दिलचस्प रहा है वाराणसी लोकसभा सीट का इतिहास, 1957 में पहली बार हुआ कांग्रेस का कब्ज़ा, अब एक दशक से भगवा है कायम
वाराणसी [Varanasi City] आध्यात्मिक नगरी होने के साथ ही राजनीतिक परिदृश्य से भी ख़ास रही है। वर्ष 1957 के आम चुनाव में पहली बार यह लोकसभा सीट अस्तित्व में आई और वर्तमान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इस सीट से दो बार बंपर जीत की वजह से इस सीट का महत्व और खास हो गया है।
वर्ष 1951-52 में जब देश में पहला आम चुनाव हुआ, तब वाराणसी जिले में बनारस पूर्व, बनारस पश्चिम और बनारस मध्य नाम से तीन लोकसभा सीटें थीं। इसके बाद साल 1957 में वाराणसी सीट के लिए हुए पहले आम चुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवार रघुनाथ सिंह ने निर्दलीय उम्मीदवार शिवमंगल राम को 71,926 मत से पराजित किया था। फिर जब 1962 में लोकसभा चुनाव हुए तो यह सीट फिर से कांग्रेस के रघुनाथ सिंह के खाते में रही। उन्होंने इस बार जनसंघ उम्मीदवार रघुवीर को 45,907 वोटों से हराया।
1967 में काशी के प्रथम सांसद को मिली शिकस्त
वर्ष 1967 के लोकसभा चुनाव में पहली बार वाराणसी सीट पर भाकपा के एसएन सिंह ने कांग्रेस के रघुनाथ सिंह को 18,167 मतों से हराया था। फिर से 1971 के चुनाव में कांग्रेस [Indian National Congress] के राजाराम शास्त्री ने भारतीय जनसंघ के कमला प्रसाद सिंह को 52,941 वोट से हराया और यह सीट फिर से कांग्रेस की झोली में आ गई। देश में 1971 के बाद जब इमर्जेंसी [Emergency] लगी और फिर साल 1977 में चुनाव हुए तो कांग्रेस को इस सीट पराजय का सामना करना पड़ा और कांग्रेस के राजाराम को भारतीय लोक दल के चंद्रशेखर ने 1,71,854 वोट से हराया।
1980 में कांग्रेस ने फिर की वापसी
वर्ष 1980 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने फिर से वाराणसी सीट पर जीत दर्ज कर वापसी की और यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री कमलापति त्रिपाठी [Pt. Kamlapati Tripathi] ने इस सीट पर पार्टी को जीत दिलाई। उन्होंने जनता पार्टी (सेक्युलर) के प्रत्याशी राज नारायण को 24735 मतों से हराया। 1984 में भी यह सीट कांग्रेस के पास बरकरार रही और श्याम लाल यादव ने भाकपा के प्रत्याशी ऊदल को 94430 वोटों से हराया। वर्ष 1989 के लोकसभा चुनाव में यह सीट कांग्रेस के हाथ से निकलकर जनता दल के अनिल शास्त्री के हाथों में चली गई। 1991 के लोकसभा चुनाव में पहली बार वाराणसी सीट पर भाजपा को जीत मिली, जब शीश चंद्र दीक्षित ने माकपा के राजकिशोर को हराया और तब से इस सीट पर भाजपा की जीत होती रही। 1991 के बाद 1996 में भाजपा के शंकर प्रसाद जायसवाल ने इस सीट पर जीत दर्ज की। जायसवाल ने माकपा के राजकिशोर को 1,00,692 वोटों से हराया।
2009 में वाराणसी देश के VVIP सीट में हुआ शामिल
वर्ष 2004 के लोकसभा चुनाव [Loksabha Election] में वाराणसी लोकसभा सीट पर 15 साल बाद कांग्रेस ने वापसी की और राजेश कुमार मिश्रा ने भाजपा के शंकर प्रसाद जायसवाल को हराकर जीत दर्ज की। साल 2009 के लोकसभा चुनाव में वाराणसी सीट तब देश की वीवीआइपी सीटों में शामिल हो गई, जब भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ० मुरली मनोहर जोशी के मुकाबले बसपा के मुख्तार अंसारी चुनाव मैदान में थे। इस चुनाव में मुरली मनोहर जोशी ने मुख्तार अंसारी को पराजित किया था।
मोदी पर मेहरबान हुई काशी
वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव [Loksabha Election] में भाजपा ने इस सीट पर नरेंद्र मोदी को चुनाव मैदान में उतारा और साथ ही उन्हें प्रधानमंत्री पद का चेहरा भी घोषित कर दिया। नरेंद्र मोदी पहले से अपनी परंपरागत सीट वडोदरा से चुनाव लड़ रहे थे और उन्होंने वाराणसी से भी चुनाव लड़ा। इस सीट पर नरेंद्र मोदी के खिलाफ आम आदमी पार्टी से अरविंद केजरीवाल तो कांग्रेस ने अजय राय को टिकट दिया था। इस घमासान में यह लोकसभा सीट देश की सबसे चर्चित सीट बन गई। इस बार नरेंद्र मोदी ने इस सीट पर अपनी अच्छी जीत दर्ज की तो वहीं दूसरे स्थान पर रहे अरविंद केजरीवाल। इस सीट पर जीत दर्ज करने के साथ ही नरेंद्र मोदी [Narendra Modi] संसद पहुंचे और देश के प्रधानमंत्री भी बने। उन्होंने प्रतिनिधित्व के लिए वाराणसी को ही चुना।
दूसरी बार फिर बड़े अंतर से जीते
फिर बारी आई 2019 के लोकसभा चुनाव की, जहां भाजपा ने एक बार फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को वाराणसी सीट से चुनाव मैदान में उतारा। इस बार उनके सामने कांग्रेस के अजय राय और समाजवादी पार्टी की शालिनी यादव मुकाबले में थीं। इस सीट पर जनता ने पीएम मोदी को ही फिर से चुना और शालिनी यादव बड़े अंतर से चुनाव हार गईं। नरेंद्र मोदी को 6,74,664 वोट मिले, सपा की शालिनी यादव को 195159 और कांग्रेस के प्रत्याशी अजय राय को 1,52,548 वोट मिले। वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव एक बार मोदी यहां से प्रत्याशी और उनके सामने कांग्रेस व सपा के इंडिया गठबंधन के उम्मीदवार के रूप में अजय राय हैं। वहीं बसपा के सैय्यद नियाज अली भी चुनावी मैदान में हैं। इस बार काशीवासी किसे जीत की सौगात देंगे यह तो 4 जून को ही तय हो पाएगा।
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