गर्मी का सितम: सूखने लगा गंगा का पानी, नजर आने लगे टीले, गिरने लगा ग्राउंड वाटर लेवल, वैज्ञानिकों ने जताई चिंता

वाराणसी। इस बार गर्मी का सितम वक्त से पहले ही शुरू हो गया है। जिसका असर इंसान और प्रकृति पर भी दिखने लगा है। बढ़ती गर्मी की वजह से गंगा सिमटने के साथ ही घाट भी छोड़ती जा रही है। आमतौर पर गंगा में उभरते टीलों की तस्वीर मई और जून के महीनों में दिखायी देती है। लेकिन इस बार यह तस्वीर अप्रैल महीने के शुरुआती दिनों से ही नजर आ रही है। इसको लेकर के गंगा वैज्ञानिकों में भी चिंता बढ़ गई है।
वैज्ञानिकों का कहना है कि गंगा के बीच में अभी से दिखता टीला भयंकर गर्मी की चेतावनी दे रहा है। जिससे भविष्य में जल संकट भी हो सकता है। बीएचयू महामना मालवीय गंगा शोध केंद्र के वैज्ञानिक प्रो. बीडी त्रिपाठी ने बताया कि अप्रैल में ही गंगा की स्थिति मई और जून की तरह नजर आ रही है। गंगा की इस तस्वीर के चार मुख्य कारण है। जिसमें सबसे पहला कारण है कि गंगा में पानी का लगातार कम होना, दूसरा हरिद्वार से चैनल के माध्यम से दूसरे प्रदेशों में पानी का हस्ताक्षरित करना।
तीसरा कारण है कि गंगा की दोनों ओर लिफ्ट कैनाल बनाकर पानी को खेतों में सप्लाई करना है। जिनसे फसलों की सिंचाई होती है। इसके साथ चौथा कारण पिछले 2 दशकों से लगातार गंगा बेसिन में भूजल स्तर का तेजी से नीचे गिरना है। इसके चार्जिंग के लिए भी गंगा का पानी नीचे जा रहा है। गंगा वैज्ञानिक ने जल संकट को लेकर चिंता जाहिर की और बचाव के बारे में बताते हुए कहा कि रेन वाटर हार्वेस्टिंग और ग्राउंड वाटर रिचार्जिंग जैसे साइंटिफिक तकनीक को लेकर लोगों को जल संरक्षण के प्रति जागरूक करना चाहिए। इसे हर क्षेत्र में अनिवार्य कर देना चाहिए। रेन वाटर हार्वेस्टिंग और ग्राउंड वाटर रिचार्जिंग के माध्यम से गंगा और प्रमुख नदियों में पानी की मात्रा बढ़ेगी।
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वैज्ञानिक बीडी त्रिपाठी ने कहा कि आज के दौर में धड़ल्ले से लोग अपने दैनिक कार्यों के लिए ग्राउंडवाटर का इस्तेमाल करते हैं। जबकि अधिक से अधिक इस्तेमाल स्टोर वाटर का करना चाहिए। हमें इस बात पर विशेष ध्यान देना चाहिए की बारिश के पानी को किस प्रकार से स्टोर करना है। पानी का सबसे बड़ा स्रोत बारिश ही है और इसे रोकना अति आवश्यक है। ग्रामीण क्षेत्र के साथ-साथ शहरी क्षेत्र में भी लोगों को जल संकट के प्रति गंभीरता से विचार करना आवश्यक है।