हाईकोर्ट ने कहा - यह श्रीसत्यनारायण भगवान की कथा में पंडितजी का शंख है जिसे बजाया और कथा पूरी हो गई

मोहनसराय ट्रांसपोर्ट योजना मामले में हाईकोर्ट ने वीडीए को दिया अंतिम मौका
वाराणसी। मोहनसराय ट्रांसपोर्ट योजना के मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट में चल रही सुनवाई के दौरान शुक्रवार को एक बार फिर वीडीए को मुंह की खानी पड़ी। हाईकोर्ट में बहस के दौरान वर्ष 2003 में किसानों का उनकी जमीन से नाम काटकर वीडीए का नाम चढ़ाने की बात उठी। दरअसल नामांतरण की प्रक्रिया के तहत जब जमीन देने के लिए किसान सहमत हो जाते तो पंचायतनामा बनता और इसके बाद नाम की कटौती होती। लेकिन वीडीए के अधिवक्ता ने अपना पक्ष रखते हुए कहाकि शहर की बढ़ती आबादी और यातायात के दबाव को कम करने के लिए मोहनसराय ट्रांसपोर्ट योजना जरूरी थी। इसलिए अर्जेंसी की धारा 17 (1) के तहत किसानों का नाम काटा गया। इस पर माननीय न्यायाधीश ने कहाकि यह श्री सत्यनारायण भगवान की कथा में पंडितजी का शंख है कि बजाया और कथा पूरी हो गई। बाकी प्रक्रिया क्यों नही पूरी की गई। अदालत ने वीडीए को 29 मई को अपना पक्ष रखने का अंतिम मौका दिया है।
गौरतलब है कि 17 मई को वीडीए मोहनसराय ट्रांसपोर्ट योजना के तहत अधिग्रहित जमीन पर कब्जे के लिए फोर्स के साथ पहुंचा। किसानों ने विरोध किया तो बवाल हो गया। लाठीचार्ज, गिरफ्तारियां हुईं। महिला और बच्चों की भी पिटाई का आरोप है। अब इस मामले की सुनवाई हाईकोर्ट में चल रही है। सुनवाई के दौरान किसानों के अधिवक्ता अश्विनी कुमार सचान और याचिकाकर्ता वीरेंद्र उपाध्याय बैरवन गांव के प्रधान लालबिहारी, विजय नारायण वर्मा, डाक्टर सुरेंद्र पटेल, राणा प्रताप कोर्ट में उपस्थित हुए। अधिवक्ता अश्विनी कुमार सचान ने किसानों का पक्ष रखा वीडीए पर किसान हितों के खिलाफ कार्रवाई करने का आरोप लगाया। वीडीए के अधिवक्ता भी अपना पक्ष रखते रहे।
इस दौरान माननीय न्यायाधीश ने वीडीए के अधिवक्ता से पूछा कि बिना 80 प्रतिशत किसानों को मुआवजा दिये कब्जे की कार्रवाई क्यों की गई। धारा पांच के तहत किसानों की सहमति लेने के मामले में अर्जेंसी दिखाकर धार छह की कार्रवाई क्यों कर दी गई। जब अस्सी प्रतिशत किसानों को मुआवजा ही नही दिया गया तो किसानों का उनकी जमीन से नाम काटकर वीडीए का नाम कैसे दर्ज करा लिया गया। कब्जे का मेमो कटना चाहिए था और तब नामांतरण की कार्रवाई होनी चाहिए थी। अदालत ने पूछा कि जिन किसानों को मुआवजा नही मिला है उनकी धनराशि वीडीए ने कहा रखी है। तो जवाब दिया गया कि ट्रेजरी में रूपये रखे गये हैं। अदालत ने कहाकि नियमतः मुआवजे की धनराशि कोर्ट में जमा होनी चाहिए थी। इसके अलावा इस मामले में अवार्ड की कार्रवाई दस साल बाद की गई। वीडीए की ओर से कहा गया कि पुराने रिकार्ड हैं उन्हें खोजकर दाखिल करेंगे और कुछ कागजात छूट गये हैं। इसलिए हमें अवसर दिया जाय। ऐसे में अदालत ने 29 मई सोमवार को वीडिए को अंतिम अवसर देते हुए कागजात दाखिल करने का आदेश दिया है।
