जलवायु खतरों के प्रभावों को कम करने के लिए क्षेत्रीय कृषि संबंधी रणनीति विकसित करने पर अंतरराष्ट्रीय कार्यशाला का हुआ आयोजन
वाराणसी। अंतराष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान (इर्री) के दक्षिण एशिया क्षेत्रीय केंद्र (आइसार्क) में चावल, गेहूं और मक्का पर जलवायु संबंधी खतरों के प्रभावों को कम करने के लिए संभावित अनुकूलन विकल्पों पर चर्चा हेतु रविवार को एक अंतराष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। इस कार्यशाला का आयोजन एक्सीलेंस इन एग्रोनोमी (ईआईए) के तहत एक क्षेत्रीय कार्यक्रम-दक्षिण एशिया के लिए खाद्यान्न प्रणाली की पहल (सीसा), ट्रांस्फोर्मिंग एग्री फ़ूड सिस्टम्स इन साउथ एशिया (ताफ्सा) एवं भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद्- केन्द्रीय बारानी कृषि अनुसन्धान संस्थान (आईसीएआर-क्रीडा), हैदराबाद द्वारा संयुक्त तौर पर किया गया।
इस कार्यशाला में अनुसंधान एवं विकास गतिविधियों से जुड़े संस्थानों जैसे इर्री, इंटरनेशनल मेज़ एंड वीट इम्प्रूवमेंट सेंटर (सिमिट), अर्ध-शुष्क उष्णकटिबंधीय के लिए अंतर्राष्ट्रीय फसल अनुसंधान संस्थान (इक्रिसेट), आईसीएआर-क्रीडा, आईसीएआर-रिसर्च काम्प्लेक्स फॉर ईस्टर्न रीजन (आईसीएआर-आरसीइआर), भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, उत्तर प्रदेश एवं बिहार के कृषि विज्ञान केंद्र, बिहार कृषि विश्वविद्यालय एवं कॉर्नेल विश्वविद्यालय ने प्रतिभागिता की।
क्रीडा के निदेशक डॉ. वी. के. सिंह, सिमिट सीसा के प्रमुख डॉ. पीटर क्राउफर्ड, आईसीएआर-क्रीडा के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. बी.एम्.के राजू, आईसीएआर-आरसीइआर के निदेशक डॉ. अनुप दास,इक्रिसेट के वैश्विक निदेशक डॉ. एम्.एल. जाट, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान एग्रोनॉमी डिवीजन के प्रमुख डॉ. एस.एस. राठौड़ , आईएसएआरसी के निदेशक डॉ. सुधांशु सिंह, और ईआईए क्षेत्रीय प्रमुख और इर्री के प्रधान वैज्ञानिक (खरपतवार विज्ञान और सिस्टम एग्रोनॉमी) डॉ. वीरेंद्र कुमार भी इस कार्यक्रम में उपस्थित थे।
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए, आईसीएआर-क्रीडा के निदेशक डॉ. वी.के. सिंह ने सबसे पहले आइसार्क में उपलब्ध विश्व स्तरीय और तकनीकी रूप से उन्नत वैज्ञानिक सुविधाओं की सराहना करते हुए कहा कि इर्री से जुड़े हुए अन्य हितधारक आइसार्क वाराणसी आकर यहां अनुसंधान एवं विकास से सम्बंधित गतिविधियों से ज्ञान एवं अनुभव प्राप्त कर सकते हैं। डॉ. सिंह ने आगे कहा “हम इस कार्यशाला की मेजबानी के लिए आइसार्क के बहुत आभारी हैं। इस कार्यशाला के माध्यम से दक्षिण एशिया की विभिन्न एजेंसियों के प्रतिष्ठित कृषि विज्ञान विशेषज्ञों को आपस में बातचीत करने और पैस (PAiCE) टूल के तीसरे मॉड्यूल पर चर्चा करने के लिए एक उत्कृष्ट मंच प्राप्त हुआ है। कार्यशाला का मुख्य उद्देश्य जलवायु संबंधी खतरों के प्रभावों को कम करने के लिए संभावित अनुकूलन विकल्पों की पहचान करना, उनका मूल्यांकन करना और प्राथमिकता के लिए उन्हें मान्य करना है। यह चौथी कार्यशाला है जिसमें हम पैस (PAiCE) के अंतर्गत आने वाले विभिन्न मॉड्यूलों पर बातचीत कर रहे हैं। मुझे उम्मीद है कि कार्यशाला के अंत में, हमारे पास पूर्वी आईजीपी (बिहार और यूपी) के लिए एक कुशल और मान्य मॉड्यूल होगा”।
