नेपाल, पाकिस्तान व खाड़ी देशों के वासी बनारसी सेवई की मिठास के मुरीद, ईद पर बढ़ी डिमांड

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वाराणसी। बनारसी साड़ी, पान, घाट की तरह यहां की सेवई भी दुनिया में मशहूर है। नेपाल, बांग्लादेश व खाड़ी देशों के वासी बनारस में बनी सेवई की मिठास से मुरीद है। खासतौर से ईद पर इसकी खूब डिमांड होती है। ऐसे में बनारस में सेवई बनाने का काम धीरे-धीरे लघु उद्योग का रूप लेता जा रहा है। 

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मेहनतकश हाथों से तैयार होने वाली सेवई के बगैर ईद अधूरी मानी जाती है। बनारस का भदऊ चुंगी इलाका, जिसे सेवई मंडी के नाम से भी जाना जाता है। यहां दर्जनों घरों में सेवई बनाने का काम लघु उद्योग का रूप ले चुका है। सेवई बनाने का काम कई पीढियों से चला आ रहा है। यहां तैयार होने वाली सेवई कई मायने मे भी खास होती है, क्योंकि न केवल देश मे बल्कि बनारसी सेवई ने सरहदों की दीवारों को भी पर कर लिया है। जिस तरह बनारसी पान, घाट, साड़ी विश्व विख्यात है, उसी तरह यहां की सेवई की  नेपाल, पाकिस्तान और बंगलादेश और खाड़ी देशों में भी रमजान माह खासी डिमांड होती है। रमजान के शुरू होने के महीनो पहले से कई हिन्दू मेहनतकश परिवार हाथ से सेवई तैयार करने मे जुट जाते हैं। यूं तो सेवई  की कई वैरायटी होती है, जो पूरे देश में तैयार होती है, लेकिन किमामी सेवई, जिसे छत्ता और बनारसी सेवई के नाम से भी जाना जाता है, सिर्फ बनारस मे ही बनती है और देश के बाहर भी निर्यात होती है। 

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सेवई व्यवसायी शुभम केशरी बताते हैं यह कारोबार उनके दादा के जमाने से चल रहा है। पहले हाथ से सेवईं बनती थी, अब मशीनों से बनाई जाती है। बताया कि मंडी में 20 से 25 परिवार सेवई बनाने का काम करते हैं। लगभग 50 कारखानों में सेवई बनती है। बताया कि यहां महीन सेवई बनती है, जो और कहीं नहीं बनती। यहां की सेवई अब खाड़ी देशों में भी निर्यात हो रही है। देश में महाराष्ट्र, गुजरात और दक्षिण भारत में जाती है। पवन केशरी ने बताया कि तीसरी पीढ़ी सेवई बनाने का कारोबार कर रही है। यह सेवई की एशिया की सबसे बड़ी मंडी है। यहां के माल का निर्यात पूरे भारत में होता है। खासतौर से यूपी और बिहार में सेल ज्यादा है। 

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