संकटमोचन संगीत समारोह : ख्याल गायकी के सुरों के जादू में खोये श्रोता, सुर, लय और ताल की त्रिवेणी से सराबोर रहा हनुमंत दरबार 

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वाराणसी। संकटमोचन संगीत समारोह की पंचम संध्या सुर, लय और ताल की त्रिवेणी से सराबोर रही। इस संध्या में ख्याल गायन, कथक नृत्य और सरोद वादन ने श्रोताओं को रसविभोर कर दिया। राग-रागिनियों की छांव में आयोजित इस सांगीतिक यात्रा ने श्रोताओं को न केवल श्रवण सुख प्रदान किया, बल्कि उनमें भावनाओं की एक नई ऊर्जा भी संचारित की।

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कार्यक्रम की शुरुआत प्रयागराज के युवा गायक ऋषि मिश्रा के शुद्ध कल्याण राग की प्रस्तुति से हुई। "जा पर कृपा राम की होई" जैसे भक्तिपरक बंदिश के माध्यम से उन्होंने संकटमोचन हनुमान जी के चरणों में अपनी संगीतमयी श्रद्धा अर्पित की। मंच पर आने के बाद लगभग 25 मिनट तक साज मिलाने में लगे ऋषि ने उसके पश्चात 45 मिनट से अधिक समय तक राग की बारीकियों को विस्तार दिया। हालाँकि संचालन पक्ष की आपत्तियों के बावजूद उन्होंने 'शिव शंकरा' और अन्य द्रुत बंदिशें प्रस्तुत कर समय से अधिक मंच पर रुककर अन्य कलाकारों की प्रतीक्षा को लंबा कर दिया। उनका समापन भजन "चलो रे मन गंगा जमुना तीर" रहा, जिसने श्रोताओं को भावविभोर कर दिया।

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इसके पश्चात लखनऊ घराने की कथक नृत्यांगना नयनिका घोष ने अपनी प्रस्तुति से दर्शकों का मन मोह लिया। डॉ. आरपी घाट पर गंगा महोत्सव के बाद 15 वर्षों में यह उनकी पहली प्रस्तुति संकटमोचन दरबार में रही। नयनिका ने अपनी प्रस्तुति की शुरुआत भगवान श्रीराम की नृत्यमय वंदना से की और इसके बाद श्रीरामचरितमानस के सुंदरकांड के सीता-हनुमान संवाद को कथक की भावभंगिमा से जीवंत किया। उन्होंने भावों के माध्यम से सीता के वात्सल्य और हनुमान के अद्भुत समर्पण को सजीव किया।

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इसके बाद पारंपरिक कथक की विविध प्रस्तुतियों जैसे तीन ताल में उठान, आमद, रेला, परन, घुंघरुओं की नाद, चक्करदार परन, फरमाइशी परन का प्रदर्शन किया गया। उन्होंने पं. बिंदादीन महाराज की प्रसिद्ध ठुमरी "मुझे छेड़ो न, नंद के सुनहु छैल" पर भावनृत्य कर प्रस्तुति का समापन किया। उनके साथ तबला पर उस्ताद अकरम खां, पखावज पर महावीर गंगानी, सितार पर रईस खां ने संगत की। बोल पढ़ंत मयूख भट्टाचार्य और गायन समीउल्ला खां ने किया।

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संध्या की अंतिम प्रस्तुति कोलकाता के युवा सरोद वादक अभिषेक लाहिड़ी की रही। उन्होंने राग झिंझोटी में आलाप, जोड़ और झाला के माध्यम से सुरों का मोहक संसार रच डाला। खमाज थाट के इस लोकप्रिय राग में वादी-संवादी स्वर के बीच उनके वादन में उत्कृष्ट तालमेल देखने को मिला। सरोद के मधुर स्वर में कोमल निषाद का प्रयोग और आरोह में वर्जित निषाद का अनुभव श्रोताओं को एक नई अनुभूति दे गया। उनके साथ तबला पर बनारस घराने के वरिष्ठ कलाकार पं. संजू सहाय की संगत मुख्य आकर्षण रही, वहीं हारमोनियम पर मोहित साहनी ने सहयोग किया।

इस पंचम संध्या की सबसे प्रभावशाली प्रस्तुति ख्याल गायक अरमान खान की रही, जो रामपुर-सहसवान घराने की सातवीं पीढ़ी के प्रतिनिधि हैं। उन्होंने राग गोरख कल्याण में ऐसी गायिकी प्रस्तुत की कि श्रोता राग को सुनने के साथ-साथ उसे ‘देखने’ का अनुभव भी कर सके। संगत करने वाले सारे कलाकार भी युवा और उनके समवयस्क थे, जिससे मंच पर ऊर्जा और तालमेल का अद्भुत समन्वय दिखा। सारंगी, तबला और हारमोनियम की संगति ने उनके गायन को एक नई ऊंचाई दी। अरमान की सुरों पर पकड़, तानों की स्पष्टता और बोलों की प्रस्तुति में ऐसा आकर्षण था कि श्रोता मंत्रमुग्ध हो गए।

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