अक्षय तृतीया पर मां मणिकर्णिका का विशेष श्रृंगार, पुण्य फल प्राप्ति के लिए हजारों श्रद्धालुओं ने चक्रपुष्कर्णी कुंड में लगाई आस्था की डुबकी

Chakra pushkarini kund
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वाराणसी। काशी में अक्षय तृतीया (Akshay Tritiya) के दूसरे दिन मणिकर्णिका घाट स्थित चक्र पुष्करणी तीर्थ के कुंड (Chakra pushkarini kund) में स्नान का अत्यंत महत्व है। मान्यता है कि इस दिन लोग अपने पापों की मुक्ति के लिए इस कुंड में स्नान करते हैं। इस कुंड में स्नान करने से अक्षय फल एवं चारों धामों में एक साथ स्नान करने का फल मिलता है।

काशी में अक्षय तृतीया के दूसरे दिन शनिवार को मणिकर्णिका स्थित (Manikarnika Ghat) चक्र पुष्करणी तीर्थ के कुंड में हजारों भक्तों ने आस्था की डुबकी लगाई। माना जाता है कि इसी दिन दोपहर में भगवान विष्णु और शिव समस्त देवी-देवताओं के साथ भी स्नान ध्यान करने के लिए आते हैं। इसी कारण यहां स्थानीय लोगों के साथ ही देशभर से लोग आते हैं।

Manikarnika Ghat

विधि-विधान से मां मणिकर्णिका का पूजन-अर्चन

परंपराओं का निर्वहन करते हुए शनिवार को हजारों की संख्या में मणिकर्णिका घाट पहुंचे श्रद्धालुओं ने कुंड में आस्था की डुबकी लगाई। अक्षय तृतीया के अवसर पर मां मणिकर्णिका का श्रृंगार शुक्रवार रात में किया गया। मां का भव्य श्रृंगार करने के बाद मंदिर के प्रधान पुरोहित जयेंद्र नाथ दुबे ‘बब्बू महाराज’ ने विधि-विधान से मां मणिकर्णिका का पूजन अर्चन किया। जिसके बाद मां मणिकर्णिका की प्रतिमा को गाजे-बाजे के साथ मंदिर में स्थापित किया गया।

Manikarnika Ghat

जहां गिरे सती के कुंडल और शिव की मणि, वहां मां मणिकर्णिका की स्थापना

स्कंद पुराण के काशी खंड के अनुसार, श्रृष्टि काल के आरंभ में भगवान विष्णु ने यहां 80 हजार वर्षों तक तपस्या की थी। उन्होंने ही अपने सुदर्शन चक्र से इसका निर्माण किया था। इसलिए इसे चक्र पुष्करिणी कुंड के नाम से जाना जाता है। बाद में इस कुंड में काशी भ्रमण के दौरान भगवान शिव और माता पार्वती ने स्नान किया। स्नान के बाद जब दोनों लोगों ने अपना माथा झटका, तब शिव की मणि और मां का कुंडल गिर गया। तभी इसे इस स्थान का नाम मणिकर्णिका पड़ गया। वैसे इसका पूरा नाम चक्र पुष्करिणी मणिकर्णिका तीर्थ है।

Manikarnika Ghat

गणपति व महादेव के साथ विराजते हैं श्री हरी

मणिकर्णिका स्थित इस कुंड के बाहर विष्णुचरण पादुका है। यह कुंड घाट ताल से करीब 25 फीट नीचे स्थित है। कुंड में जाने के लिए 17-17 सीढियां बनी हुई हैं। कुंड के किनारे दक्षिण दिशा में भगवान विष्णु, गणेश और शिव की प्रतिमा स्थापित है। यहां लोग स्नान करने के बाद जल चढ़ाते हैं।

Manikarnika Ghat

गाजे-बाजे के साथ निकली है मां की सवारी

मंदिर के पुजारी जयेंद्र नाथ दुबे ‘बब्बू महाराज’ ने बताया कि मां मणिकर्णिका की अष्टधातु प्रतिमा प्राचीन समय में इस कुंड से निकली थी। ढाई फीट ऊँची प्रतिमा वर्षभर ब्रह्मनाल स्थित मंदिर में विराजमान रहती हैं। मां का दर्शन वर्ष में केवल एक बार होता है। केवल अक्षय तृतीया के दिन मां को पालकी में बैठाकर गाजे-बाजे के साथ कुंड में स्थापित करते हैं। फिर उसके दूसरे दिन मां की विधि-विधान से पूजा अर्चना करने के बाद श्रद्धालु कुंड में स्नान करके मां से पाप मुक्ति का वरदान मांगते हैं।

Manikarnika Ghat

बब्बू महाराज ने बताया कि यह परंपरा सैकड़ो वर्षों से चली आ रही है। अक्षय तृतीया के दिन माता की मूर्ति मेरे निवास स्थान से उठकर मणिकर्णिका चक्र पुष्परिणी कुंड में आती है। वहां पर उनकी भव्य रूप से संपूर्ण रात पूजा की जाती है। उसके पश्चात अगले दिन दोपहर बाद माता की आरती उतार कर स्नान किया जाता है और माता की मूर्ति को पुनः अपने स्थान पर वापस स्थापित कर दिया जाता है।

Manikarnika Ghat
 

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