संकट मोचन संगीत समारोह : ध्रुपद, कथक और सितार के सुरों का संगम, कलाकारों ने प्रस्तुतियों से श्रोताओं को किया मंत्रमुग्ध

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वाराणसी। बनारस की आत्मा को जो दो शब्द परिभाषित करते हैं, वे हैं – अक्खड़ और फक्कड़। युग भले ही बदल गया हो, लेकिन बनारस की सांस्कृतिक रगों में वही पुराना डीएनए बह रहा है। इसी बनारसी मिजाज की जीवंत झलक देखने को मिली संकटमोचन संगीत समारोह की चौथी संध्या पर, जहां ध्रुपद गायकी से लेकर कथक नृत्य और सितार-वादन तक, विविध कला धाराओं का अद्भुत संगम देखने को मिला।

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रात की तीसरी प्रस्तुति में डागर घराने के प्रतिष्ठित उस्ताद वसीफुद्दीन डागर ने ध्रुपद गायन की बहरामखानी परंपरा को जीवंत किया। उनके साथ पखावज पर संगत कर रहे थे संकटमोचन मंदिर के महंत प्रो. विश्वम्भरनाथ मिश्र, जिन्होंने इस बार पहली बार किसी एक ही संस्करण में तीन अलग-अलग प्रस्तुतियों में संगत कर इतिहास रच दिया। इससे पहले उन्होंने पहले दिन ख्याल अंग के पं. हरिप्रसाद चौरसिया और तीसरी रात जैज़ वादक डूमर शिवमणि के साथ भी संगत की थी।

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उस्ताद वसीफुद्दीन डागर ने राग चंद्रकौस में ऋषभ युक्त बंदिशें प्रस्तुत कीं। स्थायी, अंतरा, संचारी और आभोग की उत्कृष्ट प्रस्तुति के दौरान 'निरंजन निराकार' और 'शिव शंकर भोलानाथ शम्भू' जैसी बंदिशों में तानों की गुंफन और गमक ने श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। पखावज की द्रुत लय में भी प्रो. मिश्र की सहजता और संतुलन ने इस जटिलता को सराहनीय रूप दिया।

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रात्रि की पहली प्रस्तुति में राजगढ़ घराने की वरिष्ठ कथक नृत्यांगना वी. अनुराधा सिंह ने अपने भावपूर्ण प्रदर्शन से शिव आराधना से लेकर श्रीकृष्ण-राधा की रासलीला और कालिया मर्दन तक की झलकियां जीवंत कर दीं। राग कलावती में निबद्ध ठुमरी में उन्होंने वैशाख में फाल्गुन का दृश्य उत्पन्न कर दिया। शुद्ध कथक में लयकारी की चार विभिन्न धाराओं का प्रदर्शन उनकी तकनीकी दक्षता का प्रमाण था।

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दूसरी प्रस्तुति में 'राम राज' के सानिध्य में संगीत का संतोष और साहित्य से संगम हुआ। सितार वादक प्रो. साहित्य कुमार नाहर ने वायलिन वादक संतोष कुमार नाहर के साथ राग वाचस्पति में आलाप और जोड़-आलाप की बारीक प्रस्तुति दी। तबले पर पं. रामकुमार मिश्र और पं. राजकुमार नाहर की युगल संगत ने वातावरण को और गहनता दी। मिश्र खमाज में निबद्ध पारंपरिक धुन से प्रस्तुति का समापन हुआ।

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