पंचक्रोशी यात्रा का अंतिम पड़ाव है कपिलधारा मंदिर, स्कंद पुराण में मिलता है वर्णन, दर्शन-पूजन का विशेष लाभ
वाराणसी। पंचक्रोशी यात्रा मार्ग के अंतिम पड़ाव कपिलधारा मंदिर में सावन में भक्तों की भीड़ उमड़ रही। यहां रोजाना सैकड़ों की संख्या में भक्त भोलेनाथ का दर्शन-पूजन और जलाभिषेक के लिए पहुंच रहे हैं। ऐसी मान्यता है कि यहां सच्चे मन से लोग जो भी मन्नत मांगते हैं, वह जरूरी पूरी होती है। यह भी कहा जाता है कि कपिलधारा कुण्ड में डूबकी लगाना अत्यधिक फलदायी होता है। यहां डुबकी लगाना गया की फल्गु नदी में डूबकी लगाने के समान माना जाता है।
विनोद पाठक ने बताया कि ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव हिमालय से चलने के बाद तपोवन आश्रम कपिलधारा में ही निवास करने लगे। यहां कपिल मुनि अपने पुरखों को तारने के लिए सोमवती अमावस्या का तप किया तो उस समय नहीं आयी। शिव ने सोमवती से कहा कि कलियुग में बार बार आएंगी तो आपका सम्मान नहीं होगा। तब भगीरथ ने गंगा को बुलाया और शिव ने उन्हें अपनी जटा में समाहित कर लिया।
कपिलधारा को शिवगया तीर्थ के नाम से भी जाना जाता है। इसका महत्व गया से भी कई गुना महत्व है। यहां ऋषि मुनियों का भी श्राद्ध होता है। गौ हत्या, ब्रम्ह हत्या जैसे पापों से मुक्त होने के लिए पिण्डदान होता है। श्रावण मास में विशेष महत्व होता है। श्रावण मास में प्रत्येक दिन कांवड़ियों का आना जाना लगा रहता है। यहां जो लोग मन्नत मांगते हैं। उनकी मन्नत निश्चित रूप से बृषभध्वजेश्वर महादेव पूरी करते हैं।
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