज भावुक ने कहा कि लोकभाषा में कविता रचने वाले कविओं के काव्य में प्रतिरोध का स्वर इतना तीखा था कि साम्राज्यवादी शासकों ने उन्हें जेल की लम्बी सजा दी। युवाओं को रघुवीर नारायण, मनोरंजन प्रसाद सिन्हा तथा गुन्जेश्वरी मिश्र ‘सुजश’ के कविता का पाठ आज भी करना चाहिए।
कार्यक्रम में नई दिल्ली के प्रसिद्ध कवि/फिल्म समीक्षक मनोज भावुक ने मुख्य वक्ता के तौर पर कहा कि लोक ही शास्त्र का प्रतिनिधित्व करता है। रघुवीर नारायण जी का बटोहीया गीत और प्रिंसिपल मनोरंजन प्रसाद सिन्हा जी का फिरगिंया गीत, लोक में राष्ट्र की चेतना को प्रदर्शित करता है। फिरगिंया गीत पर सिन्हा जी को जेल हुई। गुन्जेश्वरी मिश्र ‘सुजश’ को लुटेरवा गीत भी इन्होंने सुनाया और कहा कि इन तीनों गीतों ने स्वन्तत्रता आन्दोलन की अलख जगा दी। ‘जहां हेरैलै बानी बड़ बड़ ज्ञानी उहे देशवा हमार देशवा’, ‘उम्र के धूप चढ़ल धूप सहाती नईखे, हमरा हमराही के ईबात बुझाती नईखे’ जैसी कविताएं सुनाकर भावुक ने स्रोताओं को सराबोर कर दिया।
हिंदी विभाग के आचार्य प्रो० नीरज खरे ने कहा कि पूंजीवाद के लालच रूपी सैलाब में सब बह जाते हैं लेकिन लोक जीवित रहता है। बुन्देलखण्ड के जगनिक ने आल्हखण्ड ‘आल्हा’ की रचना की आल्हा और ऊदल के चरित्र से आज भी लोग देश भक्ति की प्रेरणा प्राप्त करते है। विभाग के ही आचार्य प्रो० प्रभाकर सिंह ने अवधी साहित्य पर बोलते हुए कहा कि यह अवधी भाषा ही है जिसमें मानस तथा पद्मावत जैसे कालजयी रचनाएं प्रदान कीं जो भारतीय संस्कृति की अमूल्य निधि है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे प्रो० वशिष्ठ अनूप, विभागाध्यक्ष, हिन्दी विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी ने कहा कि आज के युवा कवियों को रघुवीर नारायण जी से प्रेरणा लेकर काव्य रचना करनी चाहिए जिन्होंने भोजपुरी का पहला राष्ट्रगीत ‘सुन्दर सुभूमि भईया भारत के देशवा, मोरा मन बसे हिमखोह रे बटोहिया’ लिखा। ऐसा नही है कि भोजपुरी कविता में अब लेखन नही हो रहे।
आज के तारीख में गाजीपुर के तारकेश्वर मिश्र राही का लवकुश खण्डकाव्य भी अपने में विशिष्टता समाये हुए है। प्रो० वशिष्ठ अनूप ने आगे बोलते हुए कहा कि दुनिया के सभी लोगों को अपनी मातृभाषा अत्यन्त प्रिय होती है। यही रहस्य से की लोक बोली में रचे गये काव्य हमारे व्यक्तित्व को परिशोधन सहज ही कर जाते हैं।
युवाओं को समर्पित इस कार्यक्रम का स्वागत भाषण डॉ० ज्ञानेन्द्र नारायण राय एवं संचालन डॉ० अमित कुमार पाण्डेय ने तथा धन्यवादज्ञापन डॉ० अनूप पति तिवारी ने किया। भारत अध्ययन केन्द्र के सभागार में डॉ० अशोक कुमार ज्योति, डॉ० महेन्द्र प्रसाद कुशवाहा, डॉ० प्रियंका सोनकर, सोनी शर्मा, वंशिका राय तथा शुभम तिवारी सहित भारी संख्या में विभिन्न विभागों के छात्र उपस्थित रहे।
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