संकटमोचन संगीत समारोह : तीसरी निशा में मंच पर स्वर-ताल का संगम, ठुमरी के सुरों पर मंत्रमुग्ध हुए श्रोता
वाराणसी। संकटमोचन संगीत समारोह (sankat mochan sangeet samaroh) की तीसरी निशा में मंच पर स्वर-ताल का संगम दिखा। संध्याकाल से शुरू कार्यक्रमों की श्रृंखला भोर तक चलती रही। इस दौरान श्रोता संगीत के संगम में डुबकी लगाते रहे। पद्मश्री मालिनी अवस्थी (Padmshree Malini Awasthi) की ठुमरी (thumri) की बंदिशों के सुरों पर श्रोता मंत्रमुग्ध नजर आए।
कार्यक्रम का शुभारंभ कोलकाता से पधारी कथक (kathak dance) नृत्यांगना मधुमिता राय (Madhumita roy) के नृत्य से हुआ। उन्होंने अपने गणपति वंदना से नृत्य की आधारशिला रखकर पारंपरिक कथक नृत्य से प्रस्तुति को सजाया। इसी क्रम में भजन जननी मैं न जीयूं बिना राम में भाव अंग की सशक्त अभिव्यक्ति की। आपके नृत्य में ताल अंग व भाव अंग का अद्भुत मिश्रण देखने को मिला। इनके साथ तबले पर उस्ताद अकरम खां, गायन में काबेरी दत्ता मजुमदार, बोल पढंत में पैलुमी बासु, सारंगी पर गौरी बनर्जी व सितार पर सिद्धांत चक्रवर्ती ने लाजवाब सहभागिता की।
इसके बाद पं. वीरेंद्र नाथ मिश्र ने सितार वादन (sitar vadan) प्रस्तुत किया। आपने सर्वप्रथम राग बागेश्री में आलापचारी के पश्चात 8.5 मात्रा में विलम्बित गतकारी कर तीनताल में द्रुत गतकारी से वादन को विराम दिया। इन्होंने एक धुन से वादन को सम्पूर्णता प्रदान किया। इनके साथ तबले पर अभिषेक मिश्र ने वादन के अनुकूल सहभागिता की। तीसरी प्रस्तुति में मुंबई से पधारे पं. रतन मोहन शर्मा ने गायन प्रस्तुत किया। आपने सर्वप्रथम राग जोग में दो बंदिशें क्रमश: विलम्बित एकताल व तीन ताल में गाकर राग जोग को विराम दिया। इसके पश्चात एक रामभजन से गायन को विराम दिया। इनके गायन में राग की चैनदारी अच्छी रही। इनके साथ गायन में इनके पुत्रस्वर शर्मा ने पूरी भागीदारी निभायी। तबले पर पं. शुभ महाराज व संवादिनी पर मोहित साहनी ने कुशल संगत किया।
चौथी प्रस्तुति में दिल्ली से पधारे प्रख्यात शततंत्री वीणा वादक अभय रुस्तम सोपोरी का वादन रहा। सोपोर बाज के मनीषी पं. भजन सोपोरी के शिष्य पुत्र अभय रुस्तम सोपोरी ने मंदिर प्रांगण में स्वरों की बारिश कर दी। इन्होंने राग नंदकौंस में आलापचारी में हगतकारी कर वादन को विराम दिया। इनकी तंत्रकारी इनके साथ तबले पर उस्ताद अकरम खां अपनी ख्याति के अनुरूप सहभागिता कर प्रस्तुति में चार चांद लगा दिया। अगली प्रस्तुति रही विख्यात गायिका मालिनी अवस्थी की। इन्होंने अपने चिरपरिचित अंदाज में कई ठुमरी बंदिशें गाकर गायन को विराम दिया। इनके साथ तबले पर शुभ महाराज, संवादिनी पर पं. धर्मनाथ मिश्र, व सारंगी पर विनायक सहाय ने अच्छी भागीदारी निभायी।
इनके बाद मंच पर पधारी विख्यात वायलिन वादिका सुश्री संगीता शंकर, इन्होंने राग अभोगी कान्हडा में संक्षिप्त आलापचारी के पश्चात एकताल में विलम्बित बंदिश के पश्चात तीनताल में मध्यलय व द्रुतलय में गत बजाकर वादन को विराम दिया। वादन कर्णप्रिय रहा इनके साथ तबले पर अभिषेक मिश्र ने कुशल संगत की। सातवीं प्रस्तुति में बनारस के प्रसिद्ध गायक के शशिकुमार ने कर्नाटक शैली में गायन प्रस्तुत किया। इन्होंने कई त्यागराज की कृति से गायन को सजाया। इनके साथ मृदंगम पर विश्वनाथ पंडित ने तथा वायलिन पर प्रशांत मिश्र ने साथ दिया।
तीसरी निशा की अंतिम प्रस्तुति में दिल्ली से पधारे पं. रीतेश-रजनीश मिश्र ने युगल गायन के क्रम में पहले राग रामकेली में विलम्बित एकताल व तीनताल में बंदिशें गाने के पश्चात और कई रागों में बंदिशों व भजन से गायन को विराम दिया। इन लोगों ने जब गायन संपन्न किया, सूर्य की किरणें मंच को चूमने लगी थी। आप लोगों के साथ तबले पर पं. शैलेंद्र मिश्र व हारमोनियम पर सुमित मिश्र तथा सारंगी पर विनायक सहाय ने सहभागिता किया।
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