सुभाष भवन में देशभर से जुटे संस्कृतिधर्मियों ने सांझा की संस्कृति की मिशाल, दुनियां को दिया शांति का पैगाम

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वाराणसी। फिलिस्तीन और इजराइल के बीच युद्ध से उपजे नफरत की आग पर प्रेम की बरसात करने के लिए देशभर के संस्कृतिधर्मियों ने सुभाष भवन में गीत संगीत और अभिनय को माध्यम बनाकर दुनियां को शांति का पैगाम दिया है।

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विशाल भारत संस्थान एवं काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के सामाजिक विज्ञान संकाय के संयुक्त तत्वाधान में लमही के सुभाष भवन में आयोजित "भक्ति गीत परम्पराओं के माध्यम से भारत की सांझा संस्कृति का विकास" विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम में देश विदेश के संस्कृतिधर्मी, नाटककार, भक्तिगीत के मर्मज्ञ जुटे। जाने-माने इशभक्ति गायक मिलिंद करमरकर एवं बीएचयू के सामाजिक विज्ञान संकाय की संकायाध्यक्ष प्रो. बिन्दा परांजपे ने सुभाष मन्दिर में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को पुष्प अर्पित किया एवं आरती कर मत्था टेका, दीपोज्वलन कर समारोह की शुरुवात की।

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विशाल भारत संस्थान की राष्ट्रीय महासचिव डॉ. अर्चना भारतवंशी ने पीपीटी के माध्यम से संस्थान का परिचय दिया। संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. राजीव श्रीगुरुजी ने विषय प्रवर्तन करते हुए कहा कि आज विश्व युद्ध की विभीषिका के अलावा उपजे नफरत से जूझ रहा है। ऐसे में काशी से देशभर के संस्कृतिधर्मियों ने शांति का पैगाम भेजा है। काशी की यह पहल विश्व के लोगों को नई दिशा देने वाला है। हमारा प्रयास इंसानी रिश्तों को बचाना और सांझा संस्कृति के माध्यम से एकता का विकल्प पैदा करना है।

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पैगम्बरी नात पेश करती हुई अनुष्का निकम के बोल थे- ‘क्या मिलेगा किसी को किसी से, आदमी है जुदा आदमी से। हमने सीखा अंधेरों से जीना, आप घबरा गए रौशनी से।’ आगे उन्होंने मराठी भाषा में एक गीत प्रस्तुत किया जिसका भावार्थ था- ‘हमारे घर में न कोई अमर है न कोई गरीब, इस संसार में मैं एक छोटा सा कोना खोजना चाहती हूँ जहां मैं शांति से रहना चाहती हूँ। जहां प्रेम है वहां जाना चाहती हूँ।’

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समारोह के विशिष्ट अतिथि खुसरो फाउंडेशन के समन्वयक डॉ. हाफिजुर्रहमान ने कहा कि पहले और आखिरी हिन्दुस्तानी है। इसके लिए कभी कोई समझौता नहीं हो सकता। दुनियां की सभी सभ्यताएं ईरान, यूनान, मिस्र, सीरीया सभी सभ्यताएं खत्म हो गईं, किन्तु हिन्दुस्तान आज भी जिन्दा है। हिन्दुस्तान ने दुनियां को एस्ट्रोलॉजी, पंचतंत्र, गणित, विज्ञान, अध्यात्म का ज्ञान सिखाया। आज भारत का सपना तभी पूरा हो पाएगा, जब हम नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, मदन मोहन मालवीय को अपना आदर्श बनाएंगे। 

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भगवान श्रीराम की भक्ति को लेकर तुलसी और कबीर का भजन प्रस्तुत करते हुए मुम्बई के मिलिंद करमरकर ने भक्ति की गंगा बहा दी। मराठी में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस एवं आजाद हिन्द फौज के देश के प्रति त्याग और समर्पण को ‘जयोस्तुते, जयोस्तुते, जयोस्तुते ध्वजधारी’ के भाव को प्रस्तुत किया। अमृत महोत्सव के संदर्भ में गीत प्रस्तुत करते हुए- ‘भारत की स्वतंत्रता की निरंतर बहती रहे गंगा, हर दम हर दिन लहराएंगे हम तिरंगा’। उन्होंने कहा कि भारत की संगीत एवं योग ने पूरी दुनियां में भारत को विश्वगुरू बनाया।

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कश्मीर की अंजलि अदाकौल ने अपनी गजल से सांझा संस्कृति का पैगाम दिया। अंजलि ने गजल जिंदगी तुझको याद करती है, जिक्र सुबह शाम अब तुम्हारा है और तो कुछ नहीं पता मुझको, मेरे दिल में मकाम तेरा है। उन्होंने कहा मैं विशाल भारत संस्थान के अनाज बैंक की सराहना करती हूं क्योंकि मैं कश्मीरी कौल परिवार से हूं, कश्मीरी पंडित अन्न को सर्वोच्च सम्मान देते हैं।

बीएचयू के सामाजिक विज्ञान संकाय की संकायाध्यक्ष प्रो. बिन्दा परांजपे ने कहा कि शिक्षा और संस्कृति क्लास रूम से बाहर निकलकर समाज के लोगों तक पहुंचना चाहिये।

संगोष्ठी का संचालन नाजनीन अंसारी ने किया। इस अवसर पर डॉ. कवीन्द्र नारायण, डॉ. अर्चना भारतवंशी, डॉ. मृदुला जायसवाल, नजमा परवीन, आभा भारतवंशी, नौशाद शेख, अफसर बाबा, शहाबुद्दीन जोसेफ, अजीत सिंह टीका, अनिल पाण्डेय, अलाउद्दीन, खलोकुद्दीन, विनोद यादव, इली भारतवंशी, खुशी भारतवंशी, उजाला भारतवंशी, दक्षिता भारतवंशी, अशोक यादव, रोहित राज आदि लोग मौजूद रहे।

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