पुत्र के दीर्घायु व सलामती के लिए माताओं ने रखा जीवित्पुत्रिका का निर्जला व्रत, शहर से गांव तक नदी किनारे उमड़ी महिलाओं की भीड़
वाराणसी। जीवित्पुत्रिका के अवसर पर बनारस के घाट गुलजार रहे। शहर से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों तक महिलाओं ने नदी किनारे पूजन अर्चन किया। काशी के प्रसिद्द घाटों में दशाश्वमेध, अस्सी, गायघाट, पंचगंगा घाट, संत रविदास घाट, राजघाट, भैंसासुर घाट, तुलसी घाट, केदार घाट, राजेंद्र प्रसाद घाट समेत अन्य घाटों पर आस्थावानों की भीड़ उमड़ी। इसके अलावा काशी के प्रसिद्ध तालाबों में लक्ष्मीकुंड, कंदवा पोखरा, ईश्वरगंगी पोखरा समेत शहर के कुंडों, तालाबों के अलावा मंदिरों पर महिलाओं की काफी भीड़ रही। पुत्र की दीर्घायु एवं मंगलकामना के लिए बुधवार को माताओं ने जीवित्पुत्रिका का निर्जला व्रत रखकर पूजन-अर्चन किया। शाम होते ही महिलाओं ने जीवित्पुत्रिका पूजन के लिए एकत्र हो पूरे विधि-विधान से पूजन किया।
वहीं घाटों पर पर जीवित्पुत्रिका का व्रत करने आई महिलाओं को कीचड़ और गंदगी के कारण काफी कठिनाइयों का सामना भी करना पड़ा। बारिश भी रहा सहा कसर को पूरा कर दिया। जिससे सभी घाटों पर कीचड़ फैल गया। वहीं महिलाओं ने बताया कि गंगा का जलस्तर बढ़ा हुआ है, जिसके कारण घाटों पर अभी भी सिल्ट जमा है। महिलाएं इसी जमा सिल्ट के बीच से आ रही है और पूजन अर्चन कर रही हैं।
ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को रखने से पुत्र पर आने वाला संकट भी टल जाता है। पर्व के मद्देनजर महिलाओं ने रविवार की भोर से ही निर्जला व्रत किया। दोपहर बाद महिलाएं सोन नदी स्नान के लिए विभिन्न घाटों पर पहुंची। स्नान के बाद पूजा-पाठ तथा दान-पुण्य किया। इसके बाद सोन नदी घाटों, घरों तथा मंदिरों में ब्राह्मण से जिउतिया की कथा सुनी। जिस महिला के जितने पुत्र होते हैं, वह उतनी संख्या में जिउतिया को धारण करती हैं
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व्रती महिलाओं ने बताया कि पुत्रों की दीर्घायु की मंगलकामना के लिए रखा जाने वाला यह व्रत काफी कठिन है। इसमें महिलाएं 24 घंटे तक निराजल व्रत रहती है, 24 घंटे के बाद व्रति महिलाएं इस व्रत का पारण करती है। पूजा में चना, फल आदि भेंट चढ़ाया जाता है। इस पूजन में महिलाएं इकट्ठा होकर पांच या सात कथा पढ़ती है। मान्यता है कि बिना कथा सुने यह व्रत पूर्ण ही नहीं होता। महिलाओं ने सोन नदी में स्नान तथा पूजा-पाठ के बाद जिऊतिया की कथा का श्रवण किया। महिलाओं ने प्रतीक के रूप में सोने या चांदी की जिउतिया गले में धारण किया।
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