गौसंरक्षण के मामले में राजनीतिक दलों की चुप्पी पर शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने जताई नाराजगी, देश के 4123 विधानसभा में बनाएंगे ‘गोविधायक’, कर दिया बड़ा ऐलान

हर दरवाज़े पर दस्तक दी, पर न मिली गऊ के पक्ष में आवाज़
शंकराचार्य जी ने बताया कि प्रयागराज कुंभ के पश्चात् वे समग्र आस्तिक समाज की ओर से 33 दिनों तक भारत के सभी प्रमुख राजनीतिक दलों से केवल एक प्रश्न पूछते रहे — क्या आप गोमाता के पक्ष में हैं? पर न कांग्रेस ने जवाब दिया, न भाजपा ने, न वाम दलों ने और न क्षेत्रीय शक्तियों ने। 17 मार्च को रामलीला मैदान में एक प्रतीक्षा सभा आयोजित की गई थी, जहां उत्तर की अपेक्षा थी। पर जब कोई नहीं आया, तो उन्होंने स्वयं दलों के कार्यालय जाकर उत्तर मांगने का प्रयास किया। दुर्भाग्यवश, यहां भी उन्हें अपमान और उपेक्षा का ही सामना करना पड़ा।
यह अपने आप में एक ऐतिहासिक घटना थी — किसी शंकराचार्य का राजनीतिक दलों से सीधा प्रश्न और उनके चुप रहने का सार्वजनिक उद्घाटन। भाजपा जैसी पार्टी ने तो उन्हें अपने कार्यालय के बाहर जाने से भी रोकने के लिए बैरिकेडिंग कर दी और पूर्व में दी गई अनुमति भी रद्द करवा दी।
चुप्पी का मतलब इंकार है: शंकराचार्य का दो टूक एलान
शंकराचार्य जी ने कहा, “हमने पहले ही स्पष्ट कर दिया था कि जो भी चुप रहेगा, उसे हम गोहत्या का मौन समर्थनकर्ता मानेंगे। अगर आप गोमाता के साथ खड़े नहीं होते, तो फिर आपकी राजनीति हमारे लिए अस्वीकार्य है।” उन्होंने कहा कि आज के बाद किसी राजनीतिक दल से कोई उम्मीद करना आत्मवंचना होगी।
अब गौमतदाता ही बनेंगे गौरक्षक
राजनीतिक दलों की उदासीनता के बीच शंकराचार्य जी ने एक वैकल्पिक संकल्प की नींव रखी। उन्होंने कहा कि अब हर सनातनी हिन्दू को एक गौमतदाता के रूप में जागना होगा। जो भी व्यक्ति गौमाता की रक्षा के संकल्प के साथ मतदान करेगा, उसे गौदेव और गौदेवी की उपाधि दी जाएगी। इन गोमतदाताओं से तीन संकल्प अपेक्षित होंगे—
1. गाय के पक्ष में मतदान करना,
2. प्रतिदिन गौमाता के लिए गौग्रास निकालना,
3. यथासंभव गौव्रती जीवन जीने का प्रयास करना।
इन तीनों में से कोई भी एक, दो या तीन संकल्प लेने वाला व्यक्ति गोमाता के श्रीविग्रह में स्थित 33 कोटि देवताओं में से एक का प्रतिनिधि माना जाएगा।
सनातनी राजनीति की मांग और एक निष्कलुष विकल्प की पुकार
शंकराचार्य जी ने स्पष्ट कहा कि वे किसी राजनीतिक दल की स्थापना नहीं करेंगे, क्योंकि वे एक धर्माचार्य हैं और राजनीति से प्रत्यक्ष संबंध उनका धर्म नहीं है। परंतु यह अवश्य कहा कि एक धर्मनिष्ठ सनातनी हिन्दू के रूप में उन्हें अधिकार है कि वे यह विचार करें कि उनका वोट कहीं धर्मविरोधी गतिविधियों को बढ़ावा तो नहीं देगा।
उन्होंने मांग की कि एक ऐसी पार्टी सामने आए जो विशुद्ध सनातनी मान्यताओं के आधार पर राजनीति करे, जिससे वे स्वयं भी गर्व से मतदान कर सकें।
गोरक्षा का राष्ट्रव्यापी मिशन: रामाधाम, गोविधायक और रामा लैब
गौप्रतिष्ठा आंदोलन के अंतर्गत देश के 4123 विधानसभा क्षेत्रों में गोविधायक नियुक्त किए जा रहे हैं। इनके मार्गदर्शन में प्रत्येक क्षेत्र में रामाधाम की स्थापना का लक्ष्य रखा गया है, जहां 108 रामा गायें रहेंगी। भविष्य में यह संख्या बढ़ाकर तीन लाख रामाधाम करने की योजना है।
इसके अतिरिक्त, शुद्ध देसी नस्ल की गायों की पहचान के लिए डीएनए टेस्टिंग प्रयोगशाला – रामा लैब – की स्थापना काशी में की जाएगी, जहां गवयों (गाय जैसे दिखने वाले अन्य पशुओं) से रामा गायों की वैज्ञानिक पहचान सुनिश्चित की जाएगी।
33 कोटि देवताओं के जागरण हेतु 33 कोटि आहुतियाँ
प्रयागराज कुंभ में 324 यज्ञ कुण्डों पर लगभग 2 करोड़ 61 लाख आहुतियाँ दी जा चुकी हैं। अब शेष आहुतियों के लिए देश भर में गोप्रतिष्ठा यज्ञ आयोजित किए जाएंगे। साथ ही "मेरी गाय मेरा गौरव" अभियान के माध्यम से उन गौसेवकों को सम्मानित किया जाएगा जो अपनी आजीविका से अधिक गौसेवा को प्राथमिकता देते हैं।
गोपाल पाठ्यक्रम और रोजगार सृजन
गौसेवा को एक संगठित रोजगार का स्वरूप देने हेतु गोपाल पाठ्यक्रम तैयार किया गया है, जो अगले महीने से शुरू होगा। इसमें प्रशिक्षित व्यक्ति भविष्य में गो विश्वविद्यालय के माध्यम से समर्पित सेवा में लग सकेंगे।
गौरक्षक नहीं गुंडे – वे गौवीर हैं
शंकराचार्य जी ने उन सभी स्वयंसेवकों को गौवीर की उपाधि देने की घोषणा की, जो बिना किसी निजी स्वार्थ के, केवल श्रद्धा के बल पर गौमाता की रक्षा कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि गौरक्षक गुंडे नहीं, बल्कि सबसे बड़े धार्मिक योद्धा हैं।
संविधान की धारा 48 और गौहत्या पर प्रतिबंध की वैधानिक मांग
शंकराचार्य जी ने भारत सरकार से पूछा कि संविधान के नीति निदेशक तत्वों की धारा 48 को अब तक क्यों नहीं लागू किया गया, जबकि उसमें स्पष्ट निर्देश है कि राज्य गायों और बछड़ों की रक्षा का प्रयास करे। उन्होंने कहा कि “प्रयास” शब्द की उपेक्षा ही पूरे राष्ट्र की आध्यात्मिक चेतना का अपमान है।