बीएचयू में भारतीय संस्कृति में जल संरक्षण पर विमर्श, जल तत्व के महत्त्व और समाधान पर हुई गहन चर्चा

नले
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वाराणसी। बीएचयू स्थित संबोधी सभागार में शुक्रवार को ‘भारतीय संस्कृति में जल संरक्षण’ विषय पर एक विशेष कार्यक्रम आयोजित किया गया। इसमें विभिन्न विशेषज्ञों और छात्रों ने जल संरक्षण के महत्व पर विचार साझा किए। जल को पंचतत्वों में सबसे प्रधान और जीवन का मूल आधार बताते हुए वक्ताओं ने इसके अत्यधिक दोहन से होने वाले गंभीर परिणामों पर गहरी चिंता व्यक्त की।

मुख्य अतिथि वैदिक विज्ञान केंद्र के समन्वयक प्रोफेसर उपेंद्र कुमार त्रिपाठी ने चारों वेदों में वर्णित जल तत्व की महिमा पर प्रकाश डाला। कहा कि जल केवल भौतिक जीवन का आधार ही नहीं, बल्कि आध्यात्मिक दृष्टिकोण से भी आवश्यक है। विशिष्ट वक्ता भारत अध्ययन केंद्र के डॉ. ज्ञानेंद्र नारायण राय ने कहा कि प्राचीन भारतीय परंपरा में कूप, बावड़ी, कुंड, तालाब और नदियों को संरक्षण देने की समृद्ध संस्कृति रही है, जिसे आधुनिक समय में पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे सामाजिक विज्ञान संकाय के पूर्व प्रमुख प्रोफेसर आर.पी. पाठक ने जल संरक्षण को सामूहिक जिम्मेदारी बताते हुए सभी से इस दिशा में पहल करने का आग्रह किया।

पर्यावरण संरक्षण गतिविधि के प्रांत संयोजक कृष्ण मोहन, इतिहास विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर प्रवेश भारद्वाज और कार्यक्रम संयोजक प्रोफेसर अशोक कुमार सोनकर ने भी जल संरक्षण की पुरानी परंपराओं और उनके महत्व पर चर्चा की। कार्यक्रम में जल संरक्षण के क्षेत्र में सराहनीय योगदान देने वालों को सम्मानित भी किया गया। नमामि गंगे गंगा विचार मंच के जिला संयोजक शिवम अग्रहरि, शिव शक्ति सेवा फाउंडेशन की संस्थापक प्रीती रवि जायसवाल, और गंगा प्रहरी दर्शन निषाद को भगवान श्री रामलला का चित्र व पुष्प गुच्छ भेंट कर सम्मानित किया गया। इसके अलावा, जल संरक्षण में उत्कृष्ट योगदान के लिए 108 लोगों को नामित किया गया है जिन्हें आगामी कार्यक्रम में सम्मानित किया जाएगा।

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