हर सांस में बसती है गंगा की महिमा, कम होती जलधारा चिंता का विषय, प्रोफेसर ने की अपील  

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वाराणसी। गंगा सप्तमी के पावन तिथि पर ही मां गंगा का धरती पर अवतरण हुआ था। यह पर्व न केवल आस्था का प्रतीक है, बल्कि हमें गंगा की पवित्रता, उपयोगिता और उनकी वर्तमान स्थिति पर विचार करने का भी अवसर देता है। काशी हिंदू विश्वविद्यालय के महामना मालवीय गंगा शोध संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं गंगा बेसिन अथॉरिटी के पूर्व सदस्य प्रोफेसर बीडी त्रिपाठी ने गंगा की वर्तमान स्थिति चिंता व्यक्त की। उन्होंने गंगा संरक्षण के लिए लोगों से अपील की। 

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उनका कहना है कि अब गंगा की स्वच्छता नहीं, बल्कि गिरता जलस्तर बड़ा संकट बन चुका है। गंगा के जल का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व अनगिनत बार वर्णित किया गया है। वह जीवनदायिनी मानी जाती हैं। न केवल आध्यात्मिक अर्थों में, बल्कि सामाजिक और पारिस्थितिकीय रूप से भी। लेकिन आज चिंता का विषय यह है कि गंगा का जल स्वयं संकट में है।

काशी जैसे धार्मिक शहर में, जहां गंगा की महिमा हर सांस में बसती है, आज उनकी दुर्दशा चिंता का विषय बन गई है। गंगा के किनारे रेत के उभरे टीले, घटता जलस्तर और बदहाल प्रवाह विशेषज्ञों को परेशान कर रहा है। प्रोफेसर त्रिपाठी का कहना है कि अब गंगा की स्वच्छता नहीं, बल्कि गिरता जलस्तर बड़ा संकट बन चुका है। 

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उन्होंने बताया कि गंगा का पानी इसलिए घट रहा है क्योंकि जलधारा को कई जगहों पर बाधित किया गया है और प्राकृतिक प्रवाह में लगातार हस्तक्षेप हो रहा है। प्रो. त्रिपाठी ने यह भी बताया कि कुंभ जैसे आयोजनों के दौरान जब बांधों से बड़ी मात्रा में पानी छोड़ा गया था, तो इससे प्रदूषण स्वतः कम हुआ था। लेकिन प्रयागराज में करोड़ों श्रद्धालुओं के स्नान से जैविक प्रदूषण (बायोकेमिकल) की मात्रा तेजी से बढ़ गई है, जिससे पानी की गुणवत्ता फिर बिगड़ गई है।

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