बीएचयू स्थित गुरुद्वारा में अखंड पाठ साहिब का आयोजन, 1927 से चली आ रही परंपरा

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वाराणसी। बीएचयू के राजपूताना छात्रावास स्थित ऐतिहासिक गुरुद्वारे में इस वर्ष भी वैशाखी पर्व की पारंपरिक धूमधाम से शुरुआत हुई। तीन दिवसीय श्री अखंड पाठ साहिब के आयोजन के साथ श्रद्धालुओं ने कीर्तन, अरदास और लंगर सेवा में भाग लेकर अध्यात्म और सामूहिकता का संदेश दिया। 

यह आयोजन कोई नया नहीं, बल्कि 1927 से लगातार होता चला आ रहा है। भारत रत्न महामना पंडित मदन मोहन मालवीय द्वारा 1916 में स्थापित बीएचयू के निर्माण काल में ही इस गुरुद्वारे की स्थापना की गई थी। उस समय पंजाब के संत अत्तर सिंह मस्तुआना ने इस गुरुद्वारे की नींव रखी थी।

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इस गुरुद्वारे की विशेषता यह है कि यह न केवल सिख समुदाय के लिए धार्मिक स्थल है, बल्कि यह विश्वविद्यालय में समरसता और सांस्कृतिक विविधता का प्रतीक बन चुका है। यहां वैशाखी पर्व पर हर वर्ष विभिन्न धर्मों और जातियों के लोग एकत्र होकर सामूहिक उत्सव मनाते हैं। इस वर्ष भी, गुरुद्वारे में तीन दिन तक चला श्री अखंड पाठ साहिब का आयोजन पहले दिन कीर्तन और पाठ से आरंभ हुआ, दूसरे दिन जारी रहा और तीसरे दिन समापन के साथ विशाल लंगर का आयोजन किया गया। श्रद्धालुओं ने दिनभर गुरबाणी के साथ अरदास में भाग लिया।

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बीएचयू की एक असिस्टेंट प्रोफेसर ने बताया कि वह कई वर्षों से इस आयोजन में नियमित रूप से भाग ले रही हैं। उन्होंने कहा, "यह परंपरा सिर्फ धार्मिक नहीं बल्कि सामाजिक सौहार्द और सांस्कृतिक एकता का प्रतीक है। यहां हर जाति-धर्म के लोग एक साथ आकर पाठ करते हैं, कीर्तन सुनते हैं और लंगर में सेवा देते हैं।" बीएचयू का यह गुरुद्वारा न केवल आध्यात्मिक आस्था का केंद्र है बल्कि यह विश्वविद्यालय के उस दर्शन को भी दर्शाता है, जो विविधता में एकता को महत्व देता है।

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