वाराणसी : रामनगर में काले हनुमान जी के दर्शन को उमड़े भक्त, साल में एक दिन ही दर्शन के लिए खुलता है मंदिर
रिपोर्टर- ओमकार नाथ
वाराणसी। बनारस का हनुमान मंदिर, यह नाम लेते ही हर किसी के मन में संकटमोचन हनुमान मंदिर का ही ख्याल आता है। लेकिन, क्या आपको पता है कि काशी नरेश के किले यानी बनारस के प्रसिद्ध रामनगर किला के अंदर भी भगवान हनुमान का एक बहुत प्रसिद्ध मंदिर स्थित है। इसके कपाट आम लोगों के लिए साल में सिर्फ एक दिन के लिए खुलते हैं। इतना ही नहीं, इस मंदिर में स्थापित भगवान हनुमान की मूर्ति भी किसी भी दूसरे मंदिरों की तुलना में काफी अलग और बेहद खास है।
क्यों खास है भगवान हनुमान की यह प्रतिमा
रामनगर किले के अंदर स्थित मंदिर में भगवान हनुमान की प्रतिमा स्थापित है। आमतौर पर हर जगह भगवान हनुमान की मूर्ति सिन्दुरी रंग की होती है। प्रतिमा के पूरे शरीर पर सिन्दुर लगा रहता है, लेकिन रामनगर किले में स्थापित भगवान हनुमान की मूर्ति श्यामवर्ण की है। इस मूर्ति का रंग श्यामवर्ण (काला) है। यूं तो इस मूर्ति को स्पर्श करने की अनुमति किसी को भी नहीं दी जाती है, लेकिन जिन लोगों ने अज्ञानतावश कभी भी इस मूर्ति को स्पर्श किया है, उनका कहना है कि ऐसा लगता है मानों मूर्ति पर रोएं बने हुए हों। इस प्रतिमा की दूसरी खासियत है कि यह मूर्ति दक्षिणमुखी है।
कब खुलते हैं मंदिर के कपाट
बनारस से सटे गंगा के किनारे बसे रामनगर में दशहरा उत्सव के मौके पर रामलीला का आयोजन एक महीने तक किया जाता है। इसमें अलग-अलग दिन भगवान राम और रामायण से जुड़ी घटनाओं का मंचन किया जाता है। दशहरा वाले दिन रावण वध होता है। उसके बाद भरत-मिलाप लीला आयोजित होती है। इसी क्रम में 27 अक्टूबर 2023 को भगवान श्रीराम की राजगद्दी लीला या राज्याभिषेक का मंचन होता है। हर साल जिस दिन राजगद्दी लीला का मंचन किया जाता है, उस दिन भोर की आरती के बाद आम श्रद्धालुओं के लिए मंदिर के कपाट खोल दिए जाते हैं। साल में यह सिर्फ एक ही दिन होता है जब रामनगर किले में स्थित इस मंदिर में आम लोगों को प्रवेश करने की अनुमति होती है। शाम को सूरज ढलने से पहले मंदिर के कपाट को बंद कर दिए जाते हैं, जो एक साल बार फिर से राजगद्दी लीला के मंचन वाले दिन ही आमनागरिकों के लिए खोला जाएगा।
मान्यताओं के अनुसार इस मंदिर का निर्माण उन्होंने ही करवाया था, जिन्होंने रामनगर किले का निर्माण करवाया था। कहा जाता है कि एक बार सपने में स्वयं रामभक्त हनुमान ने काशीराज परिवार के तत्कालीन राजा को आदेश देकर किले में दफन मूर्ति की वास्तविक जगह के बारे में बताया था। बाद में जब उसी जगह पर खुदाई की गयी तो वहां से भगवान हनुमान की श्यामवर्ण की उक्त मूर्ति प्राप्त हुई। यह मूर्ति किले में कैसे दफन हुई इस बारे में कोई तथ्य मौजूद नहीं है। कहा जाता है कि भगवान हनुमान ने ही काशी नरेश से किले के दक्षिणी छोर पर मंदिर बनवाकर उसमें मूर्ति स्थापित करने का आदेश दिया था।
क्या है त्रेता युग से इसका संबंध
कहा जाता है कि रामभक्त हनुमान की यह मूर्ति त्रेता युग में निर्मित है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान राम समुद्र पार कर लंका जाने के लिए समुद्र देव से प्रार्थना कर रहे थे। काफी देर तक प्रार्थना करने के बाद जब समुद्र देव नहीं मानें तो भगवान राम क्रोधित होकर अपना धनुष उठा लिया और उसपर बाण चढ़ाकर समुद्र को लक्ष्य बनाया। इससे भयभीत होकर समुद्र देव प्रकट हुए और उन्होंने वानर सेना में मौजूद नल-नील के बारे में श्रीराम को बताया। उन्होंने सेतु-समुद्रम का निर्माण किया, लेकिन दूसरी तरफ धनुष पर चढ़ाया जा चुका बाण वापस नहीं लिया जा सकता है, यह सोचकर प्रभु श्रीराम ने पश्चिम दिशा की तरफ बाण छोड़ने का निर्णय लिया। भगवान राम के बाण के प्रभाव से धरती कहीं डोलने न लगे। इसलिए हनुमानजी घुटनों के बल बैठ गए। भगवान राम ने जब बाण छोड़ा तो उनके बाण के प्रभाव से ही हनुमान जी झुलस गए और उनका रंग श्यामवर्ण का हो गया।
स्थानीय मान्यताओं के अनुसार जिस दिन रामनगर में राजगद्दी लीला का मंचन होता है, उस दिन यहां स्वयं प्रभु श्रीराम उपस्थित होते हैं। इसलिए उस दिन इस मंदिर के कपाट आम श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए जाते हैं।
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