अतीक के बाद निकलने वाला है स्व. कृष्णानंद राय का जिन्न, बढेगी माफिया सरगना मुख्तार अंसारी की मुश्किलें

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वाराणसी। सत्ता का नशा बड़ा खराब होता है। यह जानते हुए भी सड़क छाप नेता भी जब सत्ता में पहुंच जाते है तो उनकी हरकतें शाहंशाहों की तरह हो जाती हैं। लेकिन जब वक्त का पहिया घूमता है तो धूल फांकते देर नही लगती। लोकतंत्र में जनता जब किसी को सत्ता के सिंहासन पर बैठाती है तो उसकी स्थिति और सत्ता में रहकर विपक्ष में बैठे लोगों की स्थिति काअंदाजा तो सबको है। प्रयागराज का माफिया सरगना अतीक अहमद रहा हो या गाजीपुर के बाहुलबली माफिया सरगना मुख्तार अंसारी और कथित रूप से सत्ता के पालने में झूल रहे बाहुबली बृजेश सिंह हों। पुरानी कहावत है कि इतिहास अपने को दोहराता है। राजनीति के अपराधिकरण के इस दौरान में जरायम जगत से जुड़े लोगों के साथ वही हालात है। 

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भारतीय जनता पार्टी के नेता, जम्मू कश्मीर के राज्यपाल मनोज सिन्हा और बृजेश सिंह के करीबी रहे कृष्णानंद राय की हत्या वर्ष 2005 में हुई थी। बीजेपी विधायक कृष्णानंद राय को गाजीपुर जिले के गोडउर गांव में शाम को एके-47 से गोलियां बरसाकर भून दिया गया था। इस गोलीबारी में कृष्णानंद राय समेत सात लोगों की जान चली गई थी। हत्याकांड में कृष्णानंद राय, गनर निर्भय उपाध्याय, ड्राइवर मुन्ना, रमेश राय, श्याम शंकर राय, अखिलेश राय और शेषनाथ सिंह की मौत हो गई थी। मौके पर पांच सौ गोलियां चली थी। पोस्टमार्टम के दौरान सात शवों से 67 गोलियां बरामद की गई थीं। लेकिन सत्ता में मजबूत पकड़ का नतीजा रहा कि कोर्ट में सुनवाई के बाद बाहुबली मुख्तार अंसारी समेत 7 आरोपी कोर्ट से हुए बरी हो गये थे। 

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मुख्तार अंसारी के गुर्गें जिसमें मुन्ना बजरंगी भी शामिल रहा, उन लोगों ने मुखबिर की सूचना पर कृष्णानंद राय को घेरकर बर्स्ट फायरिंग की थी। इस घटना की भी स्क्रिप्ट गाजीपुर में लिखी गई थी। गौरतलब है कि कृष्णानंद राय बड़ी सी चुंडी भी रखते थे। हत्यारे कृष्णानंद राय समेत सात लोगों को मौत के घाट उतारने के बाद भी वहीं जमे रहे। इसके बाद शूटरों में से एक कृष्णानंद राय की चुंडी काटकर अपने साथ अपने आका को दिखाने ले गया था। तब प्रदेश में सपा की सरकार थी। मुख्तार फतेहगढ़ जेल में बंद था। बताया तो यह भी जाता है कि एक शूटर गाजीपुर जेल से कृष्णानंद राय को मारने ले जाया गया था। उस समय गाजीपुर में तैनात मुख्तार की बिरादरी का एक दरोगा अपनी बुलेट से उस शूटर को जेल से लेकर मौके तक पहुंचाया था। हत्या के बाद वही दरोगा उस शूटर को लाकर जेल तक पहुंचाया भी था। बाद में उस दरोगा को पुरस्कार के रूप में इंस्पेक्टर बना दिया था। सयोगवश सत्ता पलट गई और दरोगा से इंस्पेक्टर बने उस पुलिसवाले की पोस्टिंग बनारस में हो गई। वह मनमाने थानों पर अपनी तैनाती कराता रहा। लेकिन मीडिया को उसकी काली करतूत का पता था। कृष्णानंद राय हत्या में उसकी भूमिका पर उससे सवाल होते रहे। लिहाजा बनारस के तीन थानों पर उसकी तैनाती तो हुई लेकिन ज्यादा दिन तक टिक नही पाया।

