जयंती विशेष: बनारस के इस मंदिर में देवी या देवता नहीं, विराजते हैं ‘राष्ट्रदेवता’ मिलता है राष्ट्रभक्ति का संदेश
आपको जानकर हैरानी होगी कि इस मंदिर में किसी देवी या देवता की मूर्ति नहीं है। यहां राष्ट्रदेवता के रूप में आजादी के नायक नेताजी सुभाषचंद्र बोस विराजमान हैं। देश का ऐसा अनोखा मंदिर वाराणसी के लमही क्षेत्र में स्थित है। यहां नेता जी के दर्शनों के लिए प्रतिदिन लोगों का जमावड़ा लगता है।

विश्व का इकलौता मंदिर
यह मंदिर विश्व का इकलौता ऐसा मंदिर है, जहां कपाट भारत माता की आरती से खुलते हैं और सुभाष आरती के बाद कपाट बंद होते हैं। बनारस का यह एक ऐसा मंदिर है, जहां राष्ट्र देवता के रूप में नेताजी पूजे जाते हैं।
प्रत्येक रंग का अपना महत्व
नेताजी सुभाष चंद्र बोस का यह मंदिर लमही के इंद्रेश नगर में स्थित है। इस मंदिर में क्रांति, शांति, शक्ति और सकारात्मक ऊर्जा के आध्यात्मिक दर्शन होते हैं। यह मंदिर 11 फीट ऊँचा है। इसकी सीढियां लाल रंग की हैं, सीढियों से चढ़कर चबूतरा सफ़ेद रंग का है। नेताजी की प्रतिमा काले रंग की है और छत्र स्वर्ण के रंग का है। यहां सभी रंगों का अपना एक महत्त्व है। लाल रंग क्रांति का प्रतीक है, लाल रंग की सीढियों पर चढ़कर ही शांति के आधार सफ़ेद रंग पर पहुंचा जाता है। शांति के आधार पर शक्ति की पूजा होती है। मूर्ति के काले रंग की बात की जाय, तो काला रंग शक्ति का प्रतीक है। शक्ति की पूजा से ही सकारात्मक ऊर्जा (स्वर्ण छत्र) निकलती है।

सर्वधर्म समभाव का मिलता है सन्देश
मंदिर में सर्वधर्म समभाव की झलक देखने को मिलती है। यह देश का पहला ऐसा मंदिर है, जहां हिंदू दलित युवती को मंदिर का पुजारी बनाया गया है। वहीँ इस मंदिर के व्यवस्थापक अजहरूद्दीन हैं। इसी कारण से यहां सभी धर्मों और जातियों के लोग आते हैं। इसी कारण यह मंदिर धर्म व जाति की राजनीति को दूर कर राष्ट्रभक्ति का संदेश देता है।
यहां आने वाले दर्शनार्थियों के मुताबिक, यहां आकर उन्हें अद्भुत शांति मिलती है। इसके साथ ही राष्ट्र के लिए कुछ करने की सीख और देशप्रेम की प्रेरणा मिलती है। इस मंदिर की प्रसिद्धि पूरे काशी में है। इस अनोखे मंदिर में दर्शन के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं और यहां आकर अपने आप को राष्ट्र को समर्पित करते हैं।

