काशी में गंगा के तट पर विराजते हैं ‘सचल विश्वनाथ’: स्वामी रामकृष्ण परमहंस ने दी उपाधि, लोग बुलाते थे ‘साक्षात् शिव’, पढ़िए 300 वर्षों की जीवनगाथा

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वाराणसी। सनातन संस्कृति की आत्मा कही जाने वाली काशी सिर्फ मंदिरों और घाटों की नगरी नहीं, बल्कि वह आध्यात्मिक ऊर्जाओं की चिरंतन धारा है जिसने युगों-युगों तक साधु-संतों, योगियों और सिद्ध पुरुषों को आश्रय दिया है। इन्हीं में से एक थे अद्भुत योगशक्ति से सम्पन्न तैलंग स्वामी, जिनके बारे में मान्यता है कि वे लगभग 300 वर्षों तक जीवित रहे और वाराणसी में करीब 150 वर्षों तक वास किया।

तैलंग स्वामी को काशी के गलियारों में घूमते देखकर लोग सहज ही कह उठते – "यह तो कोई साधारण पुरुष नहीं, साक्षात शिव हैं।" रामकृष्ण परमहंस जैसे संतों ने उन्हें "काशी का सचल विश्वनाथ" कहा। उनके जीवन से जुड़ी चमत्कारी घटनाएं आज भी लोगों के मन में श्रद्धा, विस्मय और आस्था का संचार करती हैं।

tailang swami

आंध्रप्रदेश में हुआ था जन्म, नाम मिला – ‘शिवराम’

तैलंग स्वामी का जन्म 27 नवंबर 1607 को आंध्रप्रदेश के विजयनगरम जिले में हुआ था। बचपन में उनका नाम शिवराम रखा गया। भगवान शिव के अनन्य भक्त उनके माता-पिता ने भक्ति का जो बीज बोया, वह शिवराम के व्यक्तित्व में पूरे जीवन फलता-फूलता रहा। उन्होंने विवाह से दूरी बनाई और युवावस्था में ही साधना की ओर कदम बढ़ा दिए।

पिता के निधन के बाद, मां के आग्रह पर उन्होंने भगवती काली की उपासना आरंभ की। जब मां का भी देहावसान हुआ, तो शिवराम ने श्मशान को ही अपना आश्रय बना लिया। यहीं पर भागीरथानंद सरस्वती से दीक्षा प्राप्त कर वे सन्यास मार्ग में प्रवृत्त हुए और नया नाम मिला – स्वामी गणपति सरस्वती।

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काशी में बस गए तैलंग स्वामी, यहीं मिला नया नाम

दीक्षा के बाद वे देशभर में भ्रमण करते हुए सन् 1737 में वाराणसी पहुंचे और यही स्थायी रूप से बस गए। चूंकि वे तेलंगाना क्षेत्र से आए थे, इसलिए बनारस की जनता उन्हें तैलंग स्वामी कहकर पुकारने लगी। उनका रहन-सहन अत्यंत साधु जैसा था – बिना वस्त्रों के, बच्चों जैसी सरलता लिए वे गलियों में विचरण करते और हमेशा ध्यान में डूबे रहते।

देहबोध से परे थे तैलंग स्वामी

तैलंग स्वामी पर किताब लिखने वाले परशुराम उपाध्याय बताते हैं कि तैलंग स्वामी देह के बोध से मुक्त हो चुके थे। पुरनियों ने उन्हें गर्म रेत पर लेटे देखा गया, गंगा की लहरों पर घंटों ध्यानस्थ अवस्था में बैठे पाया गया। ऐसा कहा जाता है कि अंग्रेजी हुकूमत ने उन्हें नग्नता के आरोप में कई बार उन्हें मैदागिन कोतवाली में लॉकअप में डाल दिया, पर वे बार-बार जेल की छत पर घूमते नजर आते। पुलिस कर्मी चौंक गए कि जिन्हें अभी कोठरी में बंद किया गया था, वे बाहर कैसे आ गए? बार-बार की नाकाम कोशिशों के बाद अंग्रेज अधिकारियों ने हार मानकर उन्हें रिहा कर दिया।

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काशी में बने चमत्कारी योगी

उनसे जुड़ी अनेक घटनाएं हैं, जो उन्हें एक चमत्कारी योगी के रूप में स्थापित करती हैं। कहा जाता है कि उन्होंने कई बार मृत व्यक्तियों को जीवनदान दिया। किसी के रोते-बिलखते परिवार को देखकर वे शव को स्पर्श करते और वह जीवित हो जाता।

संत-महापुरुषों के भी थे प्रेरणास्रोत

रामकृष्ण परमहंस, लाहिड़ी महाशय, स्वामी विवेकानंद, महेंद्रनाथ गुप्त, लोकनाथ ब्रह्मचारी, साधक बापखेपा, स्वामी विशुद्धानंद जैसे अनेक योगियों और संतों ने तैलंग स्वामी से प्रेरणा ली। रामकृष्ण परमहंस तो उन्हें देखकर भावविभोर हो उठे और कहा, "मैंने इनके माध्यम से साक्षात ब्रह्म को प्रकट होते देखा है। ये शरीर में नहीं, केवल चेतना में रहते हैं।"

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काशी के घाटों से लिया महासमाधि तक का रास्ता

अपना अंतिम समय तैलंग स्वामी ने अस्सी घाट, हनुमान घाट के वेदव्यास आश्रम और दशाश्वमेध घाट पर साधना करते हुए बिताया। 26 दिसंबर 1887 को उन्होंने महासमाधि ली। उनके समाधि स्थल पर आज भी देश-विदेश से श्रद्धालु पहुंचते हैं। 

तैलंग स्वामी का समाधि स्थल गंगा तट पर पंचगंगा घाट पर बिंदु माधव धरहरा के बगल में स्थित है। यहां दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं। मंदिर परिसर में उनकी समाधि के बगल में एक रास्ता है, जहां की मान्यता है कि वह इसी सुरंग से प्रतिदिन गंगा स्नान को जाया करते थे। हालांकि ऑक्सीजन की कमी के कारण उस रास्ते पर अब ताला लगा दिया है। मंदिर परिसर में उनके ठीक पीछे मां मंगला काली, हनुमान जी, भगवान श्रीकृष्ण, मां सरस्वती, गणेश, कार्तिकेय और भीष्म पितामह की प्रतिमाएं स्थापित हैं। 

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आज भी जीवंत है उनकी उपस्थिति

तैलंग स्वामी का जीवन इस बात का प्रमाण है कि साधना और तपस्या से मनुष्य कितनी ऊंचाई तक पहुंच सकता है। उनकी जीवनगाथा केवल इतिहास नहीं, बल्कि आज भी उन लोगों के लिए प्रेरणा है जो आत्मबोध और ईश्वर की तलाश में हैं।

काशी के घाटों पर भले ही उनका शरीर अब नहीं है, लेकिन उनकी आत्मा, उनकी साधना और उनका आशीर्वाद आज भी इस नगरी के कण-कण में समाया हुआ है। सच ही कहा गया है – तैलंग स्वामी काशी के सचल विश्वनाथ थे, हैं और रहेंगे।

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