वाराणसी : 21 दिवसीय कार्य़शाला का उद्घाटन, प्राकृत भाषा के व्याकरण और साहित्य पर होगी चर्चा
वाराणसी। पार्श्वनाथ विद्यापीठ की ओर से 2 से 22 मार्च तक 'प्राकृत भाषा शिक्षण एवं प्रशिक्षण' विषयक 21 दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन किया गया है। इसमें देश के कोने-कोने से प्राध्यापकगण तथा 55 प्रतिभागी भाग ले रहे हैं। प्रतिभागियों की ओर से 21 दिन तक प्राकृत के व्याकरण, साहित्य पर चर्चा-परिचर्चा की जाएगी।
सास्वत अथिति कुंवर विजयानन्द सिंह ने कहा कि प्राकृत विषय पर इस तरह की कार्यशालओं का आयोजन प्राकृत भाषा को समृद्ध बनाने के लिए महत्वपूर्ण कदम है। प्रबन्ध समिति के उपाध्क्ष होने के नाते मैं ऐसी कार्यशाला को प्रतिवर्ष करने की अपनी प्रतिबद्धता को दोहराता हूं। मुख्य अतिथि प्रो. गोपबन्धु मिश्र ने प्राकृत भाषा की प्राचीनता का उल्लेख किया। बताया कि भारतीय संस्कृति को उसकी समग्रता में समझने के लिए संस्कृत और पालि के साथ प्राकृत का ज्ञान बहुत आवश्यक है। प्राकृत भाषा के लालित्य के भूरिशः प्रसंशा की।
अध्यक्षता कर रहे प्रो, जगतराम भट्टाचार्या ने प्राकृत व्याकरण के लक्षणों को स्पष्ट करते हुए प्राकृत को जन सामान्य की भाषा बताया। उन्होने कहा कि प्राकृत, संस्कृत और पालि ये तीनों भाषायें अलग अलग कालखण्डों में अपने साहित्य का सृजन की हैं। कुंवर विजयानन्द सिंह, वरिष्ठ उपाध्यक्ष, प्रबन्ध समिति, पार्श्वनाथ विद्यापीठ तया विशिष्ट अतिथि थे। कार्यक्रम के अन्त में धन्यवाद ज्ञापन संस्था के सह-निदेशक डा. ओमप्रकाश सिंह ने किया। इन्द्रभूति बरड़, उपाध्यक्ष प्रबन्ध समिति समेत अन्य रहे। कार्यशाला के निदेशक डा श्रीप्रकाश पाण्डेय ने अतिथियों का स्वागत किया तथा प्राकृत भाषा के इतिहास का संक्षिप्त परिचय दिया।
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