काशी को समर्पित 'संगीत पथ' बना शहर का नया आकर्षण, शहनाई-तबले की गूंज में सजी आइकॉनिक रोड, दिग्गजों की उपलब्धियां दर्शा रहे शिलालेख

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वाराणसी। अगर आप इन दिनों वाराणसी के सेंट्रल जेल मार्ग से गुजरें तो कानों में शहनाई, तबला और हारमोनियम की मधुर ध्वनियां सुनाई देंगी। यह केवल संयोग नहीं, बल्कि वाराणसी विकास प्राधिकरण (वीडीए) की एक अनूठी पहल का परिणाम है। वीडीए ने इस मार्ग को काशी की समृद्ध संगीत परंपरा को समर्पित करते हुए शहर की पहली आइकॉनिक रोड के रूप में विकसित किया है, जिसे अब "संगीत पथ" के नाम से जाना जा रहा है। सबसे बड़ी बात कि इस मार्ग पर सुबह शाम सेल्फी लेने वालों की भीड़ भी उमड़ रही है।

सेंट्रल जेल फुलवरिया तिराहे से लेकर जेल आवास तक लगभग एक किलोमीटर लंबा यह पाथवे अब बनारस के लोगों के लिए एक नया आकर्षण बन गया है। पाथवे के दोनों ओर दीवारों को जीवंत पेंटिंग्स, स्कल्पचर और शिलापट्टों से सजाया गया है, जिनमें बनारस की संगीत विधाओं और महान कलाकारों का चित्रण किया गया है। गिरिजा देवी, हीरालाल यादव जैसे दिग्गजों की उपलब्धियों को दर्शाते शिलालेख यहां की दीवारों पर लगे हैं।

यह पाथवे न सिर्फ देखने में सुंदर है, बल्कि तकनीकी रूप से भी खास है। यहां स्थापित स्पीकरों के माध्यम से दिनभर शास्त्रीय संगीत की ध्वनि गूंजती रहती है, जिससे राहगीरों को आनंद और शांति दोनों की अनुभूति होती है। सुबह-शाम टहलने आने वाले स्थानीय लोग इस वातावरण में बच्चों के साथ आते हैं और उन्हें काशी के महान संगीतज्ञों के बारे में बताते हैं। कई लोग इसे एक ‘ओपन म्यूज़ियम’ भी बता रहे हैं।

वीडीए की योजना के अनुसार, पहले इस मार्ग को खेल गतिविधियों को समर्पित करने का विचार था। चूंकि वरुणापार क्षेत्र को खेलों की नर्सरी माना जाता है और इसी मार्ग पर शिवपुर मिनी स्टेडियम स्थित है, यहां एक गोलंबर पर सात मीटर ऊंची हॉकी स्टिक और बॉल लगाने की योजना भी बनाई गई थी। दीवारों पर विभिन्न खेलों की आकृतियां उकेरने का भी प्रस्ताव था, लेकिन बाद में इसे काशी की संगीत परंपरा को समर्पित करने का निर्णय लिया गया।

स्थानीय लोगों का कहना है कि इस पथ पर टहलना अब एक संगीतमय अनुभव बन चुका है। विशेष रूप से रात के समय, जब तबले और सितार की ध्वनि हवा में गूंजती है, तो वातावरण आध्यात्मिक और भावनात्मक दोनों ही रूपों में गहराई से असर डालता है। यहां आने वाले लोगों को न सिर्फ शांति मिलती है, बल्कि उनके बच्चों को अपने शहर की सांस्कृतिक धरोहर को समझने और उससे जुड़ने का अवसर भी मिलता है।
 

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