आईयूसीटीई वाराणसी में अंतरराष्ट्रीय प्रशिक्षण कार्यक्रम “द डिजिटल पेडागॉजी, एजुकेटर्स फॉर टुमॉरो” का शुभारंभ

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वाराणसी। अंतर विश्वविद्यालय अध्यापक शिक्षा केंद्र (आईयूसीटीई) परिसर में सोमवार को “द डिजिटल पेडागॉजी: एजुकेटर्स फॉर टुमॉरो” विषय पर सात दिवसीय अंतरराष्ट्रीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का भव्य शुभारंभ हुआ। यह कार्यक्रम भारत सरकार के विदेश मंत्रालय के ग्लोबल साउथ (साउथ–साउथ कोऑपरेशन) के अंतर्गत संचालित इंडियन टेक्निकल एंड इकोनॉमिक कोऑपरेशन (आईटीईसी) कार्यक्रम के तहत आयोजित किया जा रहा है। इस प्रशिक्षण का उद्देश्य ग्लोबल साउथ के देशों से आए शिक्षकों को डिजिटल युग की बदलती शैक्षिक आवश्यकताओं के अनुरूप सक्षम बनाना है।

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उद्घाटन सत्र की शुरुआत मंगलाचरण के साथ हुई। इसके पश्चात दीप प्रज्वलन कर माँ सरस्वती तथा महामना पंडित मदन मोहन मालवीय जी की प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित की गई। कार्यक्रम में उपस्थित अंतरराष्ट्रीय प्रतिभागियों के समक्ष संस्थान के पिछले 11 वर्षों की विकास यात्रा को दर्शाता एक विशेष वीडियो भी प्रदर्शित किया गया, जिसने आईयूसीटीई की शैक्षणिक उपलब्धियों और वैश्विक योगदान को रेखांकित किया।

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इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में काशी हिंदू विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. अजीत कुमार चतुर्वेदी उपस्थित रहे, जबकि विशिष्ट अतिथि पूर्व कुलपति, केंद्रीय विश्वविद्यालय बड़ौदा (गुजरात) प्रो. आर. एस. दुबे रहे। उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता आईयूसीटीई के निदेशक प्रो. प्रेम नारायण सिंह ने की। कार्यक्रम में आईयूसीटीई के डीन (शैक्षणिक एवं शोध) प्रो. आशीष श्रीवास्तव ने सभी अतिथियों और विभिन्न देशों से आए प्रतिभागियों का स्वागत किया तथा कार्यक्रम के उद्देश्य, संरचना और महत्त्व पर विस्तार से प्रकाश डाला।

मुख्य अतिथि प्रो. अजीत कुमार चतुर्वेदी ने अपने संबोधन में कहा कि पेडागॉजी हजारों वर्षों से मानव सभ्यता का अभिन्न हिस्सा रही है। ज्ञान का हस्तांतरण तकनीक से पहले भी होता रहा है, किंतु समय के साथ शिक्षण के साधन बदले हैं। उन्होंने ब्लैकबोर्ड से लेकर पावर प्वाइंट और ज़ूम जैसे डिजिटल माध्यमों तक के सफर का उल्लेख करते हुए कहा कि तकनीक ने शिक्षा की पहुँच तो बढ़ाई है, लेकिन कई बार शिक्षक और विद्यार्थी के बीच की अंतःक्रिया को सीमित भी किया है। ऐसे में शिक्षकों के लिए यह आवश्यक हो गया है कि वे तकनीक के साथ-साथ नवाचारी शिक्षण विधियों को अपनाएं, ताकि विद्यार्थियों से बेहतर जुड़ाव स्थापित किया जा सके।

विशिष्ट अतिथि प्रो. आर. एस. दुबे ने कहा कि काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना भारतीय ज्ञान परंपरा और आधुनिक विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के समन्वय के उद्देश्य से की गई थी। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि तकनीकी विकास मानव-केंद्रित होना चाहिए, जिससे शिक्षा के माध्यम से व्यक्तित्व का समग्र विकास संभव हो सके।

प्रो. प्रेमनारायण सिंह ने कालिदास के प्रसिद्ध कथन का उल्लेख करते हुए कहा कि कोई शिक्षक गहन ज्ञान से युक्त होता है, तो कोई उत्कृष्ट संप्रेषण कौशल से, लेकिन जिसमें दोनों गुण हों वही श्रेष्ठ शिक्षक कहलाता है। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि यह अंतरराष्ट्रीय प्रशिक्षण कार्यक्रम प्रतिभागियों को एक अच्छे शिक्षक से और भी बेहतर शिक्षक बनने की दिशा में प्रेरित करेगा।

कार्यक्रम के दूसरे सत्र में प्रो. आशीष श्रीवास्तव ने “द ह्यूमन कैनवस: पोर्ट्रेट्स ऑफ लर्नर्स इन अ डिजिटल एज” विषय पर व्याख्यान दिया। उन्होंने डिजिटल युग में शिक्षार्थियों की बदलती प्रकृति, विविध सीखने की शैलियों और उनकी आवश्यकताओं को समझने की आवश्यकता पर जोर दिया। तीसरे सत्र में डॉ. राजा पाठक और डॉ. दीप्ति गुप्ता ने संयुक्त रूप से “ओपनिंग चैप्टर्स: वॉयसेज़, जर्नीज़ और डिजिटल टीचिंग की कला” विषय पर सत्र का संचालन किया, जिसमें शिक्षकों की शैक्षणिक यात्राओं और डिजिटल शिक्षण को प्रभावी बनाने के तरीकों पर चर्चा की गई।

इस सात दिवसीय कार्यक्रम में श्रीलंका, बेलारूस, कंबोडिया, इक्वाडोर, घाना, कजाकिस्तान, केन्या, मोरक्को, मोज़ाम्बिक, म्यांमार, नामीबिया, नेपाल, रूस, रवांडा, तंजानिया, तुर्कमेनिस्तान, उज्बेकिस्तान, वियतनाम, इथियोपिया, ताजिकिस्तान, ज़ाम्बिया, ज़िम्बाब्वे, कोट द’ईवोआर तथा ट्रिनिडाड और टोबैगो सहित 24 देशों के 40 शिक्षक प्रतिभाग कर रहे हैं।

कार्यक्रम के निदेशक प्रो. आशीष श्रीवास्तव हैं, जबकि समन्वय की जिम्मेदारी डॉ. राजा पाठक निभा रहे हैं। सह-समन्वयक के रूप में डॉ. दीप्ति गुप्ता और डॉ. सुनील कुमार त्रिपाठी सक्रिय भूमिका में हैं। आईयूसीटीई के अन्य सभी संकाय सदस्य एवं कर्मचारी भी इस अंतरराष्ट्रीय प्रशिक्षण कार्यक्रम के सफल आयोजन में महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं।

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