आइसार्क के निदेशक डॉ. सुधांशु सिंह ने इस कार्यशाला के आयोजन की मेजबानी सौंपने के लिए आयोजन एजेंसियों के प्रति आभार व्यक्त करते हुए एवं पैस(PAiCE) के बारे में बतलाते हुए कहा, “पैस (बदलते परिवेश में कृषि विज्ञान को प्राथमिकता देना) एक संवादात्मक उपकरण है, जिसे जलवायु संबंधी खतरों को कम करने की प्राथमिकता प्रक्रिया और अनुकूलन विकल्पों की पहचान में सहायता के लिए विकसित किया गया है। इसे चार मॉड्यूलों के आसपास बनाया गया है, जिनमें से दो मॉड्यूल प्रमुख फसलों के क्षेत्र और उत्पादन के आर्थिक मूल्य के आधार पर सिस्टम लक्षण वर्णन और प्रत्येक फसल और मौसम के लिए प्रमुख जलवायु चुनौतियों और खतरों की पहचान और प्राथमिकता से निपटते हैं। आज की कार्यशाला के ज़रिये विशिष्ट क्षेत्रों और फसलों के लिए अधिकतम लाभ प्राप्त करने के लिए संभावित अनुकूलन विकल्पों के प्रभाव, लागत और मूल्य के आधार पर बहुआयामी अनुकूलन रणनीतियों पर चर्चा की जायेगी ।” साथ ही उन्होंने कृषि-खाद्य प्रणालियों के प्रगति और सतत विकास को बढ़ावा देने में इर्री की मजबूत प्रतिबद्धता और निरंतर समर्थन को भी व्यक्त किया।
अनुसंधान उपकरणों के महत्व पर जोर देते हुए, डॉ. पीटर क्रैफर्ड ने कहा, “ विशिष्ट प्रतिक्रिया विकल्पों के लिए मान्यताओं का परीक्षण और साक्ष्यों का समूहन अनुसंधान, विकास और नीति नेटवर्क में आम सहमति और सुसंगतता का निर्माण करेगा। अनुसंधान एवं विकास, स्केलिंग और जोखिम हस्तांतरण प्राथमिकताओं को अलग-अलग करने से सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के निवेश का अधिकतम लाभ उठाने में मदद मिलेगी, और विशिष्ट उत्पादन पारिस्थितिकी संदर्भों के लिए स्पष्ट रूप से व्यक्त प्राथमिकताएं तेजी से अनुकूलन बदलावों को सशक्त बनाएंगी।”
मॉड्यूल विकसित करने में सहयोगात्मक प्रयासों की अपील करते हुए, आईसीएआर-आरसीईआर के निदेशक डॉ. अनुप दास ने राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय हितधारकों को फसल उत्पादन और प्रबंधन विकल्पों में सुधार के लिए एकजुट होने और अवसरों का पता लगाने के लिए प्रोत्साहित किया। बाद में, कार्यशाला के प्रतिभागियों ने चर्चा कर PAiCE टूल के तीसरे मॉड्यूल की समीक्षा की और पूर्वी यूपी और बिहार में किसानों के सामाजिक-आर्थिक व्यवहार्यता, पर्यावरणीय चिंताएँ, आदि के आधार पर जलवायु संबंधी चुनौतियों से निपटने के लिए विभिन्न अनुकूलन विकल्पों पर अपनी अंतर्दृष्टि और धारणाएं प्रस्तुत कीं। कार्यक्रम का समापन डॉ. वीरेंद्र कुमार और डॉ. पीटर क्राउफर्ड द्वारा किया गया।
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