भोजपुरी में ‘लाठी और गमछा’ को जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन ने दिलाई पहचान: प्रो० श्रीप्रकाश शुक्ल
पुलिया प्रसंग के संरक्षक व प्रख्यात कवि प्रो.श्रीप्रकाश शुक्ल ने कहा कि तमाम विवादों के बावजूद ग्रियर्सन पर बातचीत होनी चाहिए। ग्रियर्सन ने देशज सामर्थ्य और औपनिवेशिक ताकत के मध्य संतुलन बनाने का कार्य किया। तुलसीदास के संदर्भ में ग्रियर्सन का कार्य महत्वपूर्ण है, यद्यपि इसके पीछे सूक्ष्म दृष्टि से उनका औपनिवेशिक मन भी काम कर रहा था। लोकभाषाओं को लेकर भी ग्रियर्सन का कार्य महत्वपूर्ण है। वे लोक की ताकत को समझ रहे थे लेकिन इसी के साथ कहीं-न-कहीं हिंदी की बोलियों को अलग-अलग करने की भी कोशिश कर रहे थे।
प्रो० शुक्ल ने आगे कहा कि भोजपुरी भाषा को लेकर ग्रियर्सन का कार्य महत्वपूर्ण है। भोजपुरी प्रदेश की पहचान 'लाठी और गमछा' को महत्वपूर्ण पहचान दिलाने में ग्रियर्सन की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण रही लेकिन इन सबके बीच भोजपुरी को लेकर उनका औपनिवेशिक विभाजनकारी मन भी कार्य कर रहा था। ग्रियर्सन के कार्यों में अपने अंतर्विरोधों के बावजूद भी हिंदी साहित्य को समझने के लिए अनेक महत्वपूर्ण सूत्र विद्यमान हैं।
युवा आलोचक डॉ. विंध्याचल यादव ने कहा कि ग्रियर्सन अपना इतिहास लेखन तब कर रहे थे जब नागरी प्रचारिणी सभा का इतिहास सामने नहीं आया था। उनका इतिहास ग्रन्थ उनके एक शोध पत्र का विकसित स्वरूप है। ग्रियर्सन के इतिहास लेखन के केंद्र में भक्तिकाल और विशेष रूप से तुलसीदास हैं। उनके इतिहास लेखन का बड़ा प्रभाव आचार्य रामचंद्र शुक्ल के इतिहास ग्रन्थ पर है। लोकभाषाओं के संदर्भ में ग्रियर्सन का कार्य महत्वपूर्ण है।
युवा कवि डॉ. अमरजीत राम ने कहा कि अपने तमाम अंतर्विरोधों के बावजूद हिंदी साहित्य इतिहास लेखन में ग्रियर्सन का योगदान महत्वपूर्ण है।लोक साहित्य,भाषा अध्ययन व भक्तिकाल की समझ में आज भी वे उल्लेखनीय हैं। इस अवसर पर शोध छात्र मनकामना शुक्ल 'पथिक' ने ग्रियर्सन पर लिखी अपनी कविता का पाठ किया।
शोध छात्र अमित कुमार ने कहा हिंदी साहित्य के साथ मैथिली, कैथी लिपि आदि के संदर्भ में ग्रियर्सन ने ठोस और मौलिक कार्य किये। शिवम यादव ने कहा कि ग्रियर्सन ने हिंदी साहित्य के इतिहास और विशेषकर भक्तिकाव्य के विषय में महत्वपूर्ण स्थापनाएँ दीं। छात्र पंकज यादव ने कहा कि ग्रियर्सन ने हिंदी साहित्य के इतिहास के साथ तुलसी, विद्यापति, भक्तिकाल आदि के विषय में एक ठोस कार्य किए। कार्यक्रम का संचालन शोध छात्र अक्षत पाण्डेय ने तथा धन्यवाद ज्ञापन शोध छात्र आर्यपुत्र दीपक ने दिया।
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