प्रख्यात तबला वादक उस्ताद जाकिर हुसैन का निधन, बनारस से रहा गहरा नाता, संगीत घराने में शोक की लहर
वाराणसी। विश्वविख्यात तबला वादक और पद्म विभूषण उस्ताद जाकिर हुसैन का सोमवार सुबह निधन हो गया। उनके परिवार ने इसकी पुष्टि करते हुए बताया कि वे इडियोपैथिक पल्मोनरी फाइब्रोसिस (आईपीएफ) से पीड़ित थे। उनकी मृत्यु से संगीत जगत और वाराणसी के संगीत प्रेमियों में शोक की लहर दौड़ गई है। बनारस घराने के नवांकुर बांसुरी वादक मुकुंद शर्मा ने इस दुखद घटना पर अपनी शोक संवेदना व्यक्त करते हुए कहा, "ऐसा तबला वादक न था और न होगा। यह बनारस और भारतीय संगीत के लिए बड़ी क्षति है।"
जाकिर हुसैन और बनारस का विशेष जुड़ाव
जय मां गंगा सेवा समिति के बद्री विशाल ने भी जाकिर हुसैन को श्रद्धांजलि दी। उन्होंने कहा, "काशी से उनका विशेष लगाव था। वे कई बार यहां आए और अपने तबले की अनोखी धुनों से सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया। उनके संगीत का आनंद लेना एक दिव्य अनुभव था।"

जीवन यात्रा और उपलब्धियां
9 मार्च 1951 को मुंबई में जन्मे उस्ताद जाकिर हुसैन को संगीत विरासत में मिला। उनके पिता उस्ताद अल्लारक्खा कुरैशी भी एक महान तबला वादक थे। जाकिर ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा मुंबई के माहिम स्थित सेंट माइकल स्कूल से पूरी की और सेंट जेवियर्स कॉलेज से ग्रेजुएशन किया। महज 11 साल की उम्र में उन्होंने अमेरिका में पहला कॉन्सर्ट किया। 1973 में उनका पहला एल्बम 'लिविंग इन द मटेरियल वर्ल्ड' लॉन्च हुआ। 2009 में उन्हें पहला ग्रैमी अवॉर्ड मिला। 2024 में जाकिर हुसैन ने तीन अलग-अलग एल्बमों के लिए तीन ग्रैमी जीते, जिससे उनके नाम कुल चार ग्रैमी अवॉर्ड दर्ज हुए। भारत सरकार ने उन्हें 1988 में पद्मश्री, 2002 में पद्म भूषण और 2023 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया। जाकिर हुसैन ने अपनी प्रतिभा से भारतीय शास्त्रीय संगीत को वैश्विक मंच पर नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया।

बीमारी और निधन
जाकिर हुसैन पिछले दो हफ्तों से सैन फ्रांसिस्को के एक अस्पताल में भर्ती थे। उनकी स्थिति बिगड़ने पर उन्हें आईसीयू में रखा गया, लेकिन डॉक्टरों की तमाम कोशिशों के बावजूद वे इस बीमारी से उबर नहीं सके। इडियोपैथिक पल्मोनरी फाइब्रोसिस एक गंभीर बीमारी है जिसमें फेफड़ों के टिश्यू डैमेज हो जाते हैं, जिससे सांस लेने में कठिनाई होती है। यह बीमारी धीरे-धीरे शरीर के अंगों को प्रभावित करती है, जिससे ऑर्गन्स का काम करना बंद हो जाता है। जाकिर हुसैन के निधन से भारतीय शास्त्रीय संगीत में जो शून्य पैदा हुआ है, उसे भरना असंभव है। उस्ताद हमेशा अपने संगीत और योगदान के लिए याद किए जाएंगे।

