जानिए क्यों मनाया जाता है भाईदूज का पर्व, काशी में परंपरा के अनुसार कैसे मनाया गया भाईदूज का पर्व !

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वाराणसी। धर्म की नगरी का काशी में भाईदूज का पर्व बेहद ही धूम धाम से मनाया गया। भाईदूज के पर्व पर बहनें भाई के माथे पर तिलक करके उनके सुखमय जीवन, उज्जवल भविष्य और लंबी आयु की कामना की। वहीं भाई भी अपने कर्तव्य के निर्वाहन का संकल्प लिया। मान्यता है कि इस दिन भाई का तिलक करने से उन्हें अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है। भाई दूज के पर्व की पावन कथा सूर्य देव पुत्र यम और यमुना से जुड़ी हुई है। 
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भाई की लम्बी उम्र की कामना और अच्छे जीवन के लिए भाई-बहन के पर्व भईया दूज बड़े हर्षोल्लास उल्लास के साथ मनाया गया। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाए जाने वाले पर्व पर सभी आस्थावान बहने अपने घर पर के पास एकजुट होकर गोधना कूटने की परम्परा को निभाती नजर आई। इस दौरान कथा-कहानी और पूजनकर बहने मुसर से चने को कूटती है। जिसे गोधना कुटना कहा जाता है और फिर वही मिठाई और चना भाइयों को खिलाती है। 
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भाई-बहन के इस पर्व का बहनों को पुरे वर्ष इंतज़ार रहता है। पूजा कर रही महिलाओं ने बताया कि पर्व विशेष पर बहनें गोबर से मांडवा बनाकर उसमें अक्षत व हल्दी से चित्र बनाती है। फिर फल, फूल, सुपाड़ी, धूप, रोली व मिठाई रखकर दीप जलाती है। साथ ही यम दूज की कथा भी सुनी जाती है। इसे कई नामों से जाना जाता है। हिंदी भाषी शहरों में इसे यम द्वितीया, भातृद्वितीया, भाई दूज और गोधन आदि नामों जाना जाता है, जबकि महाराष्ट्र में इसे भाव -भीज, बंगाल में भाई फोटा और नेपाल में भाई टीका के रूप में मनाया जाता है। 
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इस परंपरा के पीछे यूं तो कई पौराणिक कथाएं हैं, पूजनोपरांत भाइयों को तिलक लगाकर मिठाई व पूजे गए चने खिलाती हैं। दीपावली की रात लाई-चूड़े और मिठाइयों से भरे भड़ेहर उपहार के रूप में भेंट करती हैं। साथ ही उनके दीर्घजीवी होने की कामना करती हैं।किंतु सर्वाधिक प्रचलित है।अस्सी घाट के तीर्थ पुरोहित बलराम मिश्रा ने बताया कि उदया तिथि के अनुसार आज भैया दूज का पर काशी में बड़े धूमधाम के साथ मनाया जा रहा है। तिथि भ्रम को लेकर महिलाएं कल भी भैया दूज का पर मनाई थी। परंतु उन्होंने साफ-साफ बताते हुए कहा कि मान्यता आज का है और आज के दिन पूजा पाठ करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है भाई की उम्र लंबी होती है।
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 इस परंपरा को लेकर बताया जाता है, कि एक कोख (गर्भ) से यमराज व यमुना का जन्म हुआ। भाई यमराज और बहन यमुना में काफी प्रगाढ़ता थी, किंतु समय के साथ ऐसा भी एक दौर आया, जब दोनों एक-दूसरे से काफी दूर हो गए। बहन यमी अपने भाई यमराज को देखने तक के लिए तरस कर रह गईं। उन्होंने भाई यम तक कई बार अपना संदेश भिजवाया, किंतु अपने कार्य-दायित्व में व्यस्त यमराज अपनी बहन से मिलने का समय ही नहीं निकाल पा रहे थे। बहन प्रतीक्षा में रही। इसी बीच कभी एक बार वह बहन के घर मिलने आए, तो हतप्रभ रह गए। बहन यमुना उनसे ऐसे उमड़कर मिली कि यमराज को अपनी गाफिली का गहराई से अनुभव हुआ। उनके भीतर बहन के प्रति दबा हुआ प्रेम उमड़ आया। बहन ने भाई की आरती उतारी, ललाट पर अक्षत-रोली का तिलक लगाया और उनके प्रदीर्घतम मंगलमय जीवन की अनंत कामना की। अभिभूत होकर यम ने यह वरदान दिया कि आज के दिन संसार भर में भाई-बहन के पर्व भातृ द्वितीया के रूप में मनाया जाएगा।
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वही दूसरी कथा भगवान श्रीकृष्ण से जुड़ी है। कहते हैं, इसी दिन श्रीकृष्ण नरकासुर को मारने के बाद अपनी बहन सुभद्रा के पास गए थे। प्रसन्नतापूर्वक सुभद्रा ने अपने भाई का पारंपरिक रूप से स्वागत किया और उनकी पूजा-आरती उतारी थी। भाई-बहन का यह मिलन इतना विशिष्ट था कि कालांतर में इसकी स्मृति में भैया दूज पर्व प्रचलित हो गया। इसी प्रकार यह पर्व जैन-संस्कृति से भी जुड़ा हुआ है। एक अन्य कथा के अनुसार, स्वामी महावीर को इसी दिन निर्वाण की प्राप्ति हुई थी। उनके निर्वाण प्राप्त करने से उनके भाई राजा नंदीवर्धन भावनात्मक रूप से अत्यंत व्यथित और बेचैन हो उठे। उन्हें संभालना किसी के लिए संभव नहीं हो पा रहा था।
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 ऐसे में उनकी बहन सुदर्शना ने आगे आकर अपने भाई की आहत भावनाओं पर दिलासा का मरहम रखा। उन्होंने कुछ इस तरह उन्हें दिलासा दी कि उनके भाई पर इसका चमत्कारी प्रभाव पड़ा। राजा नंदीवर्धन भावनात्मक रूप से नियंत्रित हो गए। कहते हैं, इसकी याद में तभी से महिलाएं भैया दूज मनाने लगीं। कुल मिलाकर, यह पर्व भाई और बहन दोनों के ही महत्व को रेखांकित करता है और उनके बीच पावन संबंधों में ताजगी और मजबूती देने वाला है।

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