21 क्विंटल धान की बालियों से सजा मां अन्नपूर्णा का दरबार, किसानों ने पहली फसल अन्न की देवी को किया अर्पित, भक्तों का लगा रहा तांता
श्रद्धालुओं का तांता
मंदिर में व्रत उद्यापन और पूजा-अर्चना के लिए भक्तों की भारी भीड़ देखी गई। मान्यता के अनुसार, 17 दिनों तक चलने वाले कठिन महाव्रत को पूरा करने के बाद श्रद्धालु देवी के दरबार में 21, 51, 101 या 501 परिक्रमा कर अपनी मन्नतों की आहुति देते हैं।

पूर्वांचल के किसानों की पहली फसल देवी को अर्पित
महंत शंकरपुरी ने बताया कि पूर्वांचल के किसान अपनी पहली फसल मां अन्नपूर्णा को अर्पित करते हैं। यह परंपरा वर्षों से चली आ रही है। अर्पित की गई धान की बालियों से देवी का मंदिर और उनका गर्भगृह सजाया जाता है।

इस बार मंदिर को 21 क्विंटल धान की बालियों से भव्य रूप से सजाया गया। देवी के श्रृंगार के बाद इन बालियों को अगले दिन प्रसाद के रूप में भक्तों में वितरित किया जाता है। मान्यता है कि इन बालियों को घर के अन्न भंडार में रखने से परिवार में कभी अन्न की कमी नहीं होती।

काशी और मां अन्नपूर्णा का विशेष संबंध
पौराणिक मान्यता के अनुसार, काशी के अधिपति भगवान विश्वनाथ ने भी मां अन्नपूर्णा से भिक्षा मांगी थी। ऐसा कहा जाता है कि मां अन्नपूर्णा के आशीर्वाद से काशी में कोई भी भूखा नहीं सोता।

व्रत का विशेष महत्व
इस कठिन महाव्रत में भक्त 17 दिनों तक एक समय का ही फलाहार करते हैं। व्रत पूरा होने पर मंदिर क्षेत्र में श्रद्धालुओं ने पूजा-पाठ किया और देवी का आशीर्वाद प्राप्त किया।

मां अन्नपूर्णा के इस भव्य आयोजन ने पूरे क्षेत्र में उत्साह और भक्ति का माहौल बना दिया। भक्तों के लिए यह आयोजन न केवल आस्था का केंद्र है बल्कि धान की बालियों से जुड़े इस आयोजन में कृषि और आध्यात्मिकता का अद्भुत संगम भी देखने को मिलता है।

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