कृष्णानंद राय की हत्या को न तो जम्मू कश्मीर के राज्यपाल भूल पाए हैं और न कृष्णानंद राय का परिवार। सत्ता मुख्तार और उसके सांसद भाई के इशारों पर चलती थी। तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह की उस दौर में हुई सभाओं में अफजाल की मौजूदगी और मुलायम सिंह के भाषण से ही स्पष्ट हो जाता है कि मुख्तार की मुख्तारी कैसे चलती थी। अंडरवर्ल्ड से जुड़े इस माफिया सरगना ने अपने चिर प्रतिद्वंद्वी बृजेश सिंह को मौत के घाट उतारने में कोई कोर कसर नही छोड़ी थी। मुख्तार के आंतक और सत्ता में मजबूत पकड़ के कारण बृजेश सिंह को 20 वर्ष फरारी काटनी पड़ी थी। उसी दौरान मुख्तार के काफिले पर उसरीचट्टी में एके 47 से फायरिंग हुई थी। इस फायरिंग में बृजेश सिंह और उनके लोगों का नाम आया। तब मुखतार ने दावा किया कि मेरी जवाबी फायरिंग में बृजेश को गोली लगी है। यह दावा सिर्फ इसलिए था कि बृजेश की मौजूदगी का सबूत मिल जाय। लेकिन शातिर दिमाग बृजेश ने अपनी मौजूदगी का सबूत नही दिया। इसके बाद से बृजेश सिंह के जीवित रहने या मारे जाने की अफवाहों के पंख लग गये थे। इन दोनों गिरोहों की कहानी तो बहुत लम्बी है लेकिन अब जब भाजपा की सरकार केंद्र और प्रदेश में बनी तो मुख्तार की उल्टी गिनती शुरू हो गई। इसकी एक और वजह है। वर्तमान मुख्यमंत्री और गोरखपुर से सांसद रहे योगी आदित्यनाथ पर भी मुख्तार के इशारे पर सत्ता ने शिकंजा कस दिया था। उन पर भी मुकदमे दर्ज होने लगे थे।

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दबाव इस कदर बढ़ा कि योगी आदित्यनाथ को संसद में अपने साथ हो रही ज्यादती को बयां करते हुए फफक पड़े थे। इसलिए योगी आदित्यनाथ को मुख्तार बखूबी याद है। योगी सरकार आने के बाद वह जुगाड़ से पंजाब जेल चला गया। कोर्ट से सम्मन भेजने के बाद भी पंजाब सरकार उसे यूपी नही भेज रही थी। आखिकार यूपी सरकार ने उसे बुला लिया। गाजियाबाद जेल में रहने के दौरान जब उसे पेशी पर इलहाबाद कोर्ट ले जाया जा रहा था तब उसकी और उसके परिवारवालों की जान सूखने लगी थी। उसकी और उसके करीबियों की सम्पत्ति कुर्क करने का सिलसिला जारी है। इसी बीच सरकार ने प्रयागराज के माफिया सरगना अतीक पर शिकंजा कस दिया। पिछले दिनों अतीक और उसके भाई की हत्या के बाद मुख्तार दहल गया। उसे एक मामले में तो सजा हो चुकी है।

अभी 29 अप्रैल को कृष्णानंद राय की हत्या और विहिप के कोषाध्यक्ष नंदू रूंगटा अपहरण कांड में लगे गैंगस्टर एक्ट का फैसला आना बाकी है। इसमें मुख्तार के राजनीतिक आका व सांसद अफजाल अंसारी भी आरोपित हैं। इसके बाद वाराणसी की कोर्ट में चल रहे अवधेश राय हत्याकांड की सुनवाई भी अंतिम चरण में है। इसमें भी फैसला आने में ज्यादा देर नही है। प्रदेश सरकार ने अब मारे जा चुके अतीक अहमद की पत्नी शाइस्ता और मुख्तार की पत्नी अफशां पर 50-50 हजार रूपये का इनाम घोषित कर दिया है। यह दोनां लेडी डान पुलिस और खुफिया विभाग को लगातार चकमा दे रही हैं। सूत्रों की मानें तो दोनों माफिया सरगनाओं के जरायम जगत की सत्ता को पर्दे के पीछे से संचालन यही करती रहीं हैं। इनका मायाजाल बहुत लम्बा है। 
 

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