सही संस्कार व मुहूर्त का ज्ञान किसी को नहीं, अब नहीं पैदा हो रहे विवेकानंद व रामकृष्ण परमहंस, बीएचयू में वैदिक संगोष्ठी में वक्ताओं ने रखे विचार
वाराणसी। काशी हिंदू विश्वविद्यालय स्थित वेद विभाग के संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकार की ओर से एक दिवसीय राष्ट्रीय वैदिक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इसमें वैदिक वांगमय में संस्कार पर विमर्श हुआ। वक्ताओं ने संस्कार व मुहुर्त पर चर्चा की। संगोष्ठी दो सत्रों में हुई। प्रथम सत्र उद्घाटन तथा द्वितीय संपूर्ति सत्र रहा।
प्रथम सत्र के मुख्य अतिथि प्रो. बनारसी त्रिपाठी रहे। इन्होंने स्वर संस्कार पर विशेष वक्तव्य दिया। बताया कि संस्कार का तात्पर्य केवल लौकिक व्यावहारिक संस्कार ही नहीं है, अपितु किसी वस्तु क्रिया में व्याप्त उसके सम्पूर्ण गुण रहते हुए भी उसमें अन्य गुण का आधान करना ही संस्कार है। विशिष्ट अतिथि प्रो. रविंद्र भट्टाचार्य संकायाध्यक्ष संस्कृत कलकत्ता विश्वविद्यालय ने कहा की संस्कार विहीन मनुष्य को नित्य नैमित्तिक कार्य करने का भी अधिकार नहीं है। सारश्वत अतिथि प्रो. हृदय रंजन शर्मा ने बताया की वेदों में जीवन तीन स्तर के हैं - आधिदैविक, आधिभौतिक तथा आध्यात्मिक। इन्होंने आत्मा के संस्कार की बात कही। शरीर, इन्द्रिय के साथ अंत:करण को भी संस्कारित करना चाहिए। डॉ. सुभाष पांडेय जी ने कहा कि संस्कार सही मुहूर्त तथा सही समय में होना चाहिए, जिसका निर्देश हमारे ज्योतिष शास्त्रों में है। वर्तमान समय में स्वामी विवेकानंद और रामकृष्ण परमहंस हम नहीं उत्पन्न कर पा रहे हैँ क्योंकि सही संस्कार तथा मुहूर्त का ज्ञान किसी को नहीं है। अंत में अध्यक्षीय उद्बोधन में प्रोफेसर बिंध्येश्वरी प्रसाद मिश्र ने कहा कि कर्मकांड के विज्ञान को जनमानस तक पहुंचाने की आवश्यकता है आज धर्म के क्षेत्र में वेद प्रतिकूल प्रभाव आ रहे हैं।
प्रोफेसर पतंजलि मिश्र ने उपस्थितजनों का स्वागत किया। इन्होंने विषय उपस्थापन में कहा कि वर्तमान समय में संस्कार व वाणी के विषय में विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। इससे हमारी वाणी भी संस्कारित हो। धन्यवाद ज्ञापन प्रोफेसर हरीश्वर दीक्षित ने किया। इस सत्र का संचालन आचार्य सुनील कात्यान ने किया। अतिथियों का सत्कार व स्वागत अंगवस्त्र तथा रुद्राक्ष माला भेंट कर की गई। इसी बीच वेद विभागीय शिक्षण व छात्र जिन्हें अन्य स्थलों पर देश के विभिन्न शैक्षणिक संस्थाओं व राज्य स्तरीय सम्मान से सम्मानित हुए थे उन सभी को प्रशस्ति पत्र प्रदान किया गया। द्वितीय सत्र के मुख्य वक्ता आचार्य मनोज मिश्र ने संस्कार शब्द के व्यूत्पत्ती और उसके वैदिक संदर्भों पर प्रकाश डालते हुए वैदिक वांगमय में अनेक विधाओं पर कौशल प्राप्त विशद व्याख्यान दिया तथा वर्तमान कालिक प्रासंगिकता को निरूपित किया। साथ में इस सत्र के विशिष्ट अतिथि राममूर्ति चतुर्वेदी ने कहा कि किसी राष्ट्र को परिभाषित करने के लिए उसे राष्ट्र की कला और संस्कृति ही एकमात्र साधन है, जिस राष्ट्र की संस्कृति वहां के लोगों का संस्कार जितना उन्नत होगा, वह राष्ट्र संपूर्ण विश्व में अपने को उन्नत कर पाएगा। इस सत्र का संचालन डॉ नारायण प्रसाद भटराई तथा प्रो.उपेंद्र कुमार त्रिपाठी और धन्यवाद ज्ञापन उदय प्रताप भारती ने किया। इस दौरान छात्रों के शोध पत्र का भी वाचन किया गया। इसमें प्रमुख रूप से प्रोफेसर कौशलेंद्र कुमार पांडेय, कमलेश झा, शत्रुघ्न त्रिपाठी, प्राजंल मिश्र, शुभम तिवारी, प्रसून चतुर्वेदी, कृष्ण कुमार द्विवेदी, अमरेश, प्रशांत, अश्विनी विजय शर्मा आदि रहे।
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