बंगाली समुदाय की महिलाएं निभाती हैं काशी में सिंदूर खेला की परंपरा, धार्मिकता और सांस्कृतिक विविधता का संगम, सुहाग, विदाई और सामाजिक बंधन का है प्रतीक

sindoor khela
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वाराणसी। विजयादशमी के पावन अवसर पर काशी की गलियों और घाटों पर जहां रावण दहन की तैयारी होती है, वहीं बंगाली समुदाय की महिलाओं द्वारा सिंदूर खेला की अनोखी और उल्लासपूर्ण परंपरा निभाई जाती है। काशी, जो अपनी सांस्कृतिक विविधता के लिए प्रसिद्ध है, विजयादशमी के दिन इस अनोखी परंपरा के रंगों से भर जाती है। 

क्या है सिंदूर खेला?

सिंदूर खेला बंगाली समुदाय द्वारा विजयादशमी के दिन मनाया जाने वाला एक खास आयोजन है, जहां विवाहित महिलाएं मां दुर्गा की विदाई से पहले उनके माथे पर सिंदूर चढ़ाती हैं और फिर आपस में एक-दूसरे को सिंदूर लगाकर इस अवसर का आनंद लेती हैं। यह परंपरा मुख्य रूप से बंगाल में प्रचलित है, लेकिन अब काशी जैसे सांस्कृतिक नगरों में भी इसे धूमधाम से मनाया जाता है।

काशी में सिंदूर खेला का आयोजन

काशी में रहने वाले बंगाली समुदाय के लोग विजयादशमी पर दुर्गा पूजा के समापन के बाद सिंदूर खेला का आयोजन करते हैं। विभिन्न पूजा पंडालों में यह दृश्य देखने को मिलता है, जहां सजी-धजी महिलाएं मां दुर्गा की मूर्ति के सामने सिंदूर खेलती हैं। 

महिलाएं पहले मां दुर्गा के माथे पर सिंदूर अर्पित करती हैं, फिर अपनी सहेलियों और रिश्तेदारों के चेहरे और माथे पर सिंदूर लगाती हैं। यह परंपरा काशी में भी उत्साह और भक्ति के साथ निभाई जाती है, जो यहां की धार्मिकता और विविधता में चार चांद लगा देती है। 

सिंदूर खेला का महत्व

1. सुहाग का प्रतीक : बंगाली परंपरा के अनुसार सिंदूर सुहाग का प्रतीक माना जाता है। महिलाएं एक-दूसरे को सिंदूर लगाकर अपने पति की लंबी आयु और सुख-समृद्धि की कामना करती हैं।
  
2. मां दुर्गा की विदाई : मां दुर्गा को आदरपूर्वक विदाई देने का यह अनोखा तरीका है। महिलाएं इस दिन मां दुर्गा को सुहागन का रूप मानकर उन्हें सिंदूर अर्पित करती हैं।

3. सामाजिक बंधन : काशी जैसे सांस्कृतिक शहर में यह परंपरा विभिन्न वर्गों और समुदायों को जोड़ती है। इसमें भाग लेने वाली महिलाएं न केवल बंगाली समुदाय की होती हैं, बल्कि अन्य समुदायों की महिलाएं भी अब इसमें शामिल होती हैं।

काशी में सिंदूर खेला की विशेषता

काशी में सिंदूर खेला का दृश्य बेहद आकर्षक होता है। यहां की ऐतिहासिक धरोहरों और गंगा के किनारे होने वाले इस आयोजन में भक्तों की आस्था झलकती है। घाटों पर विराजमान मां दुर्गा की मूर्तियों के समक्ष महिलाएं सिंदूर खेलते हुए मां को विदा करती हैं, जो यहां के सांस्कृतिक माहौल में एक नया रंग भर देता है। 

काशी में विजयादशमी पर सिंदूर खेला न केवल एक धार्मिक परंपरा है, बल्कि यह बंगाली संस्कृति और काशी की सांस्कृतिक समृद्धि का संगम है। इस परंपरा के माध्यम से महिलाएं न सिर्फ अपने परिवार की समृद्धि की कामना करती हैं, बल्कि समाज में एकता और समानता का संदेश भी देती हैं।
 

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