संकटमोचन संगीत समारोह : अनुभवी कलाकारों की प्रस्तुति में दिखी कला की गहराई, सुर सरिता में सराबोर हुई हनुमंतलाल की अंगनाई 

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वाराणसी। संकट मोचन संगीत समारोह के 102वें संस्करण की छठी रात सुरों और भावों की अनूठी संगम बन गई। इस खास संध्या में जहां एक ओर अनुभवी कलाकारों ने अपनी प्रस्तुति से परंपरा की गहराई को उकेरा, वहीं युवा कलाकारों ने अपनी प्रतिभा से भविष्य की चमकती तस्वीर पेश की।

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सितार वादक महताब अली नियाजी इस संस्करण के दूसरे ऐसे युवा कलाकार रहे, जिन्होंने श्रोताओं पर गहरी छाप छोड़ी। उन्होंने राग बागेश्वरी में ख्याल अंग की बारीकियों को सुर और लय में पिरोते हुए प्रस्तुत किया। धमार अंग के झाला वादन में उनकी लयकारी का अलग ही प्रभाव देखने को मिला। भिंडी बाजार घराना से ताल्लुक रखने वाले इस कलाकार ने साबित किया कि उन्होंने राग के प्रत्येक सुर को साधने में कितनी मेहनत की है। खासकर कोमल गंधार और निषाद की सटीकता ने उनके अभ्यास की झलक दी।

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विवेक पाण्ड्या, जो अमेरिका से आए तबला वादक हैं, उनकी शानदार संगत ने महताब अली के वादन को और भी समृद्ध बना दिया। प्रस्तुति के अंत में जब महताब अली ने सितार पर ‘ओम जय जगदीश हरे’ की धुन छेड़ी, तो पूरा संकट मोचन दरबार भक्ति के रस में डूब गया। हर स्वर जैसे बोल बनकर श्रोताओं के कानों तक पहुंच रहा था। संध्या की शुरुआत पं. रतिकांत महापात्रा के ओडिसी नृत्य से हुई, जिसमें उन्होंने ‘शबरी’ प्रसंग के माध्यम से रामभक्ति के भावों को अभिव्यक्त किया। इसके बाद उनकी पत्नी सुजाता महापात्रा ने भक्ति के विभिन्न रंगों को अपने नृत्य में प्रस्तुत किया, जिसमें मुस्लिम भक्त द्वारा जगन्नाथ मंदिर में अर्चना का प्रसंग भी शामिल था।

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रतिकांत की शिष्याएं, एश्वर्या शिंदे और प्रीतिशा महापात्रा, ने ‘धनुष यज्ञ’ के दृश्य को प्रभावशाली अभिनय के साथ प्रस्तुत किया। हालांकि, एक कलाकार द्वारा ‘लंगड़े राजा’ का किरदार निभाने पर कुछ दर्शकों को ‘शकुनी’ की छवि याद आ गई, लेकिन समन्वय और समय पर सम पर आना उनकी सधी हुई प्रस्तुति का प्रमाण था।

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‘जटायु मोक्ष’ प्रसंग में रतिकांत और सुजाता एक साथ मंच पर आए और रावण द्वारा सीता हरण से लेकर जटायु के बलिदान तक की कथा को नृत्य के माध्यम से जीवंत किया। इसके बाद, वरिष्ठ गायक पं. उल्हास कसालकर ने राग केदार में विलंबित बंदिश प्रस्तुत की। उन्होंने राग के आरोह में ‘रे’ और ‘ग’ को वर्जित रखकर उसकी पारंपरिक बनावट का सम्मान करते हुए सुरों की सूक्ष्मता और गहराई का अद्भुत परिचय दिया।

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समारोह में उपस्थित भजन गायक पद्मश्री अनूप जलोटा ने कहा कि काशी का गुरुधाम मंदिर जल्द ही पूर्वांचल के युवा कलाकारों के लिए एक सशक्त केंद्र बनेगा। उन्होंने अपशब्दों वाले गीतों की आलोचना करते हुए ऐसे कलाकारों पर सख्त कार्रवाई की वकालत की और यह भी कहा कि वे पिछले 25 वर्षों से इस समारोह में शामिल हो रहे हैं और अगले 25 साल भी आते रहेंगे।

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