वाराणसी : अस्सी घाट पर भव्य आरती में उमड़ा जनसैलाब, 5100 दीपों से जगमगाई काशी, मानो तारे ज़मीन पर उतर आए हों
- अस्सी घाट पर गोबर से बने दीपों से जगमगाई देव दीपावली, स्वच्छता और पर्यावरण संरक्षण का अनूठा संदेश
वाराणसी। विश्व प्रसिद्ध देव दीपावली के पावन अवसर पर बुधवार की शाम काशी ने एक बार फिर अपनी अनूठी आस्था और भव्यता का अद्भुत दृश्य प्रस्तुत किया। अस्सी घाट सहित शहर के सभी प्रमुख घाटों पर मां गंगा की महाआरती बड़े ही हर्षोल्लास और श्रद्धा भाव से संपन्न हुई। पूरा वातावरण “हर हर महादेव” और “जय मां गंगे” के जयघोष से गूंज उठा।

जय मां गंगा सेवा समिति की ओर से आयोजित इस भव्य आरती का शुभारंभ बटन दबाकर किया गया। इससे पहले पूरे आरती स्थल को फूल-मालाओं, कलशों और दीयों की कतारों से सजाया गया था। जैसे ही आरती प्रारंभ हुई, शंखनाद और घंटियों की ध्वनि से घाट का वातावरण पूरी तरह भक्तिमय हो गया।
आरती के दौरान अस्सी घाट पर 5100 दीपों से ऐसी जगमगाहट फैली कि पूरा गंगा तट तारों की चमक से भरा हुआ प्रतीत हो रहा था। गंगा की लहरों पर दीपों का प्रतिबिंब ऐसा दृश्य रच रहा था मानो आकाश के तारे धरती पर उतर आए हों।

देश-विदेश से आए लाखों श्रद्धालु इस पवित्र क्षण के साक्षी बने। लोग घाट की सीढ़ियों से लेकर गंगा किनारे तक हर जगह खड़े होकर आरती में डूबे दिखाई दिए। कई श्रद्धालु भावविभोर होकर आरती की धुन पर झूमते नजर आए, वहीं अन्य लोग इस दिव्य पल को अपने कैमरों और मोबाइल फोन में कैद करते रहे।
मान्यता है कि देव दीपावली की इस रात स्वर्ग से देवता स्वयं काशी नगरी में उतरकर गंगा आरती का साक्षी बनते हैं। इस अद्भुत नजारे को देखने के लिए घाटों पर इतनी भीड़ उमड़ी कि कदम रखने तक की जगह नहीं बची।
भक्ति, श्रद्धा और दिव्यता से भरी इस देव दीपावली पर काशी का हर घाट, हर दीप और हर चेहरा आस्था की रौशनी से आलोकित दिखाई दिया।
विश्व प्रसिद्ध देव दीपावली के पावन अवसर पर इस बार काशी के अस्सी घाट पर एक अनोखी पहल देखने को मिली। जय मां गंगा सेवा समिति की ओर से इस वर्ष घाट पर पारंपरिक मिट्टी के दीपों के साथ-साथ गोबर से बने पर्यावरण मित्र दीपों का भी प्रयोग किया गया। समिति ने पहले ही इसकी घोषणा की थी कि इस बार देव दीपावली पर गंगा तट से पर्यावरण संरक्षण का संदेश दिया जाएगा।

शाम ढलते ही जब अस्सी घाट पर दीपों की पंक्तियां सजीं, तो गोबर से बने ये दीप जलते हुए हरित ऊर्जा और स्वच्छता का प्रतीक बन गए। इन दीपों से निकलने वाली सौम्य लौ ने न केवल घाटों को जगमगाया, बल्कि वातावरण को भी शुद्ध किया।
जय मां गंगा सेवा समिति के पदाधिकारियों श्रवण कुमार मिश्रा और तीर्थ पुरोहित बलराम मिश्रा बलराम मिश्रा ने बताया कि गोबर से बने दीप पूरी तरह प्राकृतिक और बायोडिग्रेडेबल हैं, जो जलने के बाद प्रदूषण नहीं फैलाते। इसके साथ ही यह पहल स्थानीय कारीगरों और गौशालाओं को भी आर्थिक सहयोग प्रदान करती है।

आरती स्थल पर पहुंचे श्रद्धालु इस अभिनव प्रयास को देखकर अभिभूत नजर आए। लोगों ने कहा कि यह पहल आस्था के साथ-साथ पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता का भी प्रतीक है।
देव दीपावली की इस रात अस्सी घाट की भव्यता और दिव्यता के साथ गोबर दीपों की यह चमक काशी को एक नई पहचान दे रही थी, जहां भक्ति, संस्कृति और पर्यावरण संरक्षण का सुंदर संगम दिखाई दिया।

