आचार्य कमलेशदत्त त्रिपाठी की जयंती पर व्याख्यान का आयोजन, विद्वानों ने शब्द तत्व पर रखे अपने विचार

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वाराणसी। इन्दिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केन्द्र के क्षेत्रीय केंद्र वाराणसी के ओर से महामहोपाध्याय आचार्य कमलेशदत्त त्रिपाठी की स्मृति में उनकी जयंती पर को विशिष्ट स्मारक व्याख्यान का आयोजन क्षेत्रीय केन्द्र संगोष्ठी कक्ष में किया गया। इन्दिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केन्द्र के क्षेत्रीय निदेशक डॉ० अभिजित दीक्षित एवं आचार्य कमलेशदत्त त्रिपाठी के पुत्र डॉ० पारिजात त्रिपाठी ने अतिथियों का अंगवस्त्र एवं पुष्पहार से स्वागत किया। 

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कार्यक्रम के मुख्य वक्ता सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय के राजशास्त्र विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रोफेसर नरेन्द्रनाथ पाण्डेय महामहोपाध्याय आचार्य कमलेशदत्त त्रिपाठी की स्मृति में ‘‘शब्दाद्वैत एवं ब्रह्माद्वैत का तुलनात्मक अध्ययन’’ विषय पर व्याख्यान देते हुए कहा कि शब्दतत्त्व जो कि व्याकरण का प्रमुख प्रतिपाद्य विषय है। उसके गंभीर चिन्तन का उत्स संहिता काल के अनेक सूक्तों तथा मन्त्रों में शब्दतत्त्व का चिन्तन स्पष्ट प्रतिपादित है। 

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कहा कि आचार्य भर्तृहरि ने सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य यह किया है कि अपने समय तक जिन आचार्यों ने व्याकरण सम्बन्धी विचार व्यक्त किये थे उनका कहीं संकेत रूप में और कहीं स्पष्ट रूप में उल्लेख करके  व्याकरणदर्शन की प्राचीन परम्परा हमारे समक्ष रखी है। विद्वान् वक्ता ने शब्द के व्युत्पत्तिपरक अर्थ को बताते हुए कहा कि शब्द अर्थ का आह्वान करता है। शब्द की चार प्रवृत्ति है - ‘‘चतुष्टयी शब्दानां प्रवृत्ति’’।  इसके साथ ही ओजस्वी वक्ता ने शब्द और अर्थ के सम्बन्ध को अत्यन्त ही सरलता के साथ रेखांकित किया और कहा कि ज्ञान की प्रकाश से भ्रम की निवृत्ति हो जाती है।

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व्याख्यान सत्र की अध्यक्षता कर रहे व्याकरण एवं दर्शन शास्त्र के मर्मज्ञ विद्वान् प्रोफेसर कृष्णकान्त शर्मा ने कहा कि आचार्य कमलेशदत्त त्रिपाठी की साधना उनकी वक्तव्य से झलकता था। आचार्य कमलेशदत्त त्रिपाठी जी के अनुसार आचार्य भर्तृहरि व्याकरण के तीन रूप का उल्लेख किया है। शास्त्ररूप, स्मृतिरूप और आगमरूप। वाक्यपदीय व्याकरण आगम का ग्रन्थ है जो त्रिपाठीजी का अत्यन्त ही प्रिय विषय था। शब्दाद्वैत और ब्रह्माद्वैत को स्पष्ट करते हुए प्रो० शर्मा ने कहा कि भर्तृहरि के मत में पद में वर्ण नहीं है, वर्ण में अवयव नहीं है और शब्द का कोई विभाग नहीं है। ‘‘अनादिनिधनं ब्रह्म’’ को ही शब्दतत्त्व कहा है। वेद ही ब्रह्म प्राप्ति का उपाय है। वो ब्रह्म की अनुकृति है, ब्रह्म का स्वरूप है। शब्द उसका उपग्राहक है, शब्द उसका ग्रहण करता है इसीलिए ब्रह्म को शब्दतत्त्व कहा गया है।

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इस अवसर पर प्रसिद्ध ध्रुपद-गायक प्रो० ऋत्विक् सान्याल जी ने ध्रुपद-गायन प्रस्तुत किया। जिसमें नादब्रह्म की उपासना के द्वारा उन्होंने नाट्यशास्त्र के आधार पर ध्रुवपदों के शास्त्रीय प्रयोग प्रदर्शित किये। कार्यक्रम में काशी के विशिष्ट विद्वानों में प्रोफेसर मारुति नन्दन प्रसाद तिवारी, प्रो० सीताराम दुबे, प्रो० गोपबन्धु मिश्र, प्रो० युगलकिशोर मिश्र, प्रो० सदाशिव कुमार द्विवेदी, प्रो० शान्तिस्वरूप सिन्हा, विजय शंकर त्रिपाठी, डॉ० नरेन्द्रदत्त तिवारी डॉ० कृष्णानन्द सिंह, डॉ० वी रामनाथन आदि प्रमुख हैं। कार्यक्रम का संचालन डॉ० रजनीकान्त त्रिपाठी ने किया एवं धन्यवाद ज्ञापन डॉ० पारिजात त्रिपाठी ने किया।

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