आज भी याद है 1980 का चुनाव प्रचार, बेनियाबाग में आधी रात तक होता रहा आयरन लेडी का इंतजार, कांग्रेस व सपा के बीच मुकाबला था जोरदार

Indira Gandhi in Varanasi
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वाराणसी। वाराणसी लोकसभा [Varanasi Loksabha] का इतिहास काफी दिलचस्प है। पूर्वांचल की राजनीति का केंद्र कही जाने वाले इस सीट से सभी राजनीतिक दलों ने जीत का स्वाद चखा है। बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी से जुड़ी जितनी आध्यात्मिक कथाएं हैं। उतनी ही यहां चुनावी कहानियां हैं। 

चुनावों के इतिहास में सन् 1980 का चुनाव सर्वाधिक रोचक था। उस चुनाव में बनारस की ही दो राजनीतिक विभूतियों का परस्पर टकराव था। दोनों के रिश्ते पृथक दलों में रहकर भी अच्छे थे और वे आपस में टकराना भी नहीं चाहते थे, लेकिन कभी-कभी राजनीतिक परिस्थितियां और दलगत व वैचारिक प्रतिबद्धता के दायित्व बाध्य कर ही देते हैं। ऐसा ही वह चुनाव था, जो बनारस की संसदीय चुनाव की पिच पर लड़ा गया था। मुकाबला था काशी का गौरव कहे जाने वाले पं.कमलापति त्रिपाठी व काशी के कबीर जैसे फक्कड़ समाजवादी नेता राजनारायण के बीच।

इस चुनाव में अंत तक असमंजस की स्थिति बनी रही और तमाम कयासों को चीरकर अंतत: पं. कमलापति त्रिपाठी ने वह चुनाव जीता था। उस जीत में इंदिरा गांधी की ऐतिहासिक जनसभा का बड़ा योगदान था, जिन्होंने चुनाव लड़ने के अनिच्छुक एवं नहीं लड़ने का संकेत दे चुके राज्यसभा के नेता विपक्ष पंडित कमलापति को अंतिम समय राजनारायण के मैदान में आने के बाद कांग्रेस का उम्मीदवार घोषित करना पड़ा था। वजह साफ थी कि 1977 के विगत चुनाव रायबरेली में राजनारायण से हार जाने का हिसाब, पं.कमलापति त्रिपाठी जैसे काशी के कद्दावर नेता को खड़ा करके, चुकता करने का मंसूबा रखती थीं इंदिरा गांधी। इस तरह वह चुनाव प्रतिष्ठापरक बन गया था।

बेनियाबाग़ में इंदिरा गांधी की सभा

बेनियाबाग मैदान में 31 दिसंबर 1980 की रात साढ़े आठ बजे सभा निर्धारित थी। उससे पूर्व वहां शाम 5.30 बजे जनता पार्टी की सभा बाबू जगजीवन राम के लिए तय थी, जिनके नहीं आने से वह सभा नहीं हुई थी। थोड़ी देर बाद ही वहां कांग्रेस का जमावड़ा होने लगा। निर्धारित समय बीत गया, इंदिरा गांधी के आने का कुछ अता पता नहीं था। मोबाइल फोन का जमाना तो था नहीं, इसलिए किसी को कोई खबर नहीं हो पा रही थी कि वह कब पहुंचेंगी और यह स्थिति ही उस सभा को एक रिकार्ड ऐतिहासिक सभा बना गई थी। साल की आखिरी रात और कड़ाके की ठंड में कोढ़ में खाज जैसी स्थिति यह कि बूंदाबांदी भी होने लगी थी, लेकिन सभा थी कि उखड़ नहीं रही थी। बेनियाबाग भरा हुआ था और उतने ही लोग बाहर चेतगंज और गोदौलिया तक फैले थे। हर ओर कठिन इंतजार का आलम। 

रातभर मैदान में डटे रहे लोग

इंदिरा जी को बिहार से बलिया या देवरिया की सीमा में प्रवेश कर बनारस सड़क मार्ग से ही पहुंचना था। अचानक शोर उठता कि आ गईं और चौकस हो लोग प्रवेश द्वार की ओर देखने लगते। थोड़ी देर में लोग फिर शांत, पर उत्साह यथावत। मैदान में जो बल्ली-बांस गड़े थे, लोग बूंदाबांदी के बाद उन्हें उखाड़ कर जलाने और तापने लगे। देखते ही देखते साल की वो आखिरी रात इंदिरा जी के इंतजार में बीत ही गई, पर क्या मजाल कि लोग खिसकें। भोर से सुबह धूप होने तक लोग जाते भी, तो कुछ देर में लौट आते थे।

तब रात की नहीं थी कोई चिंता

उस जमाने में रात दस बजे तक ही सभा का नियम नहीं था। पूरी रात जहां लोग जमे रहे, वहीं पं. कमलापति त्रिपाठी भी कांग्रेस के लोगों के साथ डटे रहे। एक बार वो भी घर गए और जल्द ही लौट आए थे। अंत में लगभग 14 घंटे विलंब से इंदिरा जी का आगमन सुबह 10 बजे हुआ। थकान से बोझिल इंदिरा गांधी सारी रात सभा और यात्रा करती रही थीं। वह सीधे सभा स्थल पर खुली जीप में खड़ी नगर के रास्ते भर एक तरह से रोड शो का आलम बनाते हुये बेनियाबाग पहुंचीं। 

घुड़सवार पुलिस दस्ते के घेरे में उनकी खुली जीप ने बेनियाबाग में प्रवेश कर विपरीत दिशा में पूर्वी छोर पर बने मंच की और जाने का रुख किया। नगर में छिटकी भीड़ भी उनके पहुंचने की सूचना के साथ बेनियाबाग की ओर दौड़ पड़ी। देखते ही देखते चारों ओर तिल रखने की जगह नहीं रही।  

घरों की छतों पर पांव रखने की भी नहीं थी जगह

घरों की छतें लोगों से पटी पड़ी थीं। लोगों ने देखा कि थकान से बोझिल इंदिरा गांधी का चेहरा लगातार मैराथन दौरों से थका था। मंच से इंदिरा गांधी के भाषण के पूर्व पं.कमलापति त्रिपाठी का भाषण हुआ। सभा में इंदिरा गांधी का 15 मिनट का भाषण मार्मिक और अपीलिंग था। सभा के बाद वह उसी खुली जीप में पुलिस घेरे के साथ रोड शो करते हुते पंडित जी के घर औरंगाबाद गईं। वहां स्नानादि एवं भोजन के बाद उन्होंने आगे अपने निर्धारित कार्यक्रमों के लिए प्रस्थान किया। उनकी वह सभा ने केवल एक इतिहास बना गई थी, बल्कि उस चुनाव में पं. कमलापति त्रिपाठी की जीत भी सुनिश्चित कर गई।

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