वाराणसी : पूर्ण हुआ 25000 कुंडीय स्वर्वेद ज्ञान महायज्ञ, धर्म, आस्था और अध्यात्म का महाकुंभ संपन्न
वाराणसी। स्वर्वेद महामंदिर धाम उमरहां के पवित्र प्रांगण में विहंगम योग संत समाज के 100वें वार्षिकोत्सव पर आयोजित 25 हजार कुण्डीय स्वर्वेद ज्ञान महायज्ञ का मंगलवार को विधिवत समापन हुआ। महायज्ञ में देश-विदेश से लाखों भक्त-शिष्यों ने अपनी कामनाओं की पूर्ति के निमित्त यज्ञ-कुण्ड में आहुतियां डाली। इस दौरान आयोजन स्थल पर विंहगम दृश्य देखने को मिला।
इस अवसर पर सद्गुरु आचार्य श्री स्वतंत्र देव जी महाराज ने कहा कि आत्मोद्धार का सर्वश्रेष्ठ साधन है भक्ति, लेकिन आज की भक्ति अज्ञान एवं आडम्बरयुक्त जड़भक्ति है। जड़भक्ति से ऊपर उठकर भक्ति के चेतन पथ पर अग्रसर होने की आवश्यकता है। अधिकांश व्यक्तियों का जीवन अविद्या एवं अंधकार में व्यतीत हो रहा है। विहंगम योग ही विशुद्ध चेतन भक्ति है, जिसमें साधक संपूर्ण विकारों को त्यागकर आतंरिक शुद्ध स्वरूप की प्राप्ति कर लेता है।
उन्होंने कहा कि जैसे कमल का पत्ता जल से ही उत्पन्न होता है और जल में ही रहता है पर वह जल से लिप्त नहीं होता। ऐसे ही एक विहंगम योगी संसार में रहते हुए संसार के कार्यों को करते हुए भी इससे निर्लिप्त रहता है। उन्होंने कहा कि हमारा अज्ञान ही हमारे दुखों का कारण है। कोई व्यक्ति अयोग्य नहीं। अच्छाइयां - बुराइयां सबके भीतर हैं। हमे दुर्बलताओं, कठिनाइयों से घबराना नहीं है। उन कठिनाइयों को दूर करने की जो प्रेरणा, जो शक्ति, जो सामर्थ्य है वह अध्यात्म के आलोक से, स्वर्वेद के स्वर से एक साधक को अवश्य ही प्राप्त होता है, क्योंकि हमारे भीतर अंतरात्मा रूप से परमात्मा ही तो स्थित है।
उन्होंने बताया कि विहंगम योग का ध्यान आंतरिक शांति का मार्ग प्रशस्त करता है। एक साधक जब सिद्धासन में बैठकर अपनी चेतना को गुरु उपदिष्ट भूमि पर केंद्रित करता है तो वह मानसिक व आत्मिक शांति का अनुभव करता है। मन पर नियंत्रण न होने से ही समाज में तमाम विसंगतियां फैली हैं। ध्यान में मानव मानवीय गुणों से मंडित होकर दिव्यगुण स्वाभाव वाला बन जाता है।
वार्षिकोत्सव में आए लाखों भक्त शिष्यो ने सद्गुरु देव एवं संत प्रवर श्री के समक्ष अपने दोनों हांथ उठाकर विधिवत सेवा, सत्संग, साधना करने के साथ ही विहंगम योग के प्रमुख सद्ग्रन्थ स्वर्वेद को जन-जन तक पंहुचाने का संकल्प लिया। कार्यक्रम का समापन वंदना, आरती एवं शांति पाठ से किया गया। समापन के पश्चात सद्गुरु आचार्य स्वतंत्रदेव जी एवं संत प्रवर विज्ञान देव जी के दर्शन के लिए अनुयायियों का जनसैलाब उमड़ पड़ा।
इस आयोजन में प्रतिदिन निःशुल्क योगए आयुर्वेद, पंचगव्य, होम्योपैथ आदि चिकित्सा पद्धतियों द्वारा कुशल चिकित्सकों के निर्देशन में रोगियों को चिकित्सा परामर्श के साथ चिकित्सा की भी व्यवस्था की गई थी। कार्यक्रम में उत्तर प्रदेश के साथ गुजरात, महाराष्ट्र, बंगाल, दिल्ली ,राजस्थान हरियाणा, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, उत्तराखंड, असम, आदि प्रदेशों के साथ ही भारत के अतिरिक्त अन्य देशों से लगभग डेढ़ लाख की संख्या में विहंगम योग के अनुयायी साधक पहुंचकर स्वर्वेद महामन्दिर दर्शन एवं आशीर्वाद प्राप्त किए।
दो दिनों तक सेवा, सत्संग और साधना की दिव्य त्रिवेणी बहती रही, जिसमें सभी साधकों ने खूब छककर स्नान किया और अपने आत्म-कल्याण के मार्ग पर चलने की सद्गुरु स्वतंत्रदेव जी महाराज एवं संत प्रवर विज्ञान देव महाराज से दिव्य प्रेरणा ली। महामंदिर के लोकार्पण के पश्चात दर्शनार्थियों का हुजूम मंदिर में उमड़ पड़ा और लाखों की संख्या में पहुंच कर श्रद्धालुओं ने महामंदिर का दर्शन किया। कार्यक्रम के समापन के पश्चात लोगों ने हाथों में ‘अ’ अंकित श्वेत ध्वजा लेकर सद्गुरु देव के दिव्य जयकारे के साथ प्रस्थान किया।
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