नन्हे सूर्यांश के सपने को वाराणसी पुलिस ने किया पूरा, एक दिन के लिए बना पुलिस अफसर, सिगरा थाने में संभाला कार्यभार

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वाराणसी। सपने उम्र नहीं देखते और उम्मीदें हालात से बड़ी होती हैं, इस बात को सच कर दिखाया है वाराणसी पुलिस के सहयोग से 10 वर्षीय सूर्यांश ने। गंभीर बीमारी से जूझ रहे सूर्यांश की एक छोटी-सी लेकिन बेहद खास इच्छा थी। वह आईपीएस अफसर बनना चाहता था। यह सपना एक दिन के लिए ही सही, मगर साकार हुआ और उसी पल ने नन्हे सूर्यांश के चेहरे पर ऐसी मुस्कान ला दी, जिसने वहां मौजूद हर शख्स की आंखें नम कर दीं।

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सिगरा थाने में संभाला ‘आईपीएस’ का दायित्व
एक दिन के आईपीएस अधिकारी बने सूर्यांश ने सिगरा थाने में पहुंचकर कार्यभार संभाला। उसने थाने की कार्यप्रणाली को समझा, पुलिसकर्मियों से बातचीत की और यह जाना कि आम जनता की सुरक्षा के लिए पुलिस किस तरह काम करती है। वर्दी में सूर्यांश का आत्मविश्वास और चमकती आंखें मानो यह कह रही थीं कि बीमारी उसके हौसलों से बड़ी नहीं है।

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मेक अ विश फाउंडेशन ने पूरा किया सपना
मेक अ विश फाउंडेशन इंडिया से भारस्कर पांडेय ने बताया कि सूर्यांश 10 वर्ष का है और उसका इलाज होमी भाभा कैंसर अस्पताल में चल रहा है। गंभीर बीमारी से लड़ते हुए भी उसके मन में एक ही ख्वाहिश थी, आईपीएस अफसर बनने की। फाउंडेशन ने इस इच्छा को पूरा करने के लिए वाराणसी पुलिस कमिश्नर मोहित अग्रवाल से संपर्क किया, जिन्होंने बिना देर किए सिगरा थाने को आवश्यक निर्देश दिए।

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उम्मीद से बढ़ती है लड़ने की ताकत
मेक अ विश फाउंडेशन का मानना है कि बच्चों की इच्छाएं और उनके भीतर जगाई गई उम्मीदें बीमारी से लड़ने की ताकत को कई गुना बढ़ा देती हैं। सूर्यांश फिलहाल सर्वाइवर की स्थिति में है और उसके भीतर नई ऊर्जा और आशा का संचार हुआ है। एक दिन के लिए आईपीएस बनना उसके लिए केवल एक भूमिका नहीं, बल्कि जिंदगी से लड़ने की प्रेरणा बन गई।

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मां की आंखों में खुशी और गर्व
सूर्यांश की मां शकुंतला भावुक होकर बताती हैं कि वह गांव में मजदूरी करती हैं। उनका बेटा तीसरी कक्षा में पढ़ता है और उसका सपना हमेशा से आईपीएस अफसर बनने का रहा है। बेटे का सपना पूरा होते देख उनकी आंखों में खुशी के आंसू छलक आए। उन्होंने कहा कि आज वह बहुत खुश हैं, क्योंकि उनके बेटे को अपने सपने को जीने का मौका मिला। उन्होंने वाराणसी पुलिस कमिश्नर मोहित अग्रवाल समेत सभी पुलिस अधिकारियों और थाना प्रभारी संजय मिश्रा को धन्यवाद दिया। 

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संघर्ष भरा परिवार, मजबूत हौसले
सूर्यांश के परिवार की आर्थिक स्थिति साधारण है। उसकी मां मजदूरी करती हैं, जबकि पिता मुंबई में काम करते हैं। परिवार में एक बहन भी है। कठिन परिस्थितियों और बीमारी के बावजूद सूर्यांश का हौसला कभी नहीं टूटा। एक दिन के लिए मिली आईपीएस की पहचान ने उसे यह एहसास कराया कि सपने पूरे होते हैं, बस विश्वास और उम्मीद जिंदा रहनी चाहिए।

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एक दिन की खुशी, जिंदगी भर की प्रेरणा
सूर्यांश के लिए यह दिन सिर्फ एक याद नहीं, बल्कि जीवन भर की ताकत बन गया है। उसकी मुस्कान ने यह संदेश दिया कि जब समाज, प्रशासन और संवेदनशील संस्थाएं साथ आती हैं, तो किसी बच्चे का सपना उसकी बीमारी से भी बड़ा हो सकता है। सूर्यांश आज सिर्फ एक दिन का आईपीएस नहीं बना, बल्कि लाखों दिलों के लिए उम्मीद की मिसाल बन गया।

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