रूसी राष्ट्रपति पुतिन के साथ आए डेलीगेट्स का सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में भव्य स्वागत, कुलपति ने भारत–रूस सांस्कृतिक मैत्री को बताया अद्वितीय

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वाराणसी। सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ आए प्रतिनिधि-मंडल का पारंपरिक वैदिक मंत्रोच्चार के बीच मंगलवार को भव्य स्वागत एवं अभिनन्दन किया गया। इस अवसर पर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बिहारी लाल शर्मा ने कहा कि भारत और रूस के बीच सांस्कृतिक, शैक्षिक एवं आध्यात्मिक संबंध सदियों से मजबूत रहे हैं। आज दोनों देश वैश्विक मानवता और सांस्कृतिक धरोहरों के संरक्षण के लिए कटिबद्ध हैं।

कुलपति ने कहा कि रूसी डेलीगेट्स की यह शैक्षणिक यात्रा “दो संस्कृतियों के स्पंदन का अद्भुत संगम” है। उन्होंने बताया कि विश्वविद्यालय भारतीय संस्कृति, ज्ञान परम्परा और सनातन धर्म की गहनतम व्याख्या का प्रमुख केंद्र है, जिसे विश्वभर में सम्मान प्राप्त है। इस दौरे से भारत–रूस संबंधों में नई ऊर्जा आएगी और दोनों देशों के बीच शैक्षिक एवं सांस्कृतिक आदान-प्रदान और मजबूत होगा।

‘भारत को जानना है तो काशी और इस देववाणी केंद्र को समझना होगा’ — रूसी कुलपति प्रो. बतिर एलिस्टेव

रूस में स्थित काल्मिक यूनिवर्सिटी, काल्मिकिया, एलिस्टा के कुलपति प्रो. बतिर एलिस्टेव, जो प्रतिनिधि-मंडल का नेतृत्व कर रहे थे, ने भारतीय संस्कृति के प्रति गहरी अभिरुचि व्यक्त की। उन्होंने कहा कि “दुनिया के सबसे प्राचीन शहरों में से एक काशी में स्थित इस प्रतिष्ठित संस्था में आकर हमें भारतीय ज्ञान परम्परा और सनातन संस्कृति को जानने का दुर्लभ अवसर मिला। यदि भारत को जानना है तो काशी और यहां पढ़ाई जाने वाली देववाणी संस्कृत के मर्म को समझना आवश्यक है।”

उन्होंने कहा कि संस्कृत में निहित ज्ञानराशि भारतीयता, संस्कार और सांस्कृतिक मूल्यों का संपूर्ण सार प्रस्तुत करती है। यह भ्रमण भारत और रूस के दशकों पुराने संबंधों को और प्रगाढ़ करेगा।

पाली–संस्कृत की गूढ़ता से रूबरू हुआ प्रतिनिधि-मंडल
श्रमण विद्या संकाय के संकायाध्यक्ष प्रो. रमेश प्रसाद ने बताया कि रूसी प्रतिनिधियों ने आज पाली और संस्कृत भाषाओं के गूढ़ रहस्यों को जाना और दोनों संस्कृतियों की समानताओं पर चर्चा की।

प्रतिनिधि-मंडल ने विश्वविद्यालय के विभिन्न संकायों, पुस्तकालय, वेद भवन, कुलपति कार्यालय आदि का भ्रमण किया तथा प्राचीन पांडुलिपियों और पारंपरिक शिक्षण पद्धति को देखकर अभिभूत हुए।

प्रतिनिधि-मंडल में शामिल रहे विद्वान
रूसी प्रतिनिधि-मंडल में प्रमुख रूप से वासीली किश्तानोव, प्रो. जॉर्जी, प्रो. तातियाना, प्रो. स्वेतलाना, प्रो. लॉरिसा, प्रो. नतालिया सहित लगभग डेढ़ दर्जन विद्वान शामिल रहे।

दोनों देशों के बीच भाषा रूपांतरण का कार्य शास्त्री ईअना चेर्णिया द्वारा किया गया। कार्यक्रम का संचालन सहायक आचार्य डॉ. लेखमणि त्रिपाठी ने किया।

इस अवसर पर दिल्ली विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग के प्रो. दयाशंकर तिवारी भी उपस्थित रहे।

अंत में हुआ पारंपरिक स्वागत
समारोह के दौरान वैदिक मंत्रोच्चार के बीच अतिथियों का पारंपरिक स्वागत किया गया। रूसी प्रतिनिधियों ने भारतीय अध्यात्म और शैक्षणिक परंपरा की प्रशंसा करते हुए कहा कि यह अनुभव उनके लिए अविस्मरणीय रहेगा।

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