बीएचयू में संगोष्ठी, वक्ता बोले भारत की संपूर्णता को जानने के लिए उत्तर पूर्व की परंपराओं को समझना जरूरी

वाराणसी। बीएचयू के वैदिक विज्ञान केंद्र के सभागार में प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग तथा भारत अध्ययन केंद्र, काशी हिंदू विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में "उत्तर पूर्व भारत में प्रचलित आगमिक परंपराएं एवं मंदिर स्थापत्य" विषयक अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इसमें वक्ताओं ने वेदों के महत्व और उत्तर पूर्व भारत की विरासत पर चर्चा की। तीन दिवसीय संगोष्ठी 7 फरवरी तक चलेगी।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रो. आलोक त्रिपाठी, अतिरिक्त महानिदेशक, पुरातत्व (ए.एस.आई.), भारत सरकार रहे। अपने संबोधन में उन्होंने कहा कि वेद केवल धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि ज्ञान का स्रोत हैं। उन्होंने बताया कि प्राचीन काल में प्रयाग्ज्योतिष पूर्वी भारत का प्रमुख केंद्र था, जहाँ से सूर्य का उदय होता था। कालांतर में भारत के पूर्वी क्षेत्र को "इंडिया" से जोड़ दिया गया, जिससे पूर्वी भारत को अलग इकाई के रूप में देखा जाने लगा। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि भारतीय ग्रंथों में कभी भी उत्तर-पूर्व को एक अलग क्षेत्र के रूप में नहीं देखा गया। ऐतिहासिक रूप से, जब कन्नौज में राज्याभिषेक होता था, तब प्रयाग्ज्योतिष के राजा अपने मंत्रियों एवं प्रजा के साथ इस समारोह में भाग लेते थे।
विशिष्ट अतिथि इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र, वाराणसी के पूर्व सलाहकार प्रो. विजय शंकर शुक्ल ने कहा कि यह चर्चा स्वतंत्रता के तुरंत बाद या सौ वर्ष पूर्व होनी चाहिए थी, लेकिन अब काशी हिंदू विश्वविद्यालय द्वारा इसे आयोजित किया जाना एक महत्वपूर्ण कदम है। उत्तर पूर्व की परंपराओं को समझे बिना भारत की संपूर्णता को नहीं जाना जा सकता। इस संगोष्ठी के माध्यम से इस क्षेत्र की आगमिक परंपराओं, बौद्ध, जैन और अन्य धार्मिक परंपराओं पर व्यापक शोध किया जा रहा है।
प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग के प्रो. ओमकार नाथ सिंह ने अपने वक्तव्य में कहा कि उत्तर-पूर्व भारत की पारंपरिक विरासत को समझना आवश्यक है। भारत अध्ययन केंद्र के समन्वयक प्रो. सदाशिव कुमार द्विवेदी ने कहा कि भारत के विकास को ध्यान में रखते हुए वर्ष 2047 तक उत्तर-पूर्व भारत की आगमिक परंपराओं और मंदिर स्थापत्य पर किए जा रहे अध्ययन महत्वपूर्ण साबित होंगे।
संगोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे कला संकाय, काशी हिंदू विश्वविद्यालय के संकायप्रमुख प्रो. मयाशंकर पांडेय ने कहा कि यह संगोष्ठी भारत के सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। उन्होंने कहा कि आधुनिक परंपराओं में यंत्र, तंत्र, मंत्र, योग, मंदिर पूजा एवं कीर्तन का महत्वपूर्ण स्थान है। उत्तर-पूर्व भारत में इस संदर्भ में कम अध्ययन हुए हैं, जिन्हें इस प्रोजेक्ट के माध्यम से आगे बढ़ाया जाएगा।
संगोष्ठी की शुरुआत कुलगीत और मंगलाचरण से हुई। इस अवसर पर प्रमुख शोधकर्ताओं, शिक्षाविदों और छात्रों की उपस्थिति रही। कार्यक्रम का संचालन और धन्यवाद ज्ञापन आयोजन समिति द्वारा किया गया। इस संगोष्ठी की संयोजिका डॉ. प्रियंका सिंह, सहायक प्रोफेसर, प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग हैं, जबकि समन्वयक वरिष्ठ प्रोफेसर सदाशिव द्विवेदी, भारत अध्ययन केंद्र, काशी हिंदू विश्वविद्यालय हैं।