गौरतलब है कि इससे पहले 17 मई को भी सुनवाई हुई थी। मोहनसराय ट्रांसपोर्ट नगर योजना के तहत किसानों की जमीन पर कब्जे को लेकर बवाल के बाद प्रशासन को तगड़ा झटका तब लगा था जब हाईकोर्ट ने स्थगन आदेश दिया। न्यायालय में अधिवक्ता अश्विनी कुमार सचान, किसान संघर्ष समिति के मीडिया प्रभारी व याचिकाकर्ता वीरेंद्र उपाध्याय, बैरवन के पूर्व प्रधान कृष्णा प्रसाद उर्फ छेदी लाल उपस्थित हुए थे। कृष्णा प्रसाद लाठीचार्ज में घायल थे। अदालत में किसानों के वकील की ओर से एक दिन पहले हुए बवाल के दौरान पुलिस कार्रवाई और घायलों से सम्बंधित वीडियो और फोटोग्राफ न्यायालय को दिये गये थे। सुनवाई के दौरान वीडीए के अधिवक्ता ने कहाकि प्रशासन जिन किसानों को मुआवजा दे चुका है उन जमीनों पर कब्जा ले रहा था। इस पर किसानों की ओर से कहा गया कि 337 किसानों का 2012 में अवार्ड किया गया। जबकि 857 किसानों ने कोई मुआवजा ही नही लिया है। इससे पहले वर्ष 2003 में ही वीडिए ने बिना सबको मुआवजा दिये किसानों का खतौनी से नाम काटकर अपना नाम चढ़वा लिया।
कोर्ट में बहस के दौरान माननीय न्यायाधीश ने कहाकि धारा 5 के तहत भूमि अधिग्रहण के लिए किसानों की सहमति नही ली गई। किसानों के एवार्ड पर बहस हुई तो न्यायाधीश ने कहाकि आप जमीन पर कब्जा लेने जाएंगे और किसान अपनी बात कहना चाहेगा तो उसकी नही सुनेंगे। उन्हें मारेंगे ? इस दौरान वीडीए के वकील अपनी बात कहने की कोशिश कर रहे थे तो अदालत ने कहा था कि अगली डेट पर बात रखना। अब जब शुक्रवार को सुनवाई हुई तो दोनों पक्षों को सुनने के बाद कोर्ट ने वीडीए को आखिरी मौका दिया है। गौरतलब है कि मोहनसराय ट्रान्सपोर्ट नगर योजना को लेकर चार गांवों के किसान 21 साल से आंदोलन कर रहे हैं। धरना-प्रदर्शन, महापंचायतों के जरिए किसान अपनी जमीन बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं। किसानों और वीडीए के अफसरों के बीच कई चक्र की वार्ता हुई लेकिन दोनों पक्ष अपनी-अपनी बातों पर ही अड़ा रहा जिससे आजतक सहमति नही बन पाई। इस मामले को लेकर हाईकोर्ट में मामला लम्बित है। किसानों को कहना है कि प्रशासन ने हाईकोर्ट के आदेश का इंतजार नही किया और मनमाने ढंग से जमीन पर कब्जे के लिए तानाशाही रवैया अपनाया।
हमारे टेलीग्राम ग्रुप को ज्वाइन करने के लिये यहां क्लिक करें, साथ ही लेटेस्ट हिन्दी खबर और वाराणसी से जुड़ी जानकारी के लिये हमारा ऐप डाउनलोड करने के लिये यहां क्लिक करें।