मकर संक्रांति: बनारस के आसमान में होगा सियासी संग्राम, मार्केट में बुलडोजर बाबा के पतंगों की बढ़ी डिमांड

Makar Sankranti
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वाराणसी। काशी में पतंगों का बाजार सज गया है। पूर्वांचल की प्रमुख मंडी होने के कारण यहां ग्राहकों की भीड़ उमड़ रही है। इस बार नेताओं की तस्वीर वाले पतंगों की डिमांड मार्केट में है। इसमें मोदी-योगी photo और बुलडोजर वाले पतंगों की मार्केट में डिमांड ज्यादा है। 

कारोबारियों के मुताबिक, कागज की पतंगों में पंतहवा (बड़ी पतंग) की मांग ज्यादा है। इसके अलावा सिरफुटवा, सिरफुटे में पट्टीदार, तिरंगा, अधरंगी, चौपड़ा, दो बाज, स्टार, चांद तारा, हीरो-हीरोइन की तस्वीर वाली, कार्टून, लाल, हरी, काली, नीली पतंग की डिमांड मार्केट में है। छड़ीला, डब्बूमारा, बेलम, अक्खा, बद्धा, मॉमपारा, चांदतारा, गिलासा वाली तस्वीरों की भी पूछ कम नहीं है। पतंगों की भी साइज होती है। बाजार में यह आड़ी, मझोली, अद्धी, पौनी व पानताबा साइज में उपलब्ध है। 

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इन सभी के अलावा बच्चों में कार्टून किरदार वाले पतंगों का भी क्रेज है। पतंगों पर डोरेमान, बार्बी डाल, पब्जी, मोटू-पतलू, छोटा भीम, स्पाइडर मैन, शिवा, कृष्णा आदि कार्टून के चित्र बने हुए हैं। बाजार में रामपुर और मुरादाबाद की प्रिंटेड पतंगों की भी डिमांड है। बनारस सहित आसपास के जिलों के व्यापारियों ने इन पतंगों की खरीदारी पर ज्यादा जोर दिया है। 

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पतंग उड़ाना भी एक कला

बनारस में चरखी, मांझा व धागों के बगैर पतंगबाजी अधूरी हैं। पतंग की कन्नी बांधना भी कला हैं। हवा कम हो तो उसमें पतंग उड़ाना, हवा तेज हो तो उसमें पतंग संभालना अद्भुत कला हैं। साथ ही मांझों से हाथ को बचाना भी किसी कला से कम नहीं है। पतंग को उड़ाने के लिए तैयार करते समय हवा में उसका संतुलन साधने, उसे इच्छित दिशाओं में मोड़ सकने और डोर से उसका रिश्ता बनाए रखने के लिए कन्ने बांधे जाते हैं। 

पतंगबाजी करने वाले जानते हैं कि पतंग को ठीक से उड़ा सकने लायक बनाने में कन्नों का कितना महत्व है। यदि कन्नों का संतुलन बिगड़ा तो हो सकता है पतंग उड़ ही नहीं पाए। अच्छा पतंगबाज यह भी बारीकी से देखता है कि पतंग के कागज में कही कोई छेद तो नहीं है। यदि ऐसा हुआ तो उड़ने के बाद वह छेद हवा के दबाव के कारण पतंग के फट जाने का कारण भी बन सकता है। पतंगबाजों का कहना है कि अपनी पतंग पर नजर टिकाने के साथ पड़ोसी की पतंग को काटने की कला जिसे महारत है, वहीं असली पतंगबाज माना जाता है।

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पतंग नहीं, डोर कटती है

पुरनिए बताते हैं कि आमतौर पर पतंगबाजी में जब पेंच लड़ाए जाते हैं तो उसके नतीजे में कहा जाता है कि पतंग कट गई। लेकिन किसी भी पेंचबाजी में पतंग नहीं कटती। कटती तो डोर ही है। इसलिए डोर का यानी आपकी कोशिशों का मजबूत होना बहुत जरूरी है। पतंग भले ही आसमान में उड़ रही होती है लेकिन तभी तक जब तक उसका रिश्ता जमीन यानी डोर से जुड़ा हो। जिस क्षण यह डोर कटी, उस क्षण पता नहीं हवा पतंग को कहां ले जाकर पटके कोई नहीं कह सकता। कुल मिलाकर पतंग या पतंगबाजी सिर्फ खेल या शौक भर नहीं, बहुत बड़ा जीवन दर्शन भी है।

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