सुर और शब्दों के अलौकिक संगम के साथ वाराणसी में महिंद्रा कबीरा फ़ेस्टिवल का समापन
वाराणसी: कबीर के शब्दों और सुरों से सजे महिंद्रा कबीरा फ़ेस्टिवल का यादगार समापन 21 दिसंबर 2025 को वाराणसी में हुआ। ढाई दिनों तक चले इस गहन सांस्कृतिक आयोजन में 15वीं सदी के रहस्यवादी कवि कबीर के जीवन, दर्शन और आज के समय में उनकी प्रासंगिकता का उत्सव मनाया गया। महिंद्रा समूह द्वारा स्थापित और टीमवर्क आर्ट्स द्वारा निर्मित इस फ़ेस्टिवल ने एक बार फिर शहर के ऐतिहासिक घाटों और विरासत स्थलों को संगीत, संवाद और आत्मचिंतन के जीते-जागते केंद्रों में बदल दिया।

अंतिम दिन की शुरुआत गुलेरिया कोठी में ‘सबलाइम मॉर्निंग्स’ के साथ हुई, जहाँ श्रोताओं ने तेजस्विनी वर्नेकर के हिंदुस्तानी शास्त्रीय गायन और ख़याल की प्रस्तुति का रसास्वादन किया। इसके बाद देबस्मिता भट्टाचार्य ने सरोद पर सुंदर और भावपूर्ण प्रस्तुति दी। इन प्रस्तुतियों ने शास्त्रीय परंपराओं में निहित ध्यानमग्न और चिंतनशील वातावरण रचा। ‘इवोकेटिव आफ़्टरनून्स’ सत्रों में विचारोत्तेजक संवादों ने फ़ेस्टिवल को वैचारिक रूप से समृद्ध किया। पुरुषोत्तम अग्रवाल द्वारा प्रस्तुत ‘निज ब्रह्म विचार: रिफ्लेक्शन ऑन द ट्रूथ’ में कबीर के विचारों, आध्यात्मिक जिज्ञासा और समकालीन प्रासंगिकता पर गहरी अंतर्दृष्टि सामने आई। इसके साथ ही फ़ेस्टिवल के दौरान डेलिगेट्स के लिए विशेष रूप से तैयार किए गए विरासत भ्रमण के सत्र भी जारी रहे, जिनमें पंचगंगा वॉक और मंदिर-दर्शन शामिल थे। ये यात्राएँ कबीर की वाराणसी से जुड़े भौतिक और आध्यात्मिक परिदृश्यों से होकर गुज़रीं। इन अनुभवों ने शहर के इतिहास के साथ ही उसके पवित्र स्थलों, गलियों और रोज़मर्रा की लय को जीवंत किया, जिसने कबीर के चिंतन और काव्य को आकार दिया।

फ़ेस्टिवल का समापन शिवाला घाट पर ‘इक्लेक्टिक ईवनिंग्स’ के साथ हुआ, जहाँ आदित्य प्रकाश एंसेंबल ने गहन भावपूर्ण प्रस्तुति दी। इसके बाद अगम की प्रस्तुति ने समकालीन सुरों और आध्यात्मिक ऊर्जा के संगम के साथ फ़ेस्टिवल को यादगार समापन तक पहुँचाया। गंगा के शाश्वत तट पर सजी यह संध्या लंबे समय तक स्मृति में रहने वाली है।

21 दिसंबर को समापन के साथ महिंद्रा कबीरा फ़ेस्टिवल 2025 ने एक बार फिर स्वयं को ऐसे मंच के रूप में स्थापित किया, जहाँ संगीत, विद्वत्ता, विरासत और आध्यात्मिक खोज एक मंच पर आते हैं। यह फ़ेस्टिवल कबीर को अतीत के एक ऐतिहासिक व्यक्ति के रूप में नहीं, बल्कि एक ऐसी कालजयी आवाज़ के रूप में प्रस्तुत करता है, जो आज भी उतनी ही ताकत से हमारे समय से संवाद करती